संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

दामोदर घाटी निगम के विस्थापितों का धरना, अनशन

दामोदर घटी के विस्थापित अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की मनसा से दिल्ली आये थे, लेकिन मेधा पाटकर जी और स्वामी अग्निवेश के कहने पर उन्होंने पहले तीन दिन सरकार से वार्ता और धरना कबूल किया। जल संसाधन, आदिवासी मंत्रालय के मंत्रियों एवं उर्जा मंत्रालय के उच्च अधिकारीयों से बात करने और वायदों के सिवा कुछ न मिलने के कारण 20 अक्टूबर को दोपहर बारह बजे से 11 विस्थापित व्यक्ति, धनबाद, जामताड़ा, पुरुलिया और वर्धमान जिला के, ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी। इन व्यक्तियों के नाम हैं चंदना सोरेन, विमोला हंसदा, अजीज अंसारी, कृष्ण सोरेन, किशोर मरांडी, वासुदेव मालिक, हराधन हेम्ब्रुम, हरिपद पल, सुरेश ठाकुर, शम्भुनाथ किश्कु, हबीब अंसारी।

रामाश्रय सिंह घटवार आदिवासी महासभा के सलाहकार ने कहा कि विस्थापित यूँ भी भुखमरी के कगार पर हैं, तो फिर क्यूं न लड़ते हुए अपनी जान दें। सरकार के मंत्रियों के पास वायदे के अलावे देने को कुछ भी नहीं है, लेकिन शायद उन्हें मालूम नहीं की, पेट की भूख वायदे से नहीं रोटी से मिटती है। लोगों को नौकरी चाहिए जीविका का साधन चाहिए वायदे नहीं। आज से हम अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल पर जायेंगे, यही आखिरी चारा है।

राजिंदर सच्चर ने कहा की अगर दामोदर घटी की जनता जिसने देशभक्ति की भावना से देश के विकास के लिए सबसे पहले अपनी जमीन दी और आज उनको दर दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं तो यह बहुत ही शर्म की बात है। कानूनी तौर पर उनका हक उन्हें कब का मिल जाना चाहिए था। दुःख होता है की विस्थापन की समस्या से देश का सबसे वंचित तबका आदिवासी, दलित और मुस्लिम समुदाय आज तक जूझ रहा है। कुलदीप नायर ने भी इस बात का जिक्र किया कि हालात दामोदर, नर्मदा, भाखरा और बहुत सारी नदी परियोजनाओं के विस्थापितों की ऐसी ही हैं। अगर हम इन नदी घाटी परियोजनाओं को विकास की परियोजना मानते हैं तो कहाँ है वहाँ के लोगों का विकास?

अली अनवर, प्रो. अमरनाथ झा, मणिमाला, और कई अन्य गणमान्य साथियों ने आंदोलन को अपना समर्थन जाहिर किया। आंदोलन आने वाले समय में अपना संघर्ष उर्जा मंत्रालय को चिन्हित करके करेगा। योजना यह भी बनायीं जा रही है की झारखण्ड और बंगाल दोनों जगहों पर भी डी.वी.सी. प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोला जाए। तय हुआ कि जब तक लोगों की मांगे पूरी नहीं हो जातीं तब तक धरना और संघर्ष जारी रहेगा।

आंदोलन की मुख्य मांगे हैं:

  1. दामोदर घाटी निगम की परियोजनाओं से विस्थापित परिवारों को ज़मीन के बदले ज़मीन और एक नौकरी जैसे 350 लोगों को 1976 तक दिया गया था, दी जाए।
  2. भूमिहीन और अािश्रत परिवारों को भी नौकरी और आजीविका के साधन मुहैया कराये जाएँ।
  3. दामोदर घाटी निगम के प्रबंधन द्वारा नौकरी के लिए पैनल बनाया जाना असंवैधानिक है क्योंकि उसमे बहुत सारे विस्थापित परिवार शामिल नहीं होते।
  4. गैर विस्थापित लोग जिन्होने गैर कानूनी तरीके से नौकरी प्राप्त की उनको दण्डित किया जाये और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाई की जाये।
  5. निगम में नौकरी का अधिकार विस्थापित परिवारों के अगली पीढ़ी का भी है क्योंकि उनको न्याय नहीं मिला उनके जीवन में, इसलिए उनके वंशजों को भी नौकरी दिया जाना चाहिए।
  6. घटवार समुदाय को पुनः अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) सूची में शामिल किया जाए। 1952 तक उनकी गिनती आदिवासी समाज के साथ हुई है।
  7. भू अधिग्रहण और पुनर्वास कानून 2011 के प्रावधान सभी विस्थापितों जिनको न्याय नहीं मिला, को मिलना चाहिये।
इसको भी देख सकते है