संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

मोदी सरकार ने कार्पोरेट मुनाफे के लिए बनाई कामर्सियल कोल माइनिंग निति : छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन

9 अप्रेल 2018 को छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के द्वारा “निजी व्यापार के लिए कोयला उत्खनन व उर्जा निति, दुष्प्रभाव व भविष्य की चुनौती’’ विषय पर एक दिवसीय परिचर्चा का आयोजन वृन्दावन हॉल, रायपुर में आयोजित की गई l परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोयला देश की बहुमूल्य संपदा है, जिसका उपयोग केवल जनहित व  देश की ज़रूरतों के लिए निष्पक्ष पारदर्शी प्रक्रिया के आधार पर ही किया जाना चाहिए | परन्तु इन सभी मूल सिद्धांतों को दरकिनार कर केन्द्रीय सरकार की कोयला खदान नीलामी / आवंटन नीति में देश के औद्योगिक विकास, पर्यावरण एवं दुर्लभ वन क्षेत्रों के संरक्षण का या स्थानीय जन-समुदायों की कोई जगह ही नहीं है | मोदी सरकार नीलामी प्रक्रिया को दरकिनार कर राज्य सरकारों को आवंटन के माध्यम से कोल ब्लॉक दे रही हैं जो बाद में पिछले दरवाजे से MDO के द्वारा चुनिन्दा कंपनियों के हाथो में ही सोंपी जा रही हैं l

प्रसिद्ध उर्जा विशेषग्य सौम्या दत्ता ने बताया कि विश्व के सभी देश वैकल्पिक अक्षय उर्जा (सौर उर्जा, वायु ऊर्जा, इत्यादि) की तरफ़ तेज़ी से अग्रसर हैं लेकिन भारत सरकार की भूमिका अति चिंताजनक है | उन्होंने कहा कि देश को उर्जा नीति जनतांत्रिक नहीं है बल्कि पूँजी के आधारित बड़े उद्यमों तक केन्द्रित है | इससे जुड़ी समस्याओं और चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री अरविन्द नेताम ने कहा कि पूरी नीति का प्रमुख प्रभाव जन-विरोधी है जिसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव आदिवासी क्षेत्रों के जन-समुदाय को झेलना पड़ता है, जैसे कि सरगुजा में पिछले 1 साल से धारा 144 लागू रहने से साफ़ है |

खदान आवंटन से जुड़े तथ्य प्रस्तुत कर रिसर्चर प्रियाँशु ने कहा कि खदान नीलामी प्रक्रिया पूर्णतया विफल रही | छत्तीसगढ़ में केवल 5.4 MTPA क्षमता नीलामी से आवंटित हुई जबकि 117 MTPA क्षमता को अलोटमेंट रूट के ज़रिये विभिन्न राज्य सरकारों के सार्वजनिक कंपनियों को आवंटित किया गया जिन्होंने MDO के ज़रिये निजी कंपनियों के साथ अनुबंध कर लिए | छत्तीसगढ़ में अधिकाँश खदानें एमडीओ के ज़रिये केवल अदानी को ही मिली है | इस रास्ते से राज्य सरकार को कम राजस्व प्राप्त होता है जिस पर राज्य सरकार चुप्पी साधे हुए है |

जन-संगठनों से आये लोगों ने भी अपने अनुभव रखते हुए कहा कि कोयला उत्खनन के नाम पर लाखों एकड़ जंगल ज़मीन बर्बाद हो चुकी हैं जिससे हज़ारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा है | निजी व्यापार हेतु कोयला नीति से यह विनाश और भी तीव्र होगा | कोरबा से लक्ष्मी चौहान ने कहा कि खदान आवंटन प्रक्रिया में राज्य सरकार सभी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और संवैधानिक अधिकारों को दरकिनार कर अवैध रूप से स्वीकृतियाँ दिलाने का काम करती है | रायगढ़ से डिग्री चौहान ने बताया कि सरकार धन-बल के उपयोग से फ़र्ज़ी जन-सुनवाइयों का आयोजन कर कंपनी को मदत करती है | हसदेव से उमेश्वर अर्मो ने बताया कि हसदेव अरण्य जैसे नों-गो क्षेत्र में भी खदानों का आवंटन किया जा रहा है जिससे मानव-हाथी संघर्ष चरम सीमा पर पहुँच चूका है | परिचर्चा के बाद “कमर्शियल कोल माइनिंग और एमडीओ” पर पुस्तिका का भी वोमोचन हुआ |

इसको भी देख सकते है