उत्तराखण्ड : देवाल कस्बे ने एकजुटता के साथ उठाई आवाज पिंडर को अविरल बहने दो, हमें सुरक्षित रहने दो !
उत्तराखण्ड के पिंडर घाटी में पिछले दस सालों से पिंडर नदी पर बन रहे बांध के विरोध में चल रहे आंदोलन में 26 मार्च 2018 को एक बार फिर सुगबुगाहट दिखाई दी। देवाल कस्बे के विभिन्न गांवों से आए लोगों ने सरकार के सामने मजबूती से प्रदर्शन करते हुए मांग की कि पिंडर को अविरल बहने दिया जाए। हम यहां आपके साथ माटू जन संगठन तथा भू-स्वामी संघर्ष समिति की प्रेस विज्ञप्ति साझा कर रहे हैं;
“पिंडर को अविरल बहने दो हमें सुरक्षित रहने दो” इस नारे के साथ पिंडर घाटी में लोगों ने प्रदर्शन किया । विभिन्न गांव से आए लोगों ने देवाल कस्बे में सरकार के सामने मजबूती से फिर से प्रदर्शन किया। पिंडर घाटी को जो राष्ट्रीय नदी गंगा की एकमात्र सहयोगिनी नदी बची है जिस पर कोई बांध नहीं है उसे वे ऐसे ही अविरल बहती देखना चाहते हैं।
2010 उसके बाद 2013 की आपदाओं ने घाटी का स्वरूप काफी बदल दिया। थराली कस्बे का एकमात्र पुल जो आर-पार को जोड़ता है वह भी टूट गया था। उस पर मरम्मत करके काम चलाया जा रहा है । देवाल, चेपड़ु, सुनाऊ हो या नारायणबगड़ गांव हो, सभी जगह नदी का रास्ता बदल गया है।
लोगों का विरोध 2009 की पहली जनसुनवाई से चालू है सरकारों ने 2010 फिर 2011 में धोखे से जनसुनवाई करके परियोजना स्वीकृति की कोशिश की। किंतु अप्रैल 2011 की लोक जनसुनवाई में लोगों ने उसका उत्तर दिया हमें बांध नहीं बल्कि बहती पिंडर गंगा चाहिए।
27 दिसंबर 2011 को विशेषज्ञ आकलन समिति ने जिन मुद्दों को उठाया था उन पर कंपनी ने गंभीरता से न तो काम किया है ना ही उसमें लोगों की भागीदारी है जानकारी का ना दे ना तो बांध कंपनियों की सोची समझी साजिश ही है। हां गांवों में सिलाई मशीन , बिजली के खंबे या सौर ऊर्जा के बल्ब बांट कर लोगों को इस भ्रम में डालना कि कंपनी बहुत अच्छा काम करती है। जबकि कंपनी सामाजिक दायित्व के तहत ऐसा करना उनकी जिम्मेदारी है।
सही सर्वे करना सही जानकारी निकालना और लोगों के साथ उसको सांझा करना इस काम में वह हमेशा पीछे हैं। क्योंकि वह जानते हैं कि सुरंग बनने की वजह से ऊपर के गांवो को नुकसान होगा। देवसारी बांध में पंच प्रयाग डूबेगा , पिंडर नदी और उसके लोगों का जीवन दुष्कर होगा, रोजगार के दावे झूठे सिद्ध होंगे, प्रभावितो का पुनर्वास भी असंभव ही है , जमीन तो देंगे नहीं, जलवायु परिवर्तन के कारण नदियों में पानी की अनिश्चितता है , पिछले वर्षों से बर्फ के ग्लेशियर कम हो रहे हैं, देश में ऊर्जा की अधिकता है , देश के ऊर्जा मंत्री 2016 में इसकी घोषणा कर चुके हैं इससे संबंधित विद्युत नियामक बोर्ड की रिपोर्ट भी सामने आई है।
बांध की पर्यावरण संबंधी रिपोर्ट व सर्वे 10 वर्ष पुराने हैं जबकि इस बीच 2013 की आपदा के बाद तो खास करके नदी क्षेत्र की परिस्थिति काफी बदल गई है माननीय सर्वोच्च न्यायालय के अगस्त 2013 के आदेश के बाद किसी भी बांध की किसी भी तरह की स्वीकृति पर रोक लगी थी।सरकारी में बांध कंपनी इन सभी तथ्यों को नजरअंदाज करके बांध को आगे बढ़ाना चाहती है।
हम सरकार को चुनौती देते हैं कि बांध की पर्यावरण और संबंधी सर्वे दोबारा लोगों के साथ लोगों को साथ लेकर किए जाएं। जिसके बाद लोगों को हिंदी में पूरी जानकारी देकर पुनः खुली जनसुनवाई का आयोजन किया जाए। 10 वर्ष पुरानी आंकड़ों के आधार पर बांध को आगे बढ़ाना गलत होगा। यह भी मुख्य बात है कि अभी घाटी में वन अधिकार कानून 2006 के अंतर्गत किसी को भी वन अधिकार तक नहीं दिया गया है
हम इन सब का सामना करेंगे संघर्ष करेंगे।
दिनेश मिश्रा , बलवंत आगरी, दिनेश पुरोहित , सुभाष पुरोहित, जीवन मिश्रा, मदन मिश्रा, केडी मिश्रा, महिपत सिंह कठैत, विमल भाई