संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

परमाणु-ऊर्जा पर जन-सुनवाई: आमलोगों ने किया विनाश और दमन का विरोध

22 अगस्त को राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित परमाणु ऊर्जा पर जन-सुनवाई में सरकार की परमाणु ऊर्जा नीति की आलोचना की गई और प्रभावित लोगों ने यह मांग की कि परमाणु-ऊर्जा विरोधी आंदोलनों के दमन को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया जाए.

तमिलनाडु के कूडनकुलम, महाराष्ट्र के जैतापुर , हरियाणा के गोरखपुर, पश्चिम बंगाल के हरिपुर, मध्य प्रदेश के चुटका , और राजस्थान के बांसवाड़ा तथा रावतभाटा से आए लोगों ने इस बात पर आपत्ति जताई कि भारत सरकार स्थानीय जनता के परामर्श या उनकी सहमति लिए परियोजनाओं को पूरे देश पर थोप रही है और ग्राम-सभाओं के प्रस्तावों को नजरअंदाज़ करते हुए दमन के बल पर आगे बढ़ रहे हैं. लोगों ने पारदर्शिता की मांग की और आरोप लगाया कि गोपनीयता की आड़ में परमाणु ऊर्जा विभाग ने पर्यावरणीय मानदंडों की खुलेआम धज्जियां उडाई हैं.

कूडनकुलम से आई जेवियर-अम्मा और मेल्ड्रेड ने स्थानीय निवासियों और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सभी मामलों को बिना शर्त निरस्त करने और धारा 144 को हटाने की मांग की. ज्ञात हो कि कूडनकुलम संघर्ष में अबतक 55,000 से ज़्यादा लोगों पर फर्जी मुकदमे दायर किये गए हैं, जिनमें से 3600 मुकदमे भारतीय सरकार के खिलाफ युद्ध छेदने और 3200 मुकदमे देशद्रोह के संगीन आरोपों के तहत दर्ज किए गए हैं.

फतेहाबाद से आये लोगों ने आरोप लगाया है कि हाल ही में आयोजित सार्वजनिक सुनवाई एक नौटंकी थी और गोरखपुर गांव निवासियों ने इस परियोजना के लिए भूमि नहीं देने का दृढ़ संकल्प दोहराया. रावतभाटा परमाणु प्लांट से आये ठेका-मजदूरों के[प्रतिनिधि मानसिंह सोलंकी ने यह आरोप लगाया है कि वहाँ परमाणु ऊर्जा कारपोरेशन न सिर्फ अपने श्रमिकों को खतरनाक काम के बदले बहुत कम वेतन देता है बल्कि बहुत अधिक संख्या में ऐसे मजदूर रेडियेशन के शिकार भी होते हैं. उन्होंने कहा कि पिछले चालीस सालों में 18,000 से भी ज़्यादा लोगों को ट्रीशियम का डोज़ लगा है. उन्होंने सूचना-अधिकार के आवेदन से यह जानकारी हासिल की है कि पिछले 17 सालों में मात्र 73 स्थानीय लोगों को प्लांट में रोजगार मिला है. चुटका के ग्रामीणों ने कहा कि वे अपनी जमीन के अधिग्रहण का मरते दम तक विरोध करेंगे क्योंकि विस्थापन का दर्द वे लोग चालीस साल पहले बरगी बाँध के समय भी भग चुके हैं, जब उन्हें विकास के आश्वासन दिए गए थे.

जूरी के सदस्य सामाजिक कार्यकर्ता अरूणा राय, पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल (सेवानिवृत्त) एल रामदास और के एस सुब्रमण्यम थे.

अरुणा रॉय ने अपनी कूडनकुलम यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि प्रशासन और पुलिस परमाणु-विरोधी आंदोलनकारियों पर झूठे आरोप लगा रहे हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रदर्शनकारियों को विदेशी धन मिलाने जैसे ये आरोप निराधार हैं.

कूडनकुलम के नेता एस.पी. उदयकुमार ने वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सार्वजनिक सुनवाई में बात रखी. उन्होंने आरोप लगाया कि कूडनकुलम में कोई जन-सुनवाई आयोजित नहीं की गयी थी. स्थानीय निवासियों के आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण के लिए कोई योजना नहीं है, और एक इस प्लांट से निकले अपशिष्ट समुद्र में सीधे डाले जाएँगी जिसका तापमान 45 डिग्री तक होने की मंजूरी सरकार ने दे दी है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है. और जलीय जीवन तथा मनुष्य के लिए खतरनाक है. डॉ. उदयकुमार ने वैकल्पिक और अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में अधिक निवेश करने की मांग की. उन्होंने आरोप लगाया कि भारत सरकार विदेशी परमाणु बिजली कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए परमाणु ऊर्जा जैसी एक खतरनाक प्रौद्योगिकी को देश की जनता पर जबरदस्ती थोप रही है.

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