संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

राज्य सुरक्षा के नाम पर लोकतांत्रिक विरोध की गुंजाइश को खत्म करना बहुत ही खतरनाक है : राष्ट्रीय एकजुटता सम्मेलन

रायपुर 31 अक्टूबर 2018। छत्तीसगढ़ के जन आंदोलनों पर बढ़ते राजकीय दमन के खिलाफ राष्ट्रीय एकजुटता सम्मलेन का आयोजन 31 अक्टूबर को किया गया सम्मेलन में चर्चा हुई कि देश में जैसे-जैसे सामाजिक आर्थिक संकट गहराता जा रहा है, इन संकटों से प्रभावित हिस्सों पर राजकीय दमन भी बढ़ते जा रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य जो नैसर्गिक और खनिज संसाधनों में देश के संपन्नतम राज्यों में है वहीं गरीबी अशिक्षा स्वास्थ्य कुपोषण में भी अग्रणी है ,यह भयावह विषमता अपने आप में विशाल मेहनत दलित आदिवासी समुदाय के खिलाफ दमनकारी नीतियों को प्रमाणित करता है। 46% वनों से आच्छादित छत्तीसगढ़ में वनांचलों में रहने वाले कारपोरेट हित साधन के कारण सबसे ज्यादा प्रताड़ित हैं। कारपोरेट मुनाफा सुनिश्चित करने कानूनी प्रावधानों का शासन द्वारा खुले आम उल्लंघन किया जा रहा है। आदिवासियों की खेती और बस्तियां उजाड़ी जा रहीं हैं।इसका विरोध करने पर उन्हें नक्सल कह फर्जी एनकाउंटर में मारने महिलाओं का बलात्कार स्कूली बच्चों की हत्या जैसे कृत्यों को अंजाम दिया जाता है।

प्रदेश में असंगठित मजदूरों की बड़ी फौज है जिन्हें जीने लायक सम्मानजनक न्यूनतम वेतन से वंचित रखा गया है, सरकारी क्षेत्र में ठेका और संविदा प्रथा लागू है जहां न ही सेवा शर्तें हैं न भविष्य की सुरक्षा, पुलिस के सिपाहियों के काम का निश्चित समय नहीं है ।इन विसंगतियों के खिलाफ संगठनों द्वारा आवाज़ उठाने पर संगठन के नेतृत्वकारी साथियों सहित सामान्य सदस्यों को जेल में डाल उन पर अमानुषिक अत्याचार कर समझौते के लिए दबाव डाला जाता है।

इन तमाम विसंतियों उत्पीड़न के खिलाफ अपना जीवन समर्पित कर प्रभावितों के लिए काम करने वाली सुधा भारद्वाज सहित अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं पर फर्जी अपराध कायम कर उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है। इनमें वंचितों प्रताड़ितों के लिए मुकदमा लड़ने वाले वकील और उनके लिए लिखने वाले बुद्धिजीवी, पत्रकार भी हैं। पुलिस और सरकारी वकील बनावटी पत्र को मीडिया में प्रचारित कर इन लोगों पर प्रधानमंत्री की हत्या के साजिश का आरोप मढ़ते है हालांकि खुद के झूठ में विश्वास न होने से अदालत में सबूत नहीं रख सके।

कारपोरेट के पक्ष में सरकार लगातार जनता से झूठ बोल रही है। इतिहास, राष्ट्रीय आंदोलन के नायकों और विज्ञान के खिलाफ लगातार भ्रम फैला युवा पीढ़ी का ब्रेन वाश कर उन्हें गुलाम बनाने के प्रयास हो रहे हैं जो कि पूरी की पूरी पीढ़ी के खिलाफ दमन का घिनौना स्वरूप है।इसी तरह से व्यक्तिगत आजादी और नागरिक सुरक्षा के संवैधानिक मूल अधिकारों पर खाप पंचायतों, जातीय दबंगों, मठाधीशों द्वारा खुले आम उल्लंघन कर जातीय और सामाजिक बहिष्कार के कृत्यों को अंजाम दिया जाता है जिसके कारण हत्याएं, आत्महत्याएं और आर्थिक प्रताड़ना की घटनाएं बढ़ीं हैं। ऐसे कुप्रथाओं के खिलाफ कानून न बनाना दोषियों को खुले घूमने देना भी एक प्रकार से एक नागरिक के प्रति सरकारी दमन ही है।

इस एकजुटता सम्मेलन में अनेक मुद्दों पर सहभागी संगठनों ने अपने अनुभव साझा किये जिनमें प्रमुख रूप से निम्न्लिखित की भागीदारी रही- अमरनाथ पांडे, कविता श्रीवास्तव, असीम राय, कमल शुक्ला, अरविन्द नेताम, रजनी सोरेन, माधुरी बहन, राजेंद्र सायल, नंदकुमार कश्यप, रिनचिन, लिंगराज भाई, उत्तम कुमार, अखिलेश एडगर, जैकॉब कुजूर, प्रतिमा गजबियेl

सम्मलेन में छत्तीसगढ़ पी.यू.सी.एल, जनमुक्ति मोर्चा, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, मजदूर कार्यकर्ता समिति, छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन, छत्तीसगढ़ महिला अधिकार मंच, डब्लू.एस.एस. छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ महिला मुक्ति मोर्चा, जिला किसान संघ राजनंदगांव, गुरु घासीदास सेवादार संघ छत्तीसगढ़, आंबेडकर यूवा मंच बिलासपुर, छत्तीसगढ़ नागरिक सैयुक्त संघर्ष समिति, सामाजिक न्याय मंच रायपुर, पत्रकार सुरक्षा कानून समिति, आल इंडिया लॉयर्स यूनियन, विस्थापन विरोधी आन्दोलन, रेला कलेक्टिव, क्रांतिकारी संस्कृति मंच, दलित आदिवासी संगठन, जाग्रत आदिवासी दलित संगठन, पी यू सी एल राजस्थान शामिल रहेl

सम्मेलन में निम्लिखित प्रस्तावों पर चर्चा के बाद उनपर सहमति दी गयी-

  1. भीमा-कोरेगांव प्रकरण में कथित हिंसा से सम्बंधित सभी जनतांत्रिक अधिकार कार्यकर्ताओं, कर्मचारियों, परिवारों की त्वरित और निशर्त रिहाई की हम मांग करते हैं;
  2. कार्यकर्ताओं, कर्मचारियों, दलितों, मुसलामानों, आदिवासियों के खिलाफ यू.ए.पी.ए. के तहत लगाए गए सभी झूठे आरोपों को वापस लिया जाए;
  3. भीमा-कोरेगांव हिंसा के असली दोषियों, मनोहर भीडे और मिलिंद एकबोटे जैसे हिंदूवादी नेताओं को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ कानून के तहत विधिवत मुकदमा चलाया जाए, जिन्होंने भीमा-कोरेगांव में आगंतुकों पर सुनियोजित ढंग से हिंस भड़काने की साजिश रची;
  4. दमनात्मक कानून — ‘विधिविरुद्ध क्रिया – कलाप (निवारण) अधिनियम, 1967’ (UAPA) को निरस्त किया जाए, और राष्ट्रद्रोह कानून को रद्द किया जाए;
  5. नगरीय-समाज में, जनतांत्रिक अधिकारों के कार्यकर्ताओं के असहमति के स्वरों की अव्भिव्यक्ति को राज्य द्वारा हमले, अपराधीकरण और प्रतिहिंसा पैदा कर और संवैधानिक आज़ादियों को कुचलने पर तत्काल रोक लगे.
  6. छत्तीसगढ़ में पत्रकारों पर लगातार होने वाले कातिलाना हमलों और उन्हें स्वतंत्र पत्रकारिता से वंचित रखने के तौर-तरीकों की यह सम्मेलन घोर निंदा करता है, जिसमें सरकार और मीडिया घरानों की मिली-भगत खुलकर सामने आ चुकी है;
  7. यह सम्मेलन मांग करता है कि सरकारों द्वारा पत्रकार सुरक्षा कानून को पारित किया जाए, जिसका मसौदा पी.यू.सी. एल. ने व्यापक स्तर पर सलाह-मशविरा से तैयार किया है;
  8. यह सम्मेलन वकीलों को अलग-थलग करने और उन्हें बदनाम करने की नीयत से उनके खिलाफ पुलिसिया कार्यवाही और झूठे प्रचार की कड़ी निंदा करता है, और बार कौंसिल और अन्य अधिवक्ता संघों से अपील करता है कि ऐसे मामलों में अधिवक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने विशेष रूप से सरकार से पहल करें;
  9. यह सम्मेलन सभी संघर्षशील-मेहनतकश कर्मचारियों ( आंगनवाडी, प्रेरक संघ, सफाई कर्मचारी, बल-श्रमिक शिक्षक, नर्सेज, सहायक स्वास्थ्य कर्मी,पुलिस कर्मियों और उनके परिजनों, सहायक शिक्षा कर्मी) से एकजुटता दर्शाते हुए उनकी मांगों का समर्थन करते हैं;
  10. यह सम्मेलन सभी जनवादी, लोकतान्त्रिक, शांतिप्रिय संगठनों और नागरिकों से अपील करता है की वे आगामी विधान सभा चुनाव में फासीवादी, अधिनायकवादी, अलोकतांत्रिक, कॉर्पोरेट जगत के उम्मीदारों को परास्त करने चुनावी प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाएं, और संवैधानिक मूल्यों और सिद्धांतों को बरकरार रखने के लिए सघन अभियान छेड़ें;
  11. इस तर्ज़ पर “जन आंदोलनों पर बढ़ते राजकीय दमन के खिलाफ” राष्ट्रीय एकजुटता सम्मलेन देश में प्राय: सभी प्रान्तों में आयोजित किये जायें, और अधिवक्ता सुधा भारद्वाज और भीमा कोरेगांव से सम्बंधित प्रकरण में गिरफ्तार और प्रताड़ित सभी मानव अधिका रक्षकों की रिहाई के लिए छत्तीसगढ़ में सभी नगरों में हर पखवाड़े सत्याग्रह आयोजित कर गिरफ्तारियां दी जायें, जिसमें देश भर सेजनवादी और लोकतान्त्रिक संगठन और व्यक्ति भाग लें.
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