संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

गंगा एक्सप्रेस-वे एवं भूमि अधिग्रहण क्यों और किसके हित में

9-10 अप्रैल 2011 को कृषि-भूमि बचाओ मोर्चा, उ. प्र. के तत्वावधान में सर्व सेवा संघ, राजघाट, वाराणसी, उ. प्र. में दो दिवसीय विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया। विचार गोष्ठी में निम्नलिखित विषयों पर चर्चा हुई-
1.            गंगा एक्सप्रेस-वे एवं भूमि अधिग्रहण क्यों और किसके हित में।
2.            देश में सेज की जरूरत क्यों और किसके हित में।
3.            भूमि अधिग्रहण कानून का औचित्य।
4.            अगला कार्यक्रम और संगठन का विस्तार।
विचार गोष्ठी में बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, सोनभद्र, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, उन्नाव, कानपुर तथा हरदेाई के किसान शामिल हुए। संस्कृत महाविद्यालय वाराणसी के समाजशास्त्र के प्रो. शोभनाथ त्रिपाठी और राजकीय विद्यालय गाजीपुर के प्रिन्सिपल डा. पी.एन.सिंह विशेष आमंत्रित अतिथि थे। प्रथम व द्वितीय सत्र की अध्यक्षता श्री राघवेन्द्र कुमार, श्री मोनासूर एवं श्री जे.पी. सिंह ने की। संचालन श्री अमरनाथ यादव ने दिया। प्रथम व द्वितीय सत्र में वक्ताओं ने चर्चा में भारत में हो रहे कृषि भूमि अधिग्रहण से किसानों के विनाश और देश में आने वाले संकट को बताया। वक्ताओं ने कहा राज्य और केन्द्र सरकारें किसानों की जमीन छीन कर उद्योगपतियों को दे रही है। देशी तथा विदेशी कंपनियों को खेती हवाले करने के लिए मार्च में केन्द्र सरकार ने समग्र प्रत्यक्ष विदेश निवेश नीति-सर्कुलर 1-2011 जारी किया है। इसमें कृषि क्षेत्र को सौ फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोल दिया गया है। अब कोई भी विदेशी कंपनी बीज, पौधे, फूल बागवानी, सब्जी, चाय आदि के उत्पादन और विकास में सीधे दखल दे सकती है। पशुपालन और मछली पालन भी इसमें शामिल है। इससे पहले जो सरकारी नीति लागू थी उसके चलते 1997 से 2010 तक लगभग सवा दो लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। अब विशालकाय देशी और विदेशी कंपनियों के मकड़जाल में फंसने पर किसान अपनी जमीन से बेदखल होकर इन कंपनियों का बंधुआ मजदूर बन जायेगा। किसानों के लहलहाते खेतों पर बुल्डोजर चला कर होटल, आलीशान पार्क, रेसिंग कोर्स, माल्स का निर्माण हो रहा है। देश में खाद्यान्न का संकट पहले से मौजूद है, विदेशों से खाद्यान्न मंगाना पड़ता है। ऐसे में कृषि योग्य भूमि पर शहर बसाना देश की जनता को भूखों मारने की साजिश है। पिछले 20 वर्षों में देश की 90 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन उद्योगपतियों को किसानों से छीन कर दे दी गयी है। खाद्यान्न लेकर और गरीबी से जूझ रहे देश में गंगा नदी के दोआब को, गंगा एक्सप्रेस-वे के नाम पर लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि उद्योगपतियों को दे देने से प्रदेश ही नहीं देश की जनता के साथ उनकी आजीविका और भोजन पर सीधे हमला है और किसी भी तरीके से उनकी जमीन छीन लेने की साजिश है। इसके लिए सरकारें किसानों की हत्या करने में भी नहीं हिचक रही हैं।

 

तृतीय सत्र का आरंभ 10 अप्रैल को 10.30 बजे शुरू हुआ जिसकी अध्यक्षता श्री सत्यपाल सिंह और अमरनाथ यादव ने की। संचालन श्री शिवाजी सिंह ने किया। तृतीय सत्र में भूमि अधिग्रहण कानून के औचित्य संगठन के विस्तार तथा साझा कार्यक्रम पर चर्चा हुई। वक्ताओं ने भूमि अधिग्रहण कानून पर चर्चा करते हुए कहा कि यह कानून अंग्रेजों द्वारा 1984 में अपने उद्योगों को लगाने, कच्चे माल को उद्योगों तक ले आने और पक्के माल को लोगों तक पहुंचाने के लिए रेल लाइन बिछाने तथा सड़क बनाने के लिए उद्योग में काम करने वाले मजदूरों को उद्योग के बगल में ही रहने के लिए भवन बनाने आदि के लिए भूमि अधिग्रहण कानून को आजाद भारत के किसानों पर जनहित के नाम पर थोप दिया गया है। इस अधिग्रहण कानून में जो भी कमियां रह गयी हैं उसे दूर किया जा रहा है जिससे उसे इतना ताकतवर बना दिया जाय, जिससे किसान अपनी भूमि कानूनी रूप से भी न बचा सकें। इसके लिए भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल जल्दी संसद में पेश होने वाला है। इसके खिलाफ किसानों को एकजुट करने और एक ताकतवर आंदोलन खड़ा करने का निर्णय लिया गया तथा अंत में एक प्रस्ताव पास किया कि-

  • सोनभद्र जिले में बनने वाले कनहर डैम, बभनी पावर प्लांट; राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के रावतभाटा में बनने वाले नेशनल पार्क तथा झुझुनूं जिले के नवलगढ़; महाराष्ट्र के जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र; इलाहाबाद जिले के करछना, बारा, पावर प्लांट आदि के लिए किये जा रहे भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष कर रहे किसानों तथा आदिवासियों के साथ कृषि भूमि बचाओ मोर्चा अपनी एकजुटता के लिए प्रतिबद्ध है।
  • छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा में जल, जंगल, जमीन के खिलाफ चल रहे आंदोलनों को राष्ट्रव्यापी आंदोलन में बदलने के लिए कृषि भूमि बचाओ मोर्चा अपनी पूरी ताकत के साथ प्रयास करने के लिए कटिबद्ध है।   -अरूण कुमार सिंह, उत्तर प्रदेश से

 

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