संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

झारखण्ड : नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोधी संघर्ष के ऐतिहासिक सबक

सेना के गोला-बारूद की मारक क्षमता की जांच के लिए झारखंड के नेतरहाट में की जाने वाली चांदमारी करीब छह दशक बाद आखिर अब बंद होने जा रही है। आम तौर पर पिछडे, अशिक्षित माने जाने वाले लोगों की यह ऐतिहासिक जीत, उस इलाके के ग्रामीण-आदिवासियों की लंबी, लगातार चली एकजुटता और संघर्ष ने हासिल की है। प्रस्तुत है, इस संघर्ष की दास्तान पर आधारित कुमार कृष्णन का यह लेख;

‘जान देंगे, पर जमीन नहीं देंगे!’ इस नारे के साथ पिछले 29 वर्षों से चले आ रहे झारखंड के हजारों ग्रामीणों के एक आंदोलन को आखिरकार जीत हासिल हो ही गई। ये आंदोलन झारखंड की प्रसिद्ध नेतरहाट पहाड़ी के पास 245 गांवों की जमीन को सेना की चांदमारी यानि फायरिंग प्रैक्टिस के लिए नोटिफाई किए जाने के विरोध में चल रहा था। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ‘नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज’ के नोटिफिकेशन को अवधि विस्तार देने का प्रस्ताव खारिज कर दिया है।

पहली बार वर्ष 1964 में इस इलाके को ‘फील्ड फायरिंग रेंज’ के तौर पर अधिसूचित किया गया था, जिसे अब तक लगातार विस्तार मिल रहा था। इसके पहले आखिरी बार वर्ष 1999 में तत्कालीन बिहार सरकार ने इस ‘फील्ड फायरिंग रेंज’ को वर्ष 2022 तक के लिए विस्तार देने की अधिसूचना जारी की थी।

सेना को फायरिंग प्रैक्टिस के लिए नेतरहाट के आसपास के गांवों की जमीन देने के विरोध में ग्रामीणों का आंदोलन 1993 से संगठित तौर पर चला आ रहा था। बीते 24-25 अप्रैल को सैकड़ों ग्रामीणों का जत्था फायरिंग रेंज की अधिसूचना को रद्द करने की मांग को लेकर नेतरहाट के टुटवापानी से पदयात्रा करते हुए रांची पहुंचा था। उन्होंने राज्यपाल को ज्ञापन सौंपकर मांग की थी कि 2022 में समाप्त हो रही ‘फील्ड फायरिंग रेंज’ की मियाद को आगे न बढाया जाए। लातेहार जिले के 39 राजस्व ग्राम के ग्रामीणों ने आमसभा में इसी मांग को लेकर प्रस्ताव पारित किया और इसकी प्रति भी राज्यपाल को सौंपी गई थी।

झारखंड के ग्रामीणों के इस ऐतिहासिक संघर्ष और ‘नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज’ का पूरा मसला समझने के लिए थोड़ा पीछे चलना होगा। वर्ष था, 1954 और तब झारखंड एकीकृत बिहार का हिस्सा था। 1954 में केंद्र सरकार ने ब्रिटिश काल से चले आ रहे कानून ‘मैनुवर्स फील्ड फायरिंग एंड आर्टिलरी प्रैटिक्स एक्ट – 1938’ की धारा 9 के तहत नेतरहाट पठार के सात गांवों को तोपाभ्यास (तोप से गोले दागने का अभ्यास) के लिए नोटिफाई किया था। इसके बाद वर्ष 1992 में फायरिंग रेंज का दायरा बढ़ा दिया गया और इसमें 7 गांवों से बढ़ाकर 245 गांवों की कुल 1471 वर्ग किलोमीटर जमीन को शामिल कर दिया गया। इस बार इलाके को वर्ष 2002 तक के लिए फायरिंग रेंज घोषित किया गया था।

सेना की टुकड़ियां वर्ष 1964 से 1994 तक यहां हर साल फायरिंग और तोप दागने की प्रैक्टिस के लिए आती रहीं। ग्रामीणों का आरोप है कि फायरिंग और तोप दागने के दौरान उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा। आंदोलन की अगुवाई करने वाले जेरोम जेराल्ड कुजूर ने ग्रामीणों को हुए नुकसान को लेकर एक दस्तावेज तैयार कर रखा है। वे कहते हैं, “सेना के अभ्यास के दौरान 30 ग्रामीणों को जान गंवानी पड़ी। कई महिलाओं के साथ रेप की घटनाएं घटीं, इनमें से दो महिलाओं को जान गंवानी पड़ी और तीन लोग पूरी तरह अपंग हो गए। अनगिनत वन्यप्राणियों और मवेशियों की मौतें हो गईं। फसलों को भारी नुकसान हुआ, इलाके का वातावरण बारूदी गंध से विषाक्त हो गया।”

ऐसी घटनाओं को लेकर ग्रामीणों का आक्रोश संगठित रूप से पहली बार तब फूटा, जब वर्ष 1994 में यहां सेना की टुकड़ियां तोप और बख्तरबंद गाड़ियों के साथ फायरिंग अभ्यास के लिए पहुंचीं। 22 मार्च 1994 को हजारों ग्रामीण सेना की गाड़ियों के आगे लेट गए। आंदोलन की अगुवाई महिलाएं कर रही थीं। विरोध इतना जबर्दस्त था कि इसकी गूंज पूरे देश में फैली और आखिरकार सेना की गाड़ियों को वापस लौटना पड़ा। तभी से ये आंदोलन लगातार चल रहा था।

फायरिंग रेंज के नोटिफिकेशन को रद्द करने की मांग को लेकर तब से सैकड़ों दफा सभा, जुलूस, प्रदर्शन हुए। आंदोलनकारी हर साल 22-23 मार्च को विरोध और ‘संकल्प दिवस’ मनाते रहे। हजारों लोग नेतरहाट के टुटवापानी नाम की जगह पर इकट्ठा होते रहे हैं। बीते 22 मार्च को आंदोलन की 28वीं वर्षगांठ पर हुई सभा में किसान आंदोलन के नेता राकेश टिकैत भी शामिल हुए थे।

1994 से लगातार जारी आंदोलन के बीच वर्ष 1999 में ‘नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज’ को लेकर सरकार ने एक नया नोटिफिकेशन जारी किया और इसकी अवधि 11 मई 2022 तक के लिए बढ़ा दी गई। हालांकि 1994 में ग्रामीणों के जोरदार आंदोलन के बाद से सेना ने यहां फायरिंग प्रैक्टिस नहीं की, लेकिन लोग इस बात को लेकर हमेशा आशंकित रहे कि फायरिंग रेंज का नोटिफिकेशन एक बार फिर बढ़ाया जा सकता है।

‘नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज’ के नोटिफिकेशन की अवधि 11 मई 2022 को समाप्त हो गई थी, लेकिन इस संबंध में सरकार की ओर से अब तक स्थिति स्पष्ट नहीं की गई थी। झारखंड सरकार ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ‘नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज’ को पुन: अधिसूचित (नोटिफाई) करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

इधर ‘नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोधी केंद्रीय जन संघर्ष समिति,’ लातेहार- गुमला के सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने कहा कि जब तक ‘नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज’ रद्द होने की अधिसूचना जारी नहीं होती, तब तक हमारा संघर्ष जारी रहेगा। मुख्यमंत्री ने अवधि विस्तार को रोका है, पर इसे स्थायी तौर पर रद्द कराने की लड़ाई जारी रहेगी। हमारी ग्रामसभाओं ने निर्णय लिया है कि फील्ड फायरिंग रेंज के लिए एक इंच जमीन भी नहीं देंगे। यह ‘पांचवीं अनुसूची’ का इलाका है और इसमें ‘पेसा एक्ट’ जैसे कानून भी लागू हैं।

इस मौके पर वासवी किड़ो ने कहा कि मुख्यमंत्री ने सराहनीय कदम उठाया है। उन्हें प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्रालय को भी लिखना चाहिए कि इस परियोजना को रद्द करने की अधिसूचना जारी करें। ‘केंद्रीय सरना समित’ के सचिव संतोष तिर्की ने कहा कि यह जीत आदिवासियों की एकता ने दिलायी है। भुवनेश्वर केवट ने कहा कि आज पूरी दुनिया में पर्यावरण की समस्या बढ़ रही है, ऐसे में नेतरहाट को बचाने की लड़ाई पूरी दुनिया को बचाने की लड़ाई है।

पूर्व ‘जनजातीय सलाहकार समिति’ के सदस्य रतन तिर्की का कहना है कि मुख्यमंत्री ने अलबर्ट एक्का के पूरे गांव को बचा लिया। पूरे बरवे क्षेत्र को बचाया है, हिम्मत के साथ बचाया है। हम बताने आये हैं कि इस राज्य में आदिवासियों का, खतियान धारियों का राज है। अब यहां हमारा ही राज चलेगा। प्रभाकर तिर्की ने कहा कि इस राज्य की लड़ाई जमीन, विस्थापन और पलायन के बुनियादी सवालों पर थी। राज्य गठन के बाद लोगों की आकांक्षा है कि इन समस्याओं का समाधान निकाला जाए।

पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला ने कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से अनुरोध किया है कि अनुसूचित जनजातियां समाप्त होती जा रही है। आदिवासी संकट में हैं, उन्हें बचाना परम धर्म है। केंद्र सरकार को ‘नेतरहाट फील्ड रेंज’ को हमेशा के लिए रद्द करना होगा अन्यथा सिदो कान्हू के समय से आज तक जिस तरह आंदोलन चला, उस तरह का आंदोलन जारी रहेगा।

साभार : सप्रेस

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