संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

पॉवर प्लांट से विस्थापित एक गांव की कहानी

मुआवजा मिल गया, खर्च भी हो गया अब क्या करें ?

 
टिहरी गढ़वाल जनपद के मुनेठ गांव की हकीकत विस्थापन की त्रासदी और विकास के दावों की असलियत बयाँ करती है। यह गांव कोटली भेल 1 अ परियोजना के अन्तर्गत विस्थापित किये गये गांवों में से एक है। इस परियोजना के तहत 195 मेगावाट बिजली उत्पादित करने का लक्ष्य रखा गया है। इस परियोजना के तहत 11 गांवों की 19589 हेक्टेअर जमीन अधिग्रहीत की गयी है।
मुनेठ गांव में लगभग 300 परिवार हैं जिसमें मुख्यतः रावत, नेगी, बिष्ट परिवार हैं जो कि खेती के साथ-साथ पशु पालन और मजदूरी करके अपनी जीविका चलाते थे। करीब दो साल पहले उनकी खेती योग्य भूमि जो कि भागीरथी नदी के पास थी कोटली भेल 1 अ प्रोजेक्ट में चली गयी। इस गांव में अधिकतर लोगों को 2-5 लाख की राशि मुआवजे में मिली। इस मुआवजे की राशि को लेकर भाई-भाई में झगड़े बढ़ गये। मुआवजे की राशि से लोगों ने फ्रीज, टीवी, दो पहिया वाहन खरीदे तथा शराब की बिक्री भी गांव में बढ़ गई। दो साल बाद ये हालत है कि लोगों की मुआवजे के रूप में मिली राशि खत्म हो गई। लोगों के पास कोई काम नहीं है, पशु के लिए चारा नहीं हैं जिससे कि लोग पशु भी नहीं पाल रहे हैं। मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है। गांव के दो तीन लोगों को बांध में काम मिला है जिनको 3000-3500 रु. मासिक मिल जाते हैं बाकी लोगों के पास कोई काम नहीं है।
गांव में नरेगा द्वारा भी पूरे साल में 15 से 20 दिन काम मिल पाता है। गांव में एक साल तक कोई भी काम नरेगा द्वारा नहीं आया था। अभी एक छोटा काम आया हुआ था जिसमें लोग रास्ते को ठीक कर रहे थे। लोगों के पीने के पानी का जो प्राकृतिक स्रोत (गदेरा) था वो सभी कुछ खत्म हो गया है अब लोगों को 3-4 कि.मी. चल कर पीने के लिए पानी लाना पड़ता है। गांव में दो हैण्डपम्प हैं जिससे लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरत के लिये काफी ऊँचाई से पानी के लिए आते हैं। लोगों को लग रहा है कि सरकार ने हमारे साथ धोखा किया है, क्योंकि उनको अब अपनी जीविका चलाना मुश्किल हो रहा है, उनके पास कोई काम नहीं है, पीने का पानी नहीं है। उनका कहना है कि जब बांध बनने लगेगा तब हम लोगों का गांव में रहना मुश्किल हो जायेगा। बहुत धूल उड़ेगी, बीमारियां होंगी, जब पहाड़ तोड़े जायेंगे तो हम लोगों के घर भी टूट जायेंगे। बांध बनने के बाद जो सड़क बनेगी उससे मेरा गांव भी खत्म हो जायेगा। हम सभी बिखर जायेंगे और न जाने कहां-कहां चले जायेंगे। इसके लिए वे टिहरी डैम तथा उसमें जलमग्न बस्तियों के वासियों का उदाहरण देते हैं। {12 जुलाई 2010 की स्थिति}
उत्तराखंड में 56 पॉवर प्रोजेक्ट के टेंडर रद्द
 
16 जुलाई 2010 का दिन उत्तराखंड की जनता के लिए एक बड़ी जीत के रूप में सामने आया है। इससे उन जन संगठनों तथा आंदोलनों को मजबूती मिली है जो उत्तराखंड में प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय जनता के हकों तथा उनके संरक्षण की लड़ाई लड़ रहे हैं। गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार ने ‘‘सेल्फ आइडेंटीफाइड स्कीम‘‘ के तहत 56 विद्युत परियोजनाओं का आबंटन अनियमित व गोपनीय तरीकों से कर दिया था। अपनी इस गलती को स्वीकार करते हुए उत्तराखंड सरकार ने इन परियोजनाओं के अनुबंधों को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया है।
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