संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

पुनर्वास के बजाय लाठियां

बिहार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। यहां अहिंसात्मक आंदोलन करने वालों की ख़ैर नहीं। दानापुर अनुमंडल अन्तर्गत टेसलाल वर्मा नगर के गरीब इसके गवाह हैं। गांवघर से विस्थापित होकर शहर में स्थायी ठौर जमाने के लिए उन्हें तीन बार विस्थापित होना पड़ा। चौथी बार विस्थापन निश्चित है। इस प्रकरण पर आलोक कुमार की रिपोर्ट;

11 अक्टूबर को बिहार में लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्मदिन धूमधड़ाके के साथ मनाया गया। मुख्यमंत्री नितीश कुमार ख़ुद को जयप्रकाश नारायण द्वारा किये गये संपूर्ण क्रांति के ऐतिहासिक आंदोलन की उपज बताते हुए नहीं अघाते लेकिन उन्हीं जयप्रकाश नारायण के जन्म दिन पर विस्थापन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे ग़रीबों पर लाठियां बरसीं। तीन साल के बच्चे से लेकर 70 साल की बूढ़ी औरत को भी नहीं बख़्शा। बेज़ुबान बकरियों को भी दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया। बेरहम लाठियों ने दो बकरियों की जान भी ले ली।


दो दशक पहले सूबे के विभिन्न जिलों से आये ग़रीबों ने यहां रेलवे की खाली ज़मीन के कोने पर सड़क किनारे डेरा डाला था। कुछेक साल इत्मीनान से गुज़रे कि उन्हें खदेड़ कर उस ज़मीन के अंदर ढकेल दिया गया। इसके बाद गंगा सेतु का निर्माण शुरू हो गया। इससे पटना से सोनपुर तक की दूरी कम हो जायेगी लेकिन उससे पहले ग़रीबों की मुश्किलें भी बढ़ गयीं। इसके चलते उन्हें एक फिर विस्थापित होकर नहर किनारे अपना बसेरा बनाना पड़ा।

यहां 456 ग़रीब परिवार रहते हैं। इन लोगों ने अपने निवास स्थल को विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता टेसलाल वर्मा की याद में टेसलाल वर्मा का नाम दिया। इस बीच एकता परिषद से उनका जुड़ाव बना और पुनर्वास की मांग को लेकर उनका आंदोलन शुरू हो गया। इसी कड़ी में 2007 में पुनर्वास की मांग को लेकर दानापुर ब्लाक के परिसर में नौ महीने का बेमियादी सत्याग्रह हुआ लेकिन राज्य सरकार चिकना घड़ा बनी रही। ऐसे में अगले साल ग़रीबों ने पटना उच्च न्यायालय में जनहित याचिका के ज़रिये गोहार लगायी। इस पर अदालत ने उनके पुनर्वास की दिशा में कदम उठाने का आदेश जारी कर दिया। मगर सरकार ने इस आदेश को अनसुना कर दिया। इसके ख़िलाफ़ एक बार बाद टेसलाल वर्मा नगर के गरीबों ने 2011 में छह  माह तक बेमियादी धरना दिया लेकिन हुआ कुछ नहीं।

नयी आफ़त तब आयी जब गंगा सेतु के निर्माण कार्य का जायज़ा लेने के लिए मध्य पूर्व रेलवे के उच्चस्तरीय दल के दौरे का कार्यक्रम बना। इससे पहले रेलवे पुलिस और स्थानीय पुलिस मुस्तैद हो गयी। 11 अक्तूबर को पुनर्वास की आस में बैठे विस्थापितों की झोपड़ियों को तहस नहस कर दिया गया। यह सिलसिला अगले दिन उच्चस्तरीय दल के भ्रमण के दौरान भी जारी रहा। ग़रीबों पर जम कर लाठियां भी बरसायी गयीं। यह जयप्रकाश नारायण के जन्मोत्सव पर ग़रीबों को तोहफ़ा था।

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