संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

विकास के नाम पर भूमि की लूट

-विवेकानंद माथने

जमीन प्रकृति की देन है। उसके बिना सजीव सृष्टि के आस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती। वह सारे सजीव सृष्टि के जीवन का आधार है। जमीन पर किसी की भी मिल्कियत नहीॆ हो सकती, समाज को केवल प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर उसके उपयोग का अधिकार है। जमीन, जल, वायु, प्रकाश, जंगल, जैव विविधता आदी सभी जीवन के आधार है, यही मनुष्य जाति की बुनियादी मान्यता है।

गांव के लोग, आदिवासी, किसान आदि सभी ने मेहनत करके जमीन को खेती योग्य बनाया है। खेती किसानों के जीवन का मुख्य आधार बनी और वह अपनी आवश्यकतापूर्ती के लिये खेती करता रहा। खेती ही उत्पादन का मुख्य साधन रही।  खेती ही भारत की संस्कृति रही है। कल तक देश का विकास उसी के आधार पर हुआ है।
यह संशोधन का विषय है की, जमीन पर मिल्कियत कब से शुरु हुयी और उसके पीछे क्या कारण रहे हैं। लेकिन जमीन पर मिल्कियत सम्पत्ती के असमान विभाजन का आधार बनी। कुछ लोगों ने किसानों से जमीन छीनकर उसपर मिल्कियत प्राप्त कर उसे अपनी सम्पत्ती बना ली और मजबूर लोगों के श्रम खरीदकर अपनी सम्पति को और बढ़ाया। जमींदार पैदा किये। तत्कालीन परीस्थिति में जमीन पर मिल्कियत समाज में आर्थिक और सामाजिक विषमता, असमानता का एक प्रमुख कारण बनी।      

संपत्ति विभाजन, समता आधारित समाज व्यवस्था के लिये आवश्यक और महत्वपूर्ण कदम है। जिसके मूल में यह विचार है की, संसाधन और उत्पादन के साधन खेती हो या उद्योग उस पर समाज का ही अधिकार रहना चाहिये। भारत में समता आधारित समाज व्यवस्था के लिये परिवर्तन की मांग उठी, जमींदारों के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग हुआ। उनसे जमीन छिनी गयी, अहिंसा की राह पर भूदान, ग्रामदान आंदोलन चला, उसके माध्यम से 48 लाख एकड़ जमीन प्राप्त कर अधिकांश जमीन भूमीहीनों को बांटी गयी, जनदबाव में सीलिंग कानून लाया गया। यह इसलिये हुआ की, समाज ने यह स्वीकार किया की जमीन जीवन का आधार है और अपने व देश के लिये अन्न उगाने के लिये मेहनत करने वालों का ही उसपर अधिकार है।

लेकिन देश ने एकबार फिर से करवट बदल ली है। नई आर्थिक नीति लागू होने के बाद प्राकृतिक संसाधन और उत्पादन के साधनों पर मिल्कियत के सम्बध में कार्पोरेट हितैषी नीति अपनाने से संसाधनों की खूब लूट मची हैं और इसका सबसे अधिक प्रभाव जमीन पर पड़ रहा है। पूरे देश में जमीन की बेतहाशा लूट मची हुयी है। किसानों से तेजी से जमीन छीनी जा रही है। मिल्कियत बदली जा रही है। राष्ट्र निर्माण और विकास के नाम पर औद्योगिक गलियारे, औद्योगिक क्षेत्र, सेज, बडे बांध, कोयला खदानें, बिजली परियोजना, स्मार्ट शहर, शहर विस्तार, महामार्ग, बंदरगाह, हवाई अड्डे, रीअल इस्टेट और कॉर्पोरेट फार्मिंग आदी के लिये बड़े पैमाने पर किसानों से जमीन छीनी जा रही है।

देश में विकास के नाम पर कुल कितनी जमीन खेती से निकालकर गैर खेती कार्य के लिये उपयोग में लाई गयी है या अधिग्रहित की गयी है, इसकी निश्चित जानकारी भारत सरकार के पास उपलब्ध नही है, भारत में खेती की निश्चित जमीन कितनी है, यह भी सरकार को ज्ञात नही है। यह अविश्वसनीय लग सकता है लेकिन सच यही है। विशेषतः देश में कृषि भूमी की प्रत्यक्ष गिनती करने की व्यवस्था है, लेकिन केंद्र या राज्यों द्वारा कही भी जमीन की गिनती नही की जा रही है। सरकारें सालोसाल प्रोजेक्शन के आधार पर आकलन करके ही खेती जमीन का क्षेत्र दे रही है। देश की कुल कृषि भूमी के बारे में केंद्रीय कृषि विभाग और सॅम्पल सर्वे के आकलन में लगभग 5 करोड हेक्टर का अंतर है। यह गंभीर बात है। लेकिन देश के सरकार को इसका कोई भान नही है।

भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्र 32.87 करोड हेक्टर है। जिसमें रिपोर्टेड क्षेत्र 30.59 करोड हेक्टर है। कृषि मंत्रालय के अनुसार सन 2011 में खेती बुआई का क्षेत्र 14.16 करोड हेक्टर रहा है। सन 1971  में वह 14.09 करोड हेक्टर था। कृषि विभाग के रिपोर्ट के अध्ययन से पता चलता है की, गत 50 साल से बुआई का क्षेत्र कमी अधिक लगभग 14 करोड हेक्टर के आसपास ही दिया गया है। केंद्रीय कृषि विभाग यह क्षेत्र प्रत्यक्ष गिनती करके नही, बल्कि सालोंसाल केवल राज्यों से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर प्रोजक्शन करके खेती की जमीन को इस्टीमेट करती है। निश्चित रुप से कुल जमीन का यह क्षेत्र सही नही है। दुर्भाग्य से देश में खेती संबंधित सभी योजनाऐं इसी के आधार पर बनाई जाती रही है।        

सन 2013 में सॅम्पल सर्वे के द्वारा कृषि भूमी को इस्टीमेट किया गया है। सॅम्पल सर्वे 2013 “पारिवारिक स्वामित्व एवं स्वकर्षित जोत” (Household Ownership and Operational Holdings in India) के अनुसार ग्रामीण भारत में रहनेवाले परिवारों के स्वामित्व में सन 1992 में 11.74 करोड हेक्टर जमीन थी, सन 2013 में यह घटकर 9.24 करोड हेक्टर रह गयी है। अर्थात बीस साल में ग्रामीण भारत के परिवारों के स्वामित्व में 2.5 करोड़ हेक्टर जमीन कम हुयी है। सन 1992 से 2013 में ग्रामीण भारत में खेती की जमीन घटकर 21% कम हुयी है। बढ़ती आबादी और घटती जमीन के कारण प्रति परिवार औसत जमीन का क्षेत्र तेजीसे घटा है। सॅम्पल सर्वे 2013 के अनुसार ग्रामीण भारत में 1992 में प्रति परिवार औसत 1.01 हेक्टर जमीन थी। जो 2013 में प्रति परिवार औसत 0.59 हेक्टेर जमीन रह गयी है। हम इसे देश की कुल परीवारों के आधार पर इस्टिमेट करेंगे तो प्रति परिवार औसत 0.37 हेक्टेर जमीन रह जाती है।  

कृषि प्रधान भारत के लिये कुल खेती जमीन और प्रति परिवार औसत खेती जमीन का घटना चिंता का विषय बन गया है। आज भी देश खाद्यान्न में आत्मनिर्भर नही है। कृषि उपज को आयात करना पड़ता है। देश का कुल खेती क्षेत्र देश की खाद्यान्न आवश्यकता को पूरा करने के लिये और औसत खेती का क्षेत्र एक परिवार के पोषण के लिये पर्याप्त नही है। लेकिन सरकार को खेती जमीन पर हो रहा आक्रमण, खेती की जमीन का कम होना और उसके देश पर पड़नेवाले दुष्प्रभाव की चिंता नही है, बल्कि देश के नीति निर्धारक नीतियों को सुधारने के बजाय संकट का समाधान औद्योगिकरण में देख रहे है। उसके लिये ईंडस्ट्रीयल कॉरिडोर, कॉर्पोरेट फार्मींग और स्मार्ट शहर निर्माण की योजना बनाई गयी है।

भारत में वैश्विक विनिर्माण और व्यापारिक केंद्र के रूप में दिल्ली मुम्बई ईंडस्ट्रीयल कॉरिडोर विकसित करने का काम शुरु हो चुका है, जिसमें औद्योगिक क्षेत्र, मौजूदा औद्योगिक क्षेत्र के विस्तार, बंदरगाह, आधुनिक हवाई अड्डे, विशेष आर्थिक क्षेत्र, औद्योगिक पार्क, आईटी/ आईटीईएस/ बायोटेक केन्द्रों और कृषि प्रसंस्करण केन्द्रों, स्मार्ट शहरों, एकीकृत टाउनशिप, बुनियादी सुविधाओं, विद्युत संयंत्रों, राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों का विस्तार, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, उच्च गति रेल/सड़क परिवहन नेटवर्क आदी का निर्माण किया जायेगा।

दिल्ली मुम्बई ईंडस्ट्रीयल कॉरिडोर को 1483 कि.मी. लंबाई और लगभग 300 कि.मी. चौडाई के 4.36 करोड हेक्टर क्षेत्र में विकसित किया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार इसमें 150 से 200 वर्ग कि.मी. के 9 औद्योगिक जोन होंगे। भारत में 6 इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर बनाने की योजना है। नॉर्थ ईस्ट म्यानमार कॉरिडोर छोड़कर देश के 16 राज्यों को प्रभावित करनेवाले 5 कॉरिडोर की कुल लंबाई 6749 कि.मी. है और कुल प्रभावित जमीन क्षेत्र 20.14 करोड हेक्टर आता है। जो देश के रिपोर्टेड जमीन क्षेत्र का 66 प्रतिशत है। किसी भी परियोजना के लिये कितनी जमीन आवश्यक है यह प्रोजेक्ट रिपोर्ट में दिया जाता है लेकिन दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर के प्रोजेक्ट रिपोर्ट में इसकी स्पष्टता नहीं है। कुल कितनी जमीन लगेगी यह जानबुझकर छुपाया जा रहा है। अनुमान के आधार पर अगर सभी कॉरिडोर के लिये कुल प्रभावित क्षेत्र की 20 प्रतिशत जमीन ली जाती है, तब भी यह 4 करोड हेक्टर जमीन होती है। इसके अलावा देश मे बन रही अन्य परीयोजना का क्षेत्र अतिरिक्त होगा।

खेती की जमीन धनपतियों के लिये रिअल इस्टेट का व्यवसाय बन गया है, किसी भी छोटे बडे शहरों के परिधि की लगभग अधिकांश जमीन अब धनपतियों के पास जा चुकी है। खेती को ईन्वेस्टमेंट का जरिया बनाया गया है। उनके लिये फॉर्म हाउस, कृषि पर्यटन एक व्यवसाय का रुप ले चुका है। काला धन पचाने का रास्ता बन गया है। शहरों के विस्तार के लिये खेती की जमीन पर आक्रमण बढ़ा है। आर्थिक संकट से जूझ रहे किसानों की जमीन छीनने के लिये देश में दलालों और धनपतियों का एक वर्ग तैयार हो गया है। किसानों को मिलने वाली आधिकांश सुविधाऐं और योजनाऐं भी अब अधिकारियों के साथ सांठगांठ करके यही बांट रहे है।

देश में अमीरों के लिये एक अलग दुनिया बसाने के लिये 100 स्मार्ट शहर बनाये जा रहे है। बढ़ते शहरीकरण के कारण तेजी से शहरों का विस्तार हो रहा है। स्मार्ट शहर और शहरों का विस्तार के लिये खेती जमीन पर आक्रमण बढ़ा है।  

खेती का बोझ कम करने की बात कहकर सरकार किसानों को खेती से हटाकर उनकी संख्या 20 प्रतिशत रखने की योजना पर काम कर रही है। खेती में विदेशी निवेश की अनुमती, पूंजी और तंत्रज्ञान को प्रोत्साहन, कॉंट्रॅक्ट फार्मींग, कॉर्पोरेट फार्मींग यह सब उसी योजना का हिस्सा है। यहां विश्व व्यापार संगठन के शर्तों को पूरा करने के लिये, दुनिया के बाजार के लिये खेती करने की योजना है। जिसमें भविष्य में फूलों की खेती, इंधन की कमी के संकट को दूर करने के लिये जैविक इंधन की खेती आदी की जायेंगी। भारत में असफल हुयी इजराइल पद्धती से खेती करने का प्रयास फिर से शुरु हुआ है। कॉर्पोरेट फार्मिंग के लिये सारी उपजाउ खेती कम्पनियों को सौपी जायेंगी। कॉर्पोरेट फार्मिंग की योजना के अनुसार देश के सभी किसानों से जमीन छीनकर 20 प्रतिशत बडे कार्पोरेट किसान के द्वारा खेती की जायेगी। लगता है सरकारें देश में जीवनदायी अनाज की नही, मौत की खेती उगाना चाहती है।

देश में उद्योगिक क्षेत्र, कॉरिडोर, रीअल इस्टेट, नये शहर और शहर विस्तार आदी के लिये करोडों हेक्टर कृषि जमीन गैर खेती कार्य के लिये और बाकी जमीन पर कॉर्पोरेट फार्मिंग के लिये किसानों से बडे पैमाने में खेती छिनी जायेगी। यह सारा काम किसानों के लाभ के लिये करने का दावा सरकारें कर रही है। बहुत चालाकी से किसानों की भलाई के नामपर किसानों को लूटने का काम हो रहा है। अगर यह योजनाएं सफल हुयी तो यह अनुमान किया जा सकता है की, 9.24 करोड हेक्टर खेती जमीन से कम से कम और 4 करोड हेक्टर भूमी खेती से बाहर होगी। देश के पास केवल 5 करोड़ हेक्टर खेती की भूमी बचेंगी और प्रति परिवार औसत जमीन क्षेत्र ग्रामीण भारत में 0.25 हेक्टेर और देश की कुल परीवार संख्या के आधार पर 0.17 हेक्टेर  अर्थात 18000 वर्ग फ़ीट खेती की जमीन रहेगी। एक व्यक्ति के लिये औसत जमीन क्षेत्र 3600 वर्ग फ़ीट बचेगा।

देश में कभी खेती की जमीन 14 करोड हेक्टर थी। अब केवल 9.24 हेक्टर बची है। 4-5 दशकों में लगभग 5 करोड हेक्टर अर्थात 34 प्रतिशत खेती की जमीन कम हुयी है। अब औद्योगिकरण की गति और खेती पर चौतरफा आक्रमण और तेज हुआ है।    

सरकारें किसानों की जमीन छीनने के लिये अत्यंत गंभीर है। इसलिये वह केवल योजना बनाकर नही रुकी, बल्कि कम्पनियों के सुविधानुसार भूमी संबंधित नीती और कानूनों में परिवर्तन कर रही है।

भूमि अधिग्रहण कानून : कार्पोरेट्स के दबाव में भूमी अधिग्रहण कानून 1894 को बदला गया। लेकिन जनआंदलनों के सजगता के कारण कार्पोरेट्स उसे पूर्णताः उनके अनुकूल नही बना पाई। जनता के विरोध के बावजूद उसे कम्पनियों के अनुकूल बदलने का काम लगातार किया जा रहा हैं।

कम्पनियों को सीधे किसानों से जमीन खरीदना : कम्पनियों को सीधे किसानों से जमीन खरीदने के लिये कई राज्यों मे कानून और नियमो में परिवर्तन किये गये है।


लैंड सीलिंग ऐक्ट : कम्पनियों के लिये लैंड सिलिंग ऐक्ट का पालन नही किया जा रहा है, बल्कि उसमें बदलाव करने का प्रयास हो रहा है, ताकी कम्पनियां अमर्याद जमीन पर कब्जा कर सके। शहरी सिलिंग ऐक्ट में बदलाव किया गया है।

आदिवासियों को जमीन बेचने का अधिकार : यह भी आशंका जताई जा रही है की, आदिवासियों को जमीन बेचने का अधिकार देकर उनकी जमीन पर कब्जा करने की योजना है, उन्हें जमीन के पट्टे देना उसी योजना का भाग है, जिसके कारण आदिवासियों के जमीन बेचने के अधिकार का विरोध करने वालों को आसानी से आदिवासी विरोधी सिद्ध करना संभव होगा।

लैंड बैंक : जिन योजनाओं के लिये जमीन अधिग्रहित की गयी है, उसका निर्धारित उपयोग न होने पर वह किसानों को वापस देने का कानून बनाने की मांग देश में अनेक जगह उठी हैं, लेकिन सरकार ऐसा कानून नही बनाना चाहती। परियोजनाओं के लिये अधिग्रहित अतिरिक्त जमीन के लिये लैंड बैंक बनाई गयी है, ताकि जमीन आसानी से कम्पनियों को हस्तांतरित की जा सके।

कुल मिलाकर सत्ताधीशों को सत्ता का भोग देनेवाले कार्पोरेट्स के लिये देश के किसानों से जमीन छीनकर उनको बरबाद करने का बीड़ा सरकार ने उठा रखा है।

यहां सरकारी रिपोर्ट और डी.एम.आय.सी रिपोर्ट के आधार पर खेती की जमीन के लूट की तस्वीर सामने लाने का प्रयास किया गया है ताकी हम एक भयंकर वास्तविकता को समझ सके। लेकिन यह केवल अनुमान के आधार पर पूरी तरह स्पष्ट नही होगा। इस देश के जनता को यह जानने का पूरा अधिकार है और भारत सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिये कि, सन 1991 से आज तक देश की कितनी कृषि की जमीन गैर कृषि कार्य के लिये उपयोग में लायी गयी है या अधिग्रहित की गयी है और आज देश के पास कितनी खेती की जमीन है। साथ ही सरकार को यह भी स्पष्ट करना चाहिये कि, विकास के नाम पर बनी उपरोक्त योजनाओं के लिये प्रोजेक्ट रिपोर्ट के आधार पर कितनी जमीन की आवश्यकता है और उसका देश के किसान और खेती पर क्या असर पड़नेवाला है।

इसलिये खेती की जमीन की प्रत्यक्ष गिनती की जानी चाहिये। भूमी संबंधी वस्तुस्थिती देश के सामने रखने के लिये सरकार को श्वेत पत्र जारी करना चाहिये। साथ ही जनआंदोलनों को भी अब भूमी अधिग्रहण कानून में सुधार के लिये नहीं कृषि भूमी संरक्षण कानून के लिये संघर्ष करना होगा।

देश में आज भी 60 प्रतिशत से अधिक लोग कृषि से रोजगार प्राप्त करते हैं। खेती किसानों के लिये आजीविका और रोजगार का एकमात्र साधन बचा है। भूमिहीन किसानों को भी वह रोजगार देती है। दुनिया में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है की, जिसमें इतने बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा किये जा सकते है। किसानों को जीने के लिये, अपनी व देश की भूख मिटाने के लिये, देश की जनता के अन्न, वस्त्र, आवास, खाद्य सुरक्षा और देश की सुरक्षा के लिये भी किसान और खेती की भूमिका महत्वपूर्ण है।

औद्योगिकरण के कारण एक तो कुल खेती जमीन और प्रति परिवार औसत खेती की जमीन तेजी से घट रही है, दुसरी तरफ जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापमान वृद्धी का कृषि पर प्रभाव प्रतिकूल परीणाम हो रहा है। जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण कृषि उत्पादन में 20 प्रतिशत की कमी होगी।  

यह कहना केवल आरोप नही होगा की, खेती को जानबूझकर घाटे का सौदा बनाया गया है, ताकी किसान मजबूर होकर अपनी जमीन बेच दे। कृषि जमीन की लूट भारत के किसानों के लिये अत्यंत घातक सिद्ध हुयी है। किसानों से बड़े पैमाने पर लगातार जमीन अधिग्रहित की गयी, उनके जीने के साधन छीने गये लेकिन बदले में उन्हें केवल दुख, दर्द और बदहाली ही मिली। उन्हें गरीबी की जिंदगी जीने के लिये मजबूर किया गया। गांव कंगाल हुये। गाव में रहनेवाले लोग, किसान, मजदूर, आदिवासी, शहरी श्रमिक इनकी परिस्थिती खुद इसे बयान कर रही है। दुनिया के मानवतावादी अर्थशास्त्री भी कह रहे है की, आधुनिक विकास काल में आर्थिक विषमता चरम सीमा में पहुंची है।

कृषि भूमि की लूट यदि इसी प्रकार  जारी रही तो भयंकर गैरबराबरी के साथ साथ देश को भुखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी, वैश्विक तापमान वृद्धि, जलवायु परिवर्तन आदी अनेक संकट और अधिक बढ़ेंगे। कृषि प्रधान भारत को औद्योगिक प्रधान भारत बनाने का यह प्रयास खतरनाक और विनाशकारी है, यह देश में कृषि भूमि की लूट के लिए काॅर्पोरेट्स की एक साजिश है। भारत में नयी गुलामी की व्यवस्था स्थापित की जा रही है।

सॅम्पल सर्वे 2013 “पारिवारिक स्वामित्व एवं स्वकर्षित जोत”
(Household Ownership and Operational Holdings in India)
item   1971-72    1982      1993     2003      2013
(1)           (2)        (3)   (4)      (5)         (6)
Estimated area owned (mha)   119.636   119.736   117.354  107.228    92.369
Average area owned per household(ha)                                
(a) including landless households      1.53   1.28 1.01   0.73     0.59
(b) excluding landless households     1.69       1.44      1.14      0.81     0.64

ईंडस्ट्रीयल कॉरीडोर  
1. Delhi-Mumbai Industrial Corridor(DMIC)  2. Bengaluru-Mumbai Economic Corridor(BMEC)
3. Chennai-Bengaluru Industrial Corridor(CBIC) 4. East Coast Economic Corridor(ECEC) with Chennai-Vizag Industrial Corridor as the first phase of the project(CVIC) 5.Amritsar Kolkata Industrial Corridor(AKIC) 6.North East Myanmar Industrial Corridor(NEMIC)
अ.क्र. कॉरिडोर लंबाई
(कि.मी.) राज्य संख्या प्रभावित राज्य प्रभावित क्षेत्र (करोड़ हेक्टर)
1 DMIC 1483 6 MH,GJ,RJ,MP,DL,HR,UP 4.36
2 AKIC 1839# 7 PB,HR,UP,UK,JH,BR,WB 5.51
3 BMEC 1205# 2 KA,MH 3.61#
4 CBIC 560 3 KA,AP,TN 1.68#
5 ECEC(VCIC) 1662#(800) 4 TN,AP,OR,WB 4.98#
6 NEMIC … …. North East States ….
कुल 6 6749 16 16+7 20.14#
# -अनुमानित

रेल कॉरीडोर Dedicated Freight Corridor (Golden Quadrilateral)

रेल मंत्रालय द्वारा 6 डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (स्वर्णिम चतुर्भुज) बनाने की योजना है। जिसमें से 4 का समावेश इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर मे हो जाता है, 4673 किलोमीटर लंबाई के दो डायगनल कॉरिडोर अतिरिक्त है उसके लिये अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता होगी।
अ.क्र. कॉरिडोर                                                       लंबाई की.मी. समावेश
1 Western DFC (Delhi-Mumbai)                          1504 DMIC में समाविष्ट
2 Southern DFC (Chennai-Goa)                           899 BMEC में समाविष्ट
3 Eastern DFC (Ludhiyana-Dhankuni)                 1856 AKIC में समाविष्ट
4 East Coast DFC (Kharagpur-Vijaywada)          1100 ECEC में समाविष्ट
5 North-South DFC (Delhi-Chennai )                 2343 ….
6 East-West DFC (Kolkata-Mumbai)                 2330 ….
Total 6                                                                10122 ….

(विवेकानंद माथने, आजादी बचाओ आन्दोलन, किसान स्वराज आन्दोलन से जुड़े है)

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