संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

सम्पादकीय : अगस्त 2010

आज भू-बाजारीकरण का पहिया तेजी के साथ गति पकड़ चुका है तथा उदारीकरण दुधारी तलवार की तरह कुछ मुट्ठीभर लोगों को बेहतर तथा पूंजी एवं संसाधनों के केन्द्रीकरण का इस्तेमाल ‘सात समुंदर पार’ की ताकतों द्वारा तथाकथित राष्ट्रीय ताकतों के गठजोड़ से किया जा रहा है। फलतः इसके विरोध-प्रतिरोध में अपने जीवन, जीविका, जल, जंगल, जमीन की हिफाज़त के लिए दोटे एवं बड़े जन संघर्ष खड़े हो चुके हैं।

इनज न संघर्षों के साथियों ने कई बार यह महसूस किया है कि उनके पास नतो अन्य जन संघर्षों की जानकारी पहुंच पाती है और न वे स्वयं अपने संघर्षों, हस्तक्षेपों तथासंघर्ष जनित अनुभवों को अन्य जन संघर्षों के साथ साझा कर पाते हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी के तमाम आध्ुानिक तौर-तरीकों तक बहुत कम की ही पहुंच है। सूचना प्रौद्योगिकी में ‘सिद्धहस्त’ लोगों की मदद लेने पर कई जनसंघर्षों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है। बिना प्रतिबद्धता एवं समर्पण के जन संघर्षों में सूचना प्रौद्योगिकी के विभिनन तौर-तरीकों यथा- ईमेल, वेब साइट्स या साक्षात्कार तथा फिल्मों का इस्तेमाल करने वालो पर भू-बाजारीकरण का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखायी देता ह।। कई मामलों में अपनी जमीन, जंगल, नदी,पहाड़ न छोउ़ने का संकल्प लेने वाले जन संघर्षों के बारे में प्रचारित कर दिया जाता है कि वे बेहतर मुआवजे के लिए संघर्षरत हैं। इस तरह के मामलों में मीडिया की मुख्यधारा का मुख्य हिस्सा ही नहीं, बल्कि ऐसे लोग भी भागीदार बन जाते हैं जो शुरू में जन संघर्षों के हमदर्द के रूप में प्रवेश पाते हैं। इसीलिए खूंटी एवं गुमला जिलों के आदिवासी किसी कैमरे वाले को अपने गांवों में प्रवेश नहीं करने देते, बल्कि वे उन्हें ‘स्टील किंग’मित्तल के दलाल के रूप में संबोधित करत हैं।

इस संदर्भ में कई जन संघर्षों की यह स्पष्ट समझ रही है कि यदि कोई विरोधी ताकत आपसे ज्यादा हमदर्दी दिखानेलगे या प्यार-सम्मान से व्यवहार करने लगे तो आपको सावधान हो जाना चाहिए। इसीलिए जब उड़ीसासरकार एवं पोस्को कम्पनी ने मुआवजे की राशि बढ़ाने, रोजगार की गारण्टी देने तथा घर बनाने हेतु जमीन एवं पेसा देने की घोषणा की तो पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिति चौकन्नी हो गयी और उसके अध्यक्ष अभय साहू ने इसे अस्वीकार करने तथा कम्पनी या सरकारी अफसरों को गांवों में न घुसने देने का ऐलान कर दिया है। इसी तरह केन्द्र में सत्तासीन दल के एक नेता द्वारा लांजीगढ़ में मुआवजा कई गुना बढ़वाने का जब ऐलान किया गया तो उस जनसभा में उपस्थित स्थानीय लोगों- जो वेदान्त कम्पनी के खिलाफ तथा नियामगिरिक की सुरक्षा के लिए संघर्षरत हैं – ने हाथ उठाकर इसका कड़ा विरोध किया था। कलिंगनगर में जब आदिवासियों को मुफ्त कॉलोनी,मुफ्त शिक्षा, मुफ्त बिजली तथा 6 महीने तक मुफ्त राशन देने की टाटा स्टीलकम्पनी द्वारा घोषणा की गयी थी तब भी आंदोलनकारियों ने इसका विरोध किया था। लेकिन इस तरह की पहल को कमही प्रचार-प्रसार मिल पाता है तथा तमाम संघर्षरत लोग, समूह तथा संगठन भी इसे जान नहीं पाते और जन संघर्षों के हस्तक्षेपों को तोड़-मरोड़कर पेश करके कुछ लोग गलतफहमियां भी पैदा करते रहते हैं।

इन परिस्थितियों में यह महसूस किया गया कि विभिन्न जन संघर्षों की जानकारियों को अन्य जन संघर्षों तक हपुंचाने का कोई तरीका अपनाया जाय। उनकी जानकारियों, मंतव्यों के साथ कोई छेड़छाड़ न की जाय। इसी प्रयास के तोर पर ‘‘संघर्ष-संवाद’’ आपके समक्ष है।

इस प्रयास की सफलता इस पर आधारित है कि विभिन्न जन संघर्ष अपने हस्तक्षेपों,अनुभवों के बारे में लगातार जानकारी देते रहें तथा संघर्ष-संवाद में प्रकाशित सामग्रियों पर टिप्पणी भी करें। इस प्रयास को गुणात्मक एवंमात्रागत रूप में आगे बढ़ाने हेतु सभी जन संघर्षों एवं उनके समर्थकों से सहयोग की अपेक्षा रखते हैं।

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