संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

नागौर : खैरलांजी के बाद हाशिमपुरा बनने की कगार पर

छुरा भोंककर चिल्लाये ..

हर हर शंकर

छुरा भोंककर चिल्लाये ..

अल्लाहो अकबर

शोर खत्म होने पर

जो कुछ बच रहा

वह था छुरा

और

बहता लोहू…

-गोरख 

विनय सुल्तान

जयपुर , जोधपुर,बीकानेर और अजमेर सूबे के चार बड़े जिलों से सीमाएं साझा करता हुआ जिला है नागौर. अकबर के नौ रत्नों में से अबुल फजल का जिला. ख्वाजा गरीब नवाज के के प्रमुख शिष्य हमीदुद्दीन ‘सुल्ताने तरेकीन’ का शहर. स्थानीय जनता में हमीदुद्दीन के उपनाम सुल्ताने तरेकीन का अपभ्रंश तारकिशन के रूप में चलता है. इसके साथ यह मिथक भी जुड़ गया है कि वो हिन्दू थे. हर साल लगने वाले उर्स में इसी के चलते हजारों इस चिश्ती संत की दरगाह पर सजदा करने आते हैं. इल्तुतमिश ने इस दरगाह पर सुन्दर नक्काशी वाला बुलंद दरवाजा बनाया था. कादरी फिरके की सबसे बड़ी दरगाह ‘बड़े पीर साहब की दरगाह′ यहीं पर स्थित है. शहर के बीच में मुग़ल स्थापत्य की छंटा बिखेरती ‘जामा मस्जिद’ है. यह मस्जिद अकबर के नागौर प्रवास के दौरान बनी थी. नागौर दरबार में ही राजपूतों और मुगलों के बीच समझौतों और विवाह सम्बन्धों की शुरुवात हुई थी. आस-पास के लोग इसे ‘वल्लियों का शहर’ भी कहते हैं. 31 मई के दिन अचानक मध्यकाल की इन ऐतिहासिक इमारतों पर संकट के बादल छा गए थे.

1 जून की सुबह मैं नागौर पहुंचा ही था. सुबह चाय के साथ अखबार का स्थानीय संस्करण पढ़ना मेरा पसंदीदा काम रहा है. अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो गली के नुक्कड़ और चाय की दूकानों पर देर रात तक होने वाली चर्चाओं में खुद बार-बार मुर्ख साबित करते हैं. लेकिन आज तो नागौर अखबार के पहले पेज पर था. कारण था 31 मई को पैदा हुई सांप्रदायिक तनाव की स्थिति. जिले की तीन तहसीलें देखते ही देखते हिंसा की चपेट में आ गईं. एक आदमी को पीट-पीट कर मारा डाला गया. कई दुकानें फूंक दी गई. 51 लोग हिरासत में थे. आखिर मेरे जिले को हुआ क्या था. पहले गैंग वार फिर डांगावास का बर्बर हत्याकांड और अब सांप्रदायिक तनाव.

घटना की शुरुवात 30 तारीख की रात को होती है. नागौर से बीस किलोमीटर दूर मुस्लिम बाहुल्य वाले गांव हैं बासनी, कुम्हारी और डुकोसी. कुम्हारी गांव की सीमा पर रात को 250 गायों के कटे हुए शव मिलने से पूरे क्षेत्र में तनाव फ़ैल गया. आस-पास के 20 गांव से 12 हजार लोग सुबह कुमारी के बाहर पहुंच गए. गांव में तीन मोटरसाईकिल जला दी गई. घरों पर पत्थर फेंके गए. यहां के निवासियों ने खुद को घर के सबसे अंदरूनी कमरे में कैद कर लिया. देर शाम यह मामला शांत हुआ.51 लोग गिरफ्तार किए गए. नागौर के अलावा तीन और तहसीलों में तनाव फ़ैल गया. डीडवाना के व्यवसायी गफूर खान को पीट-पीट कर मार डाला गया. खीमसर में दुकानें जला दी गई. राजमार्ग जाम कर दिए गए.

यह सब सूचनाए मुझे स्थानीय अखबारों के जरिए मिलीं. लेकिन इसमें काफी बातें छूट गई थीं. इन बातों को दर्ज करना जरूरी था.

नागौर नगर परिषद की तरफ से मृत पशुओं को उठाने का ठेका कयूम गौरी को दिया गया. ये ठेका असल में मो.हमीद के पास था. नगर परिषद ने हड्डीखाना खोलने के लिए कोई भी जगह चिन्हित नहीं करके देती. इसके चलते ठेकेदार को अपने स्तर पर हड्डीखाने के लिए जमीन लीज पर लेनी होती है. साल भर पहले गोगेलाव गांव के पास पिछले ठेकेदार ने मृत पशुओं के अवशेष निस्तारण के लिए जमीन ली थी. ग्रामीणों के विरोध के बाद उसे वहां से इसे हटाना पड़ा. लेकिन चूंकि पिछला ठेकेदार हिन्दू था तो इस मामले ने सांप्रदायिक रंग नहीं लिया.
कयूम गौरी ने कुमारी सरहद पर सिकंदर खान का खेत हड्डीखाना खोलने के लिए लीज पर लिया.इससे पहले उसने हड्डीखाना शहर में बड़ली मोहल्ले के पास खोलने का प्रयास किया था लेकिन वहां के रहवासियों ने बदबू की शिकायत कर विरोध करना शुरू कर दिया. इसके चलते उसे हड्डीखाना शहर से बाहर शिफ्ट करना पड़ा.
पिछला ठेका 20 लाख रूपय में उठा था. एक साल बाद यह रकम 59 लाख पर पहुंच गई. अचानक हुई तीन गुना वृद्धि को देख कर कोई भी बता देगा कि यहां बढ़िया भ्रष्टाचार हुआ है. यहां से खाल उतारी हुई गाय की लाशों की फोटो वाट्सएप्प पर वायरल हो गई. इसके आलावा भट्टी पर चढ़े हुए एक कढाई की फोटो भी वायरल की गई. इसके अनुसार गायों को इसी कढाई में उबाल कर मारा जा रहा है.
वाट्सएप्प पर आए मैसेज का मजमून इस तरह से था-

  •  “नागौर के निकटवर्ती एक मुस्लिम बहुल ग्राम कुम्हारी में आज एक बड़ी दुखद घटना हुई है. गांव से एक किलोमीटर दूर एक फार्म हाउस में लगभग 200 गायों का कत्लेआम हो रखा है. है..कड़ाहियां चढ़ी हुई है.
  • इस घटना का पता लगे हुए मात्र एक घंटा भी नहीं हुआ है कि बड़ी संख्या में लोग इक्कठे हो चुके हैं. यह खबर आस-पास के गांवों में आग की तरह फ़ैल रही है व बड़ी संख्या में आसपास के लोग इक्कठा हो रहे हैं.
  •  हालांकि बड़ी संख्या में पुलिस फ़ोर्स भी पहुंच रही है लेकिन कुम्हारी के आसपास के सभी गांव हिन्दू बहुल लोगों के होने की वजह से किसी बड़ी घटना से इंकार नहीं किया जा सकता है. “

   
इस मैसेज के वायरल होने के अलावा शिवसेना ने अपने नेटवर्क के सहारे आस-पास के गांवों में यह खबर फैलाई कि कुमारी में मुसलमानों ने 250 गायों को काट दिया है. रात तीन बजे से लोगों का जमावड़ा शुरू हो गया जिसने सुबह 12 बजे तक 10 हजार की भीड़ की शक्ल ले ली. बाद की जांच से पता लगा की वहां पाए जाए 175 कंकालों में गाय के अलावा भैंस,बकरी,ऊँट और भेड़ के कंकाल शामिल हैं. जोधपुर रोड पर स्थित कृष्ण गोपाल गौशाला ने चार दिन में 52 गायों के शव नष्ट करने के लिए ठेकेदार को दिए थे. सारा मामला एक अफवाह पर आधारित था. उस दिन जो घटा उसे आप दो बयानों समझ सकते हैं-

एक चश्मदीद का बयान-

सुबह सात बजे की बात है. खेत की मेड पर खड़े मेरे ताऊ जी ने मुझसे कहा कि कुमारी चालों मुसलमानों ने 250 गायें काट दी हैं. मैं 9 बजे तक कुमारी पहुंच गया. वहां उस समय पांच हजार से कम आदमी क्या रहे होंगे. चारों तरफ गायों की लाशें पड़ी हुई थी. बदबू उठ रही थी. कई शव बिना खाल के थे. एक खड्डे में गायों की अंतड़ियाँ और अन्य अंग बिखरे हुए थे. कुल मिला कर ऐसा दृश्य था कि कोई भी देख कर उत्तेजित हो जाता.

सुबह 10 बजे लोगों ने एक साथ मिल एक गांव पर हमला कर दिया. भीड़ इतनी उत्तेजित थी कि गांव के एक भी स्ट्रीट लेम्प को सलामत नहीं छोड़ा गया. काच की सभी खिड़कियाँ तोड़ डाली गई. बिजली सप्लाई को बंद कर दिया. बाहर लगे मीटर तोड़ डाले गए. तीन बाइक बाहर थीं. तीनों को आग के हवाले कर दिया.

जब हम गांव में घुसे तो नारे लगाते हुए घुसे. कई मुसलमान बाहर खड़े थे वो अपने घरों की तरफ भागने लगे. सब दरवाजे बंद हो गए. दूकाने बंद हो गई. दंगाई गांव के लोगों के पीछे भागने लगे. मेरे सामने एक आदमी ने घर में घुस रहे एक मुसलमान की टांग पकड़ ली. लेकिन उसने झटके से टांग छुड़वा ली और अंदर घुस गया. अगर उस समय वो पकड़ में आ जाता तो जिंदा नहीं बचता. पुलिस वाले पीपल के पेड़ के नीचे खड़े थे. उन्हें पता था कि अगर बीच में बोले तो लोग हमें भी मारेंगे.

सुबह ही खीमसर एसएचओ लोगों को समझाने के लिए आया था. लोगों ने उसे घेर लिया और चारों तरफ से थप्पड़ और घूंसे बरसाने शुरू कर दिए. इसके बाद उसे नीचे गिरा कर लातो से पीटा गया. इस मारपीट के दौरान उसका सर फट गया. इसके बाद वो भाग खड़ा हुआ.लोग माँ-बहन की गलियां दे रहे थे. भीड़ में बार-बार आवाज आ रही कि इनके घर जला दो. बोलो गौ माता की जय. जय श्री राम. तेजा जी महाराज की जय.

अब ऐसा लगने लगा था कि कुछ ही समय में कुमारी गांव जल कर ख़ाक हो जाएगा. इतने में पुलिस ने दंगाइयों का रास्ता रोक लिया और बड़ी मशक्कत के बाद उपद्रवियों को वापस सरहद के पास खदेड़ दिया.

भीड़ गांव से लौटी तो उत्तेजना दोगुनी थी. हड्डीखाने के किनारे पर नगर पालिका की जेसीबी और ट्रेक्टर खड़े थे. यह जेसीबी यहां खड्डे खोदने के लिए आई थी. इन खड्डों में मवेशियों के बिना काम के अंगों को दफनाया जाना था. यह माहौल तैयार किया गया कि नगर परिषद भी मुसलमानों के के साथ है. इसके बाद उपद्रवियों का पूरा जत्था जेसीबी की तरफ भागने लगा. लोगों ने दूर से जेसीबी के ऊपर पत्थर फेंकने चालू कर दिए. स्थानीय विधायक हनुमान बेनीवाल ने लोगों से अपील की कि वो जेसीबी को ना जलाएं. पर उनकी बात को ख़ारिज कर दिया. जेसीबे पर हो रही पत्थरबाजी को देख कर ड्राइवर ने जेसीबी को बचा ले जाने का प्रयास किया. लोग जेसीबी के सामने खड़े हो गए. उन्होंने ड्राइवर को नीचे पटक कर पीटना शुरू कर दिया. ड्राइवर ने चिल्लाना शुरू किया कि वह हिन्दू है. काफी पिटाई के बाद उसे छोड़ दिया गया क्योंकि वह हिन्दू था.

इसके बाद जेसीबी के नीचे तुड़े का ढेर लगाया गया और आग लगा दी गई. इससे जेसीबी पूरी तरह से जली नहीं. ड्राइवर ने मौका देख कर फिर से बचा ले जाने का प्रयास किया. जेसीबी को चालू हालात में देख कर लोग फिर से भड़क गए. पास ही खड़ी मोटर साइकिलों से पेट्रोल निकाला और जेसीबी पर छिड़कना शुरू कर दिया. इस दौरान वहां पुलिस आ गई और इस तरह से जेसीबी जलाने का प्रयास भी नाकाम हो गया. इस दौरान लोग टैक्टर के पास पहुंच गए. पहले टैक्टर को बड़े-बड़े पत्थरों के जरिए तोड़ा गया. इसके बाद डीजल टैंक को खोल कर उसमें जलती सलाई डाल दी गई. इसके बाद डीजल बाहर की तरफ उछल गया. लेकिन टैक्टर जला नहीं. इस कार्रवाही में एक लडके का हाथ जल गया. इस दौरान जेसीबी की रखवाली कर रहा पुलिस दस्ता भाग टैक्टर के पास पहुंच गया.

लोग ट्रेक्टर को छोड़ कर जेसीबी की तरफ भागे. इस बार जेसीबी को अच्छे से पेट्रोल छिड़क कर जला दिया गया. पुलिस जेसीबी बचाने के लिए दौड़ी. इधर टैक्टर को आग के हवाले कर कर दिया गया. इसके बाद पुलिस आराम से बैठ गई.

हम लोग सरहद पर बैठे हुए थे. हमने देखा कि कुमारी गांव के कुछ लोग गली में खड़े हो कर हमारे मजमें को देख रहे हैं. इतना देखते ही 2-3 हजार आदमी एक साथ उठ कर कुमारी की तरफ दौड़ाने लगे. हथियारों और पत्थरों से भरी गाड़ियाँ भी उसी तरफ भागने लगी. लग रहा था कि गांव पर फिर से हमला हो जाएगा. दृश्य एकदम फ़िल्मी था. पुलिस की गाड़ियों ने लोगों का रास्ता रोक लिया. इसके बाद लोग वापस लौट आये.

स्थानीय विधायक हनुमान बेनीवाल वहां लोगों की समझाइश के लिए पहुंचे हुए थे. उन्होंने एक मांग पत्र तैयार किया जिसमें मामले की निष्पक्ष जांच करवाने, मवेशियों के शवों का पोस्त्मर्तम करवाने और हड्डीखाने के लिए लीज पर ली गई भूमि को गौचर घोषित करने की मांग रखी गई. इसके अलावा कुमारी से सटे मुस्लिम बहुल गांव बासनी में पुलिस चौकी स्थापित करने की मांग भी रखी गई. बेनीवाल जनता के सामने मांग पत्र का मसौदा पढ़ ही रहे थे कि वहां खीमसर से शिवसैनिकों के जत्थे ने उनसे माइक ले कर लोगों को संबोधित करते हुए पूछा कि अगर यहां गायों की जगह आपकी माँ-बहन होती तो क्या करते? भीड़ से जवाब आया कि काट देते. इस पर उन्होंने इस जत्थे ने कहा कि तो क्या गाय आपकी माँ नहीं है. देख किसे रहे हो काट दो इन सब को. भीड़ में उत्तेजना चरम पर थी. बेनीवाल ने मंच पर माइक फेंकते हुए मंच छोड़ दिया. इसके बाद समझाईश हुई और मामले को शांत किया गया. दूसरे दिन अखबार में बेनीवाल का बयान छपा था, ” किसी भी कीमत पर कौमी एकता को टूटने नहीं देंगे.

इसी सिलसिले में हुई मुलाकात में उन्होंने कहा कि उन्हें घटना की जानकारी सुबह सात बजे मिल गई थी. उस समय वो जयपुर में थे. वहां से 250 किलोमीटर का सफ़र तय करके वो 1 बजे घटना स्थल पर पहुंच गए. वो दावा करते हैं, ‘अगर उस जगह पर हनुमान बेनीवाल नहीं होता तो कोई ताकत दंगे को रोक नहीं सकती थी.’ शाम को प्रसाशन के साथ हुए समझौते के बाद लोग वहां से बिखर गए और दंगा किसी तरह से टल गया था.

एक पीड़ित का बयान….

मैं इस मामले पर प्रसाशन का वर्जन लेने के लिए कलेक्टर के दफ्तर में था. कलेक्टर राजन विशाल ने मुझे बताया कि वहां कुल 175 शव और कंकाल मिले हैं. शुरुवाती मुआयने के अनुसार सभी पशु मृत थे. ठेकेदार के पास इन पशुओं की रसीद मिली है. उन्होंने दावा किया कि प्रसाशन की सक्रियता की वजह से दंगा टल गया था.
एसपी राघवेन्द्र सुहासा से मिली जानकारी के अनुसार सुबह 100 पुलिस के जवान वहां मौजूद थे. दोपहर तक इनकी संख्या 250 थी. शाम के समय पुलिस के 350 जवान मौके पर मौजूद थे. हालांकि इस मामले में दर्ज की गई सभी चार एफआईआर में आईटी एक्ट की किसी भी धारा का कोई जिक्र नहीं है. मैंने जब उनसे इस बाबत सवाल किया तो उनका कहना था कि चार्जशीट अभी बनी नहीं है. अभी हम और भी धाराएं जोड़ने वाले हैं. श्री सुहासा एक सुलझे हुए पुलिस अफसर हैं. उन्होंने उलझन से बचने के लिए मेरा सेलफोन बाहर रखवा दिया जिसे मैं वॉईस रिकॉर्डर की तरह इस्तेमाल कर रहा था. मैंने फ्लाइट मोड़ का विकल्प उनके सामने रखा तो उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया. इसके बाद उन्होंने मेरे काम, पते और पते के बारे अच्छी पूछताछ की.

ठेकेदार कयूम गौरी, खेत मालिक सिकंदर और हमीद फिलहाल नागौर जेल में हैं. मैंने उन्हें पूछा कि इन तीनों का अपराध क्या था तो उन्होंने मुझे जानकारी दी कि राजस्थान में गौ हत्या निषेध के लिए ख़ास एक्ट बना हुआ है. इसके तहत गाय के शव से चरबी निकलना, उसके शव के साथ विभत्स्य व्यवहार करना कानूनी जुर्म है. ये तीनों लोग इसी एक्ट के तहत जेल में थे. हालांकि मुझे नहीं समझ में आया कि खेत के मालिक ने गायों के शव के साथ विभत्स्य व्यवहार कैसे किया होगा?

मैं कलेक्टर के दफ्तर से निकला ही था कि वहां कुमारी गांव से आये लोगों का प्रतिनिधि मंडल कलेक्टर के पास ज्ञापन देने पहुंचा हुआ था. यहीं मेरी मुलाकात सईद राठौड़ से हुई. वो भाजपा के ग्रामीण उप जिला प्रमुख हैं. मैं उनके साथ ही कुमारी पहुंचा. यहां मेरी मुलाकात धर्माराम से हुई. धर्माराम फिडोद के रहने वाले हैं. उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने चार दिन पहले ही गांव में मिठाई की दूकान खोली थी. उद्घाटन के दौरान आए मुस्लिम रहवासियों ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वो बेफिक्र हो कर धंधा करें.

सईद मुझे बताते हैं कि उन्होंने घटना के दिन ही गांव में मीटिंग बुलाई थी ताकि यह हड्डीखाना गांव से हटवाया जा सके. मृत पशु गांव वालों के लिए परेशानी का सबब बने हुए थे. सुबह जब लोग सरहद पर जमा होने लगे. तो सात बजे सईद गांव के अन्य लोगों के साथ जमावड़े के बीच पहुंचे. उन्होंने वहां कहा कि हम तो खुद चाहते हैं कि यह हड्डीखाना यहां से हटे. उन्होंने जमा हो रहे लोगों से कहा कि पूरा गांव आपके साथ है. लेकिन जब सईद को पता लगा कि मामले ने दूसरा मोड़ ले लिया है तो वो वहां से चले आए.

इसके बाद सुबह आठ बजे गांव के 20 आदमी कलेक्टर के पास सुरक्षा की मांग को ले कर पहुंचे. उनके वापस गांव पहुंचने तक हमला हो चुका था. मोटरसाईकिल में लगी आग की वजह से पूरे गांव में धुवां हो गया था. सईद को बड़ी अनहोनी का अहसास हुआ तो वो काफी देर गांव के बाहर ही रुके रहे.

जैनुअलआबदीन मुझे बताते हैं कि हर साल बारिस(चौमासे) के समय आसपास के गांव के लोग हमारे गांव में अपनी गायों को छोड़ कर चले जाते हैं. पूरा गांव चंदा करके चार महीने तक गायों के लिए चारे की व्यवस्था करता है. इसके लिए हर साल तीन लोगों को 8 हजार रूपए माहवार नौकरी पर रखा जाता है ताकि गायों का ध्यान रखा जा सके. इस मामले ने हमारी इज्जत पर बट्टा लगा दिया. अब लोग क्या कहेंगे? कुमारी वाले गायें मारते हैं.

सफाकत अली ने बताया कि घटना के दिन उन्हें सुबह 9 बजे तक पता भी नहीं था कि क्या हो रहा है. इसके बाद अचानक भीड़ गांव में घुस गई. लोग मुसलमानों को काटने के नारे लगा रहे थे. देखते ही देखते गांव के हर घर में अंदर की तरफ ताले लग गए. हम लोग शाम तक बाहर नहीं निकले. पूरा दिन हमने किस दहशत में निकला है ये या तो खुदा जनता है या फिर हमारा दिल.

सईद मुझे बताते हैं जब पुलिस ने उपद्रवियों को गाँव से बाहर निकाल दिया तो कुछ लोग हिम्मत करके बाहर निकले. हम घर-घर गए. गाँव ले 50 आदमी इकठ्ठा हो कर सरहद पर मौजूद लोगों को समझाने जाने का फैसला किया. वहां के लोग पड़ोस के गांवों से थे. कई हमें जानते थे. रोज की उठ-बैठ है हमारी उनके साथ. जैसे ही हम गाँव से निकले वहां मौजूद लोग और गाड़ियाँ ‘जय गौ माता’ का नारा लगाते हुए हमारे तरफ दौड़ने लगी. लोगों ने हाथों में लाठियां और दूसरे हथियार ले रखे थे. यह देख कर हम लोग फिर से घर लौट आए. जो हुआ उसका दुख नहीं है. लेकिन वो लोग हमारी बात तक नहीं सुनना चाहते थे. उनमें से कई ऐसे थे जो मुझे भाई कहते थे.
सफाकत अपनी बात खत्म कर ही रहे थे कि अब्दुल रउफ ने कहना शुरू किया, ‘हमारे गांव में 300 घर हिन्दू हैं कभी ऐसी घटना नहीं हुई.92 के समय भी इतना तनाव था पर गांव का माहौल नहीं बिगड़ा. शाम के वक़्त हमने देखा कि गांव में रहने वाले नायक(हिन्दू अनुसूचित जाती ) घर छोड़ कर जा रहे हैं. गांव के बड़े-बूढों ने समझाया कि गांव छोड़ कर जाने की जरुरत नहीं है. इतने साल जैसे रहते आए हैं आगे भी वैसे ही रहेंगे. घटना के अगले दिन गांव में काम करने वाले मजदूर नहीं आए. मैंने खुद फोन करके कहा कि काम नहीं करोगे तो बच्चों का पेट कैसे पालोगे? गांव में किसी की हिम्मत नहीं जो तुम्हे कुछ कहे. कल ही काम पर लौटो. ऊंच-नीच तो होती रहती है साहब पर सालों से बने रिश्ते खत्म नहीं होते.’

मैं इन लोगों से बात कर ही रहा था कि विष्णु और सुमेर नायक वहां पहुंच गए. दोनों दोपहर की छुट्टी में घर खाना खाने के लिए आए हुए थे. अब काम पर लौटने का समय हो रहा था. दोनों मजदूर नायक बिरादरी से थे जिसे ‘नीची जात’ कहा जाता है. यहाँ रहने वाले ज्यादातर हिन्दू परिवार अनुसूचित जाती के हैं. विष्णु कहते हैं, ‘हमारे गांव में पहले भी हिन्दू और मुसलमानों में लड़ाई होती रही हैं पर हमने कभी उसे ऐसा रंग नहीं दिया. गांव का सरपंच हमेशा हमारे पक्ष में रहा, जबकि वो खुद मुसलमान है. कल की भीड़ में गांव का कोई भी हिन्दू शामिल नहीं था. मैं शुरुवात में वहां गया तो था पर जब मामला गलत दिशा में बढ़ने लगा तो मैं लौट आया. कल आई भीड़ ने हमारे घरों पर भी पत्थर फेंके. हमें गलियां दी. कहा कि हम भी मुसलमानों से मिले हुए हैं. हम हिंजड़े हैं जो कुछ नहीं कर सकते.’

अंत में मैं महबूब के घर गया. उनकी मोटरसाइकिल इस फसाद में जल गई थी. इअके अलावा उपद्रवियों ने उनकी माँ को लाठी से पीटा. महबूब मेरे आने के कुछ ही समय पहले उस सुरक्षित स्थान से लौटे थे जहां उन्होंने शरण ले रखी थी. मेरे और अन्य गांव वालों के लाख प्रयास के बावजूद महबूब मुझसे बात करने को राजी नहीं हुए. मैं उनकी बैठक में आधे घंटे बैठा रहा. इस दौरान अलग-अलग आदमी उनसे मिलने गए ताकि वो मुझसे बात करने को तैयार हो जाएँ. लेकिन वो नहीं हुए. उन्होंने पुलिस को भी बयान देने से मना कर दिया. मैं बैठक में रखे सजावटी सामान को देख रहा था. इसमें कुछ ईनाम शामिल थे जो स्थानीय क्रिकेट प्रतियोगिता में जीते गए थे. सामने महेंद्र सिंह धोनी का पोस्टर चिपका हुआ था. मुझे याद आया कि बचपन में मुझे बताया गया था कि भारत-पकिस्तान मैच के दौरान पाकिस्तान के जीतने पर बासनी-कुमारी पटाखे फोड़े जाते हैं. यह बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आता था.

कुमारी से नागौर वापसी के सफ़र में मैं सोच रहा था कि इस पूरे प्रकरण में महज एक आदमी के मारे जाने की खबर है. फिलहाल पुलिस रिकॉर्ड में तो यही दर्ज है. इस तरह यह घटना राष्ट्रीय मीडिया के लिहाज से कोई अहमियत नहीं रखती. पर इस दौरान जो दिल टूटे वो किसी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है. इस बार आरिफ़ के घर पर बनी ईद की सेवैयों का जायका शायद वो ना रहे जिसका मैं इतने सालों से आदी हो चुका हूँ. खुर्शीद भी दीपावली के दिन नए कपड़े पहने दोस्तों की टोली में एक-दूसरे के घर राम-राम करने हमारे साथ जाएगा इस बात पर मुझे शक है. तारकिशन जी की दरगाह पर लगने वाले उर्स की वो जुम्मेरात की कव्वाली मुझे सदाएं तो देंगी पर मैं उस सहजता से जा पाऊंगा यह तय नहीं है. दरगाह के बाहर बैठा सीडी की दूकान वाले चचा क्या मुझे रोक कर कहेंगे कि नुसरत की नई सीडी आई है. कहने को सिर्फ एक आदमी मरा है पर एक ही झटके में काफी कुछ क़त्ल हो चुका है……

बहरहाल मामले की ताजा अपडेट यह है कि इस मामले में पकडे गए सभी 51 लोगों को जमानत पर रिहा कर दिया गया है. इन सब पर दंगे भड़काने, सार्वजानिक संपत्ति को नष्ट करने सम्बन्धी धाराओं में मुकदमें हैं. यह जमानत शिवसेना के नागौर बंद के आव्हान से ठीक एक दिन पहले मिली है. वैसे भी इस देश के अल्पसंख्यकों ने न्याय की उम्मीद काफी पहले ही छोड़ दी है. हाशिमपुरा में लोग खुद मर गए थे. बाबरी मस्जिद हवा के झोंके से गिर गई थी. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में “न्याय” सबसे बड़ा धोखेबाज शब्द बन कर उभरा है.
साभार : पत्रकार Praxis

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