संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

देश का सबसे बड़ा विस्थापन: दिल्ली-मुम्बई कॉरीडॉर

आज देश भर के किसान और खेती के साथ जुड़े मजदूर, छोटे व्यापारी, कारीगरों के उजड़ने की साजिश चल रही है, वह भी वही पुराने घिसे तर्क ‘विकास‘ के नाम पर! ‘भूमि अधिग्रहण‘ याने अंग्रेज सरकार के जमाने से उन्ही के दिये हुये कानून के तहत् पीड़ियों से चलती आ रही, करोड़ो की आजिविका और सभी देशवासियों की खाद्यसुरक्षा का आधार खेती की भूमि और उससे जुड़ा पानी, पेड़, जंगल, भूजल, भूमि के नीचे की खनिज संपदा जबरन् छीन लेना! ढ़ाचागत यानि बड़े मॉल्स, राजमार्ग, फ्लाइओवर जैसी बड़ी परियोजनायें, हजारों परिवारों की भूमि-खेती, घर-गांव सभी छिन जाती है तो उस नुकसान को रूपयो में क्या डॉर्ल्स में भी तौलना अन्याय होता है। कुछ सालों की आमदनी पुनर्वास नहीं होता है। यह सब पीड़ियों तक दर्द और जीवन पर बुरा असर भुगतने वाले लोग जान चुके हैं। 

मुम्बई-दिल्ली संघर्ष यात्रा
मुंबई से दिल्ली तक परियोजना प्रभावित क्षेत्रों की 8 मार्च से 17 मार्च तक संघर्ष यात्रा

18 मार्च को दिल्ली पहुंचकर जतंर-मंतर पर विशाल ‘किसान महापंचायत’ में शामिल हो

19 मार्च को दिल्ली में दिल्ली-मुम्बई औद्योगिक कॉरीडॉर: भ्रम और सत्य सम्मेलन

किन्तु सरकारें और पूंजीपति फिर भी ला रहे है देश और दुनिया का सबसे बड़ा भूमि अधिग्रहण और विस्थापन! वह है दिल्ली मुंबई कॉरीडॉर की परियोजनाएं! 1483 कि.मी. लम्बे इस कॉरीडॉर के इर्दगिर्द में 150 कि.मी. (हर बायें और दायें ओर) तक की संपति छीनी जाएगी।


औद्योगिकीकरण के नाम पर 3,50,000 हेक्टेयर भूमी में 20,000 हक्टर्स के 11  ‘औद्योगिक क्षेत्र’ और 10,000 हेक्टर्स की 13 ‘इंडिस्टृ्यल एरियन‘ लाखों हेक्टर्स जमीन इन परियोजना में छीनकर बनाये जाएंगे उंचे महल; ‘रियल इस्टेट’ कहकर, एयरपोर्ट, विद्युत परियोजनाएं यह सब होगा उद्योपतियों के लिए। किसानों मजदूरों, अन्य व्यवसाय के साथ जीने वालों का क्या होगा?  इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया है शासन ने। केवल ‘पैसा फेंकों, तमाशा देखों’ की रणनीति अपनाने की साजिश है। देश की 14 प्रतिशत आबादी जल-जगंल-भूमि से विस्थापन, स्थायी आजीविका छीनने जैसे बुरे असर पड़ने वाले है।


सरकार का दावा है कि दिल्ली-मुम्बई कॉरीडॉर से औद्योगिक उत्पादन में तिगुनी वृद्धि, रोजगार में दुगनी वृद्धि होगी। सरकार की असली मंशा मालूम पड़ती है किसानों से कैसे छीन कर जमीन और संसाधन पूंजीपतियों को परोसे जा रहे है। 2005 से 2011 में कंपनियों को 21,25,023 करोड़ की छूट दी,  डीजल के दामों में बढोत्तरी (जिसका बड़ा हिस्सा किसान इस्तेमाल करते है ) कारपोरेट, राजनेताओं, अफसरों,  इंजिनीयरों और भूमि लुटेरा के द्वारा लाये जाने वाले दिल्ली-मुम्बई कॉरिडॉर की असलियतः-

  • खेती की भूमि, खेतीहरो की लूट।
  • परियोजना से मानव व पर्यावरण पर पड़ने वाले असरो की कोई चर्चा नही।
  • इसके लिये पानी-बिजली और दूसरे संसाधन कहंा से आयेगे इसकी कोई चर्चा नही।
  • छोटी परियोजनाओ में भी सामाजिक व पर्यावरणीय असरो, आर्थिक लाभ-हानि, उपादेयता आदि पर विचार किया
  • जाता है किन्तु कॉरीडॉर में ऐसी कोई चर्चा नही।
  • कॉरीडॅार मे बनने वाली परियोजनाओं के आपसी असरो पर कोई चर्चा नही।
  • वास्तविक लागत होगी करोड़ो की आजिविका व मानवीयता पर बुरा असर, जिसकी कोई चर्चा नही।
  • महिला, किसान, खेत मजदूर, दलित, आदिवासी, मछुआरे बता सकते है कि ‘इंडिया शाइनिंग‘ का मतलब    टाटा, अंबानी, अडानी, मित्तल, बिरला और जिंदल जैसो की चमक है।

देश के मैदानी और पहाड़ी , आदिवासी, दलित और अन्य छोटे-बड़े किसान और किसानी का योगदान भी न मानते हुए, इनकी प्राकृतिक संपदा और संस्कृति भी बरबाद करने में शासकों को जरा भी हर्ज नहीं होता। हमें, ग्राम पंचायत या समाज के निचले तबके को संगठित शक्ति को भी कुछ बनाये, पूछे बिना योजना तय होती है। करोड़पतियों के साथ देश का बजट, देश की ‘विकास’ भी तय होता है। किसानों को न सही खेती उपज का दाम ना ही अपनी पीढ़ियों की संपदा पर, विकास तय करने पर कोई अधिकार।

भू-अर्जन और विस्थापन पर देशभर में चल रहे जनआंदोलनों से उभरे हुए मुद्दों से अब यूपीए सरकार नया कानून लाने जा रही है, इसी संसद में! इस कानून के तहत भी ‘राष्ट्रीय राजमार्ग कानून, 1956 को बाहर रखने से इस परियोजना के भुक्तभोगियों को नये कानून के लाभ से वंचित रखा जा रहा है। प्रभावित किसानों की सहमति भी इस योजना के लिए जरूरी नहीं मानी गई है। नये कानून में वैसे भी ढ़ाचागत परियोजनाओं को पूरी तरह से बाहर रखने की कोशिश है।

दिल्ली से मुंबई तक, जगह-जगह इस योजना को लादा जा रहा है। विनाश और आतंक समझकर, किसान और उनसे जुड़े तमाम लोग भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं। शासन से सवाल कर रहे हैं, जानकारी मांग रहे हैं। लेकिन जापान से पूरी मदद तय होने से देश के मेहनतकशों की, गांवों की, किसान-मजदूरों की परवाह न करते हुए केन्द्र और 6 राज्यों की सरकारे (महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश) मिल-जुलकर इसे आगे बढ़ा रही हैं। पर हम देश भर के जनआंदोलन जो विस्थापन के खिलाफ बरसों से संघर्ष कर रहे है इसका विरोध करते हैं। चूंकि हम जानते है कि सरकारी वादों और दावों की असलियत क्या है? पुनर्वास का क्या होता है? परियोजनाओं से पहले और बाद की हकीकत क्या होती है? आज तक देश की 10 प्रतिशत आबादी छोटी-बड़ी परियोजनाओं से विस्थापित हो चुकि है। जिसमें से एक हिस्सा कई बार विस्थापन झेल रहा है।

जनांदोलन का राष्ट्रीय समन्वय सहमना संगठनों के साथ इस परियोजना के मार्ग पर, प्रभावित क्षेत्रों की 8 मार्च से 17 मार्च तक, मुम्बई-महाराष्ट्र से चलकर गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, एन.सी.आर, (दिल्ली परिवेश) हरियाणा, दिल्ली तक की ‘जागरण यात्रा’ निकालेंगे। जगह-जगह किसान, मजदूर, आदिवासी, मछुआरे और अन्य सभी तबकों को जगायेंगी। इस यात्रा में शामिल होंगे, देश के राज्य के संघर्षशील वरिष्ठ जनआंदोलनकारी, किसान नेता, मजदूर नेता, विविध सामाजिक संगठन। यात्रा के दौरान इस परियोजना की पूरी जानकारी पर्चे, पुस्तिकाएं, बैनर्स इत्यादि के द्वारा दी जाएगी। आमसभाएं एवं बैठकें होगी। बुद्धिजीवियों-अध्यापक, वकील, व्यवसायिक, अध्ययनकर्ताओं से सलाह मशविरा होगा। समर्थन लिया जाएगा।

आईये, जुड़िये राज्य से, हर प्रभावित गांव, बस्ती जिले से। यात्रा में अपने प्रतिनिधी भेजे। अपने क्षेत्र में आयोजन तय करें, हमारे साथ इस कार्य के लिए हर प्रकार से, गाड़ी , आर्थिक, सांस्थनिक जैसे मदद भी जुटाइये और दीजिये।
18 मार्च, 2013 को दिल्ली पहुंचकर जतंर-मंतर पर भारतीय किसान यूनियन, कर्नाटक राज्य रैयत संघ और अनेक किसान संगठनो के साथ आयोजित इस ‘‘ किसानी महाप ंचायत‘‘ में शामिल होये जिसमें ‘दिल्ली-मुम्बई कॉरीडॉर के साथ भूअधिग्रहण, खेती उपज का दाम, खेती में गैर बराबरी, खेती में एफडीआई जैसे तमाम मुद्दे शामिल होंगे।
19 मार्च को दिल्ली में ‘‘दिल्ली-मुम्बई औद्योगिक कॉरीडॉर: भ्रम और सत्य‘‘ सम्मेलन।

यात्रा हेतु राज्य संपर्कः- महाराष्ट -सुनीति सु.र.-09423571784 गुजरात-कृष्णकांत-09427849310
राजस्थान- कैलाशमीणा-09928136988 मध्यप्रदेश-तपन भट्टाचार्य-09826011413
अभियान संपर्कः-मधुरेश-9818905316 , शीला-9212587159 , विमलभाई. 09718479517

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