संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

दिल्ली : इस्पात उद्योग मज़दूर हुंकार रैली

               अभी तो ली अंगड़ाई है! आगे और लड़ाई है!!

दिल्ली के वज़ीरपुर औद्योगिक इलाके में 7 जनवरी 2015 को मज़दूर हुंकार रैली के माध्यम से औद्योगिक इलाके के मज़दूरों तक एकजुटता का सन्देश दिया गया. वज़ीरपुर औद्योगिक इलाके के राजा पार्क में ही सभा की गयी, सामूहिक रसोई के माध्यम से ही सामूहिक भोज का भी आयोजन किया गया. स्टील लाईन के अलग-अलग तरह के काम करने वाले मज़दूरों की विशाल संख्या ने इस कार्यक्रम में भागीदारी की. यूनियन के कमेटी सदस्यों अम्बिका (अध्यक्ष), बाबूराम (महासचिव), शिवानी (क़ानूनी सलाहकार), तथा सनी, फ़िरोज, सन्तोष, मनीराम, शिवकुमार आदि ने सभा को सम्बोधित किया. इसके आलावा करावल नगर मज़दूर यूनियन, ऑटो मज़दूर संघर्ष समिति, नौजवान भारत सभा और बिगुल मज़दूर दस्ता के प्रतिनिधियों ने भी आयोजन में शिरकत की. विहान सांस्कृतिक टोली के सदस्यों ने क्रान्तिकारी गीतों की प्रस्तुती की. यूनियन की तरफ़ से मज़दूरों के पहचान कार्ड भी जारी हुए, तथा 300 के क़रीब मज़दूरों ने यूनियन की नयी सदस्यता ली.

साथियो, बेहद खुशी की बात है कि ‘दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन’ का पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) हो गया है। मालिकों, दलालों, दलाल ट्रेड यूनियनों की लाख कोशिशों के बावजूद ट्रेड यूनियन पंजीकृत हो गयी है। गत 24 दिसम्बर को श्रम विभाग, नीमड़ी कॉलोनी में यूनियन का पंजीकरण हुआ। ट्रेड यूनियन का पंजीकरण नम्बर F-10/DTRU/NWD/37/14 है। यूनियन का पंजीकरण स्टील उद्योग के मज़दूरों की फौलादी एकजुटता का ही परिणाम है। जाहिरा तौर पर स्टील लाईन के सभी मज़दूरों की एक साझा यूनियन आज वक्त की ज़रूरत थी। जब सभी तरह के मालिक एक हो सकते हैं तो मज़दूर गरम रोला, ठण्डा रोला, तेज़ाब, तपाई, तैयारी, रिक्शा आदि के नाम पर क्यों बंटे रहें? 2014 का गरम रोला का मज़दूर आन्दोलन स्टील लाईन के ही अन्य तरह के काम करने वाले मज़दूर साथियों के साथ खड़े होने के कारण ही इतना लम्बा चल पाया था और अपनी कुछ माँगों को मनवा पाया था। इसी आन्दोलन के बाद 27 अगस्त की आम सभा में यह तय हुआ कि ऐसी यूनियन बनानी होगी जो स्टील उद्योग के सभी तरह के काम करने वाले मज़दूरों का प्रतिनिधित्व करे। दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन ऐसी ही यूनियन के रूप में उभरकर सामने आयी। आज इसके सदस्य गरम रोला, ठण्डा रोला, तेज़ाब, तपाई, तैयारी, रिक्शा, पोलिश आदि यानी हर तरह के मज़दूर साथी हैं तथा सदस्यता संख्या में लगातार विस्तार हो रहा है।

वैसे तो मज़दूरों की असली ताक़त सड़क पर ही दिखती है लेकिन यूनियन का पंजीकरण होने के बाद मज़दूरों के पास श्रम कानून तथा विभिन्न मामलों में प्रतिनिधित्व देने वाली अपनी एक ताकत होगी। हमारे मज़दूर भाई तरह-तरह के दल्लों के चक्कर में फंसने की बजाय यूनियन के माध्यम से निःशुल्क किसी भी तरह की कानूनी मदद ले सकेंगे और अपने केस लगा सकेंगे।

संघर्षों से तप कर निकली है – ‘दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन’

वह हड़ताल जिसने वज़ीरपुर के चक्के जाम कर दिये थे, जिसे याद कर मालिक आज भी थरथरा जाते हैं, वह हड़ताल जिसमें मज़दूरों ने अपनी सामूहिक रसोई चलाकर मालिकों के मंसूबों पर पानी फेर दिया था, यह हड़ताल थी जून 2014 की गरम रोला के मज़दूरों की हड़ताल। वह हड़ताल इतनी मजबूत तभी हो पायी थी जब गरम रोला मज़दूरों के समर्थन में ठण्डा रोला, प्रेस, तेज़ाब, तपाई से लेकर पोलिश और रिक्शा के मज़दूर उतर गये थे। इससे गरम रोला की हड़ताल इलाकाई हड़ताल में तब्दील हो गयी थी। देश की लचर कानून व्यवस्था के कारण मालिकों ने समझौते पर हस्ताक्षर के एक सप्ताह बाद तक भी फैक्टरियों को नहीं चलाया। चलने के बाद बहुत सी फैक्टरियों में मज़दूर 8 घण्टे के सवाल पर अड़े रहे। मालिकों की मनमानी के सामने झुकने की बजाय हमारे बहुत से बहादुर भाइयों ने अपनी नौकरी तक को लात मार दी। अन्त में वे मालिक जो अप्रैल माह में एक पैसा बढ़ाने पर राजी रहीं थे उन्होंने 1500 रुपये की बढ़ोतरी की। जिन मज़दूरों को काम से निकाला गया था यूनियन की और से उनके केस श्रम विभाग में लड़े जा रहे हैं।

स्टील लाईन के हर तरह के काम करने वाले मज़दूरों की आवाज़ को यूनियन ने उठाया है और इसी का परिणाम है कि अलग-अलग तरह के काम करने वाले मज़दूर साथी यूनियन के सदस्य हैं। यूनियन ने किस्म-किस्म के उन दलालों और 20 प्रतिशत खाने वाले धन्धेबाजों का पर्दाफाश भी किया है जिन्होंने मज़दूरों का नाम लेकर उनकी खून-पसीने की मेहनत को लूटने को ही अपना पेशा बना रखा था। ‘खिसियानी बिल्ली खम्बा नोंचे’ को चरितार्थ करते हुए इन दलालों और मालिकों के तलवे चाटने वालों ने अपना लाख दम लगाया लेकिन ये हमारी यूनियन का पंजीकरण नहीं रोक पाये। यूनियन का पंजीकरण अपने आप में ही इन दलालों के मुँह पर एक करारा तमाचा है। यूनियन को कमज़ोर करने की इनकी कोशिशें अब भी जारी हैं। ये दल्ले और इनके आका अब यह बात उड़ा रहे हैं कि यूनियन की वजह से ही इलाके में चीन का माल आ रहा है! लेकिन इनसे पूछा जाना चाहिए कि बिजली का सामान, मोबाइल पफोन, खिलोने और बहुत सा सामान भी तो चीन का आ रहा है, क्या वहाँ भी यूनियन हड़ताल करने गयी थी? और क्या यूनियन बनने से बहुत पहले स्टील उद्योग में ही चीन का माल नहीं आ रहा था? असल में विदेशी माल के आने का कारण मालिकों के ही चहेते मोदी की लुटेरी नीतियाँ हैं जो देश को लूट की चरागाह बनाने पर आमादा है। यदि इस्पात उद्योग के मज़दूर अपनी एकता को बढ़ाते रहे, उसे मज़बूत करते रहे तो हमारी एकता के सामने लूटेरा वर्ग आगे भी मुँह की खाने वाला है।

इसको भी देख सकते है