संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

दमन, साजिशों से जूझते कलिंगनगर के आंदोलनकारी आदिवासी

  • राज्य के दमन (पुलिस ज़ुल्म) एवं टाटा कंपनी के गुंडों (स्थानीय बीजू जनता दल के नेता एवं कार्यकर्ता) के हमले का कंपनी विरोधियों द्वारा सामना।
  • राज्य एवं कंपनी के आतंक के कारण कंपनी विरोधी आंदोलनकारी रात में ही निकलते हैं लोगों से संपर्क करने।
  • आतंक एवं अत्याचार का यह आलम की कंपनी विरोधी आंदोलनकारी अस्पताल या डाक्टर के पास इलाज कराने जाते समय भी किये जा रहे हैं गिरफ्तार।
  • आंदोलन के समर्थन में बाहर से आने वाले लोगों पर अघोषित प्रतिबंध।

जाजपुर जिले में स्थित सुकिण्डा ब्लाक के अंतर्गत प्रस्तावित टाटा कंपनी ने अपने प्रस्तावित स्थल के चारों तरफ से कोरिडोर रोड का निर्माण कराना आरंभ किया था। इसका उद्देश्य आवागमन की सुविधा बढ़ाने के साथ ही साथ यह भी था कि कंपनी के लोग गांवों में भी प्रवेश पा सकें। इस कोरिडोर रोड के विरोध में लोग एकजुट हुए उनका दमन किया गया और दो लोगों की हत्या भी की गयी। इसके बावजूद भी लोगों का संघर्ष जारी है। गोबरघाटी गांव आज आंदोलनकारियों का मुख्य केन्द्र बना हुआ है। इस गांव के लोग विरोध-प्रतिरोध में बड़ी ही मुस्तैदी के साथ डटे हुए हैं।

टाटा कंपनी ने आंदोलनकारियों पर पुलिस के साथ मिलकर दमन के साथ ही साथ सत्तादल के कार्यकर्ताओं-नेताओं, स्थानीय ठेकेदारों, सप्लायर्स के साथ रणनीति बनाकर रोज़गार देने, ठेका देने आदि का प्रलोभन देकर फर्जी आंदोलन खड़ा करके लोगों में भ्रम पैदा करने की कोशिश की है। ऐसे तत्वों को मिलाकर कलिंगनगर सुरक्षा समिति का गठन भी किया गया है। इन तत्वों को कंपनी ने कुछ छोटे-छोटे काम भी दे रखे हैं- लेबर सप्लाई, आई.टी.आई. ट्रेनिंग, ट्रांसपोर्टिंग तथा कुछ निर्माण कार्य के ठेके। इस खेमे में ‘पापी पेट के लिए’ काम करने वाले कुछ स्थानीय एन.जी.ओ. भी शामिल हैं। यह ताकतें कंपनी की सहमति तथा मार्गदर्शन में कंपनी के खि़लाफ धरना, प्रदर्शन भी आयोजित करती रहती हैं ताकि वास्तविक संघर्ष के बारे में लोगों को गुमराह किया जा सके। इस तरह के कंपनी प्रायोजित आंदोलनों (?) को पुलिस का भी पूरा समर्थन एवं संरक्षण प्राप्त रहता है। हो भी क्यों न, जब राज्य सरकार तथा सत्तादल (केन्द्रीय एवं राज्य) तथा सत्तादलों के स्थानीय नेता कंपनी के आगे पीछे दुम हिला रहे हैं, तब तो यह उनका कर्त्तव्य बन ही गया है।
कभी-कभी अपनी दलाली की कीमत बढ़वाने के लिए भी यह लोग संघर्ष का नाटक करते हैं। अभी दिसंबर 2010 के शुरूआती दिनों में इसी तरह का नाटक किया गया। बहाना था ज़मीनों का मुआवज़ा बढ़वाने का। ज़मीनों का मुआवज़ा बढ़ा कि नहीं यह तो नहीं मालूम परंतु दलाली की दरें निश्चित तौर पर बढ़ गयी होंगी।
कंपनी की इस खेमेबंदी ने कलिंगनगर में अपना एक समर्थक खेमा खड़ा कर लिया है वहीं दूसरी तरफ टाटा प्रतिरोध संघर्ष समिति स्थानीय आदिवासियों, कुछ राजनीतिक दलों के स्थानीय कार्यकर्ताओं (सी.पी.आई., सी.पी.आई. (एम.), एस.यू.सी.आई., सी.पी.आई. (एम.एल.) के बल पर रवि जारिका के कुशल नेतृत्व में ‘राजसत्ता तथा ‘कारपोरेट हिंसा से जूझता हुआ जल, जंगल, ज़मीन, जीविका तथा लोगों के अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्षरत है। हालांकि टी.पी.एस.एस. बार बार हमलों तथा उत्पीड़न का शिकार होती रही है। और समय समय पर अपनी रणनीतियों में परिवर्तन भी करती रही है, पूरे देश में चल रहे प्रमुख जनसंघर्षों का समर्थन एवं एकजुटता हासिल करने में कामयाब रही है परंतु वह आज भी राज्य तथा कारपोरेट की मिली जुली साजिशों को रोक नहीं पायी है। यह साजिशें आज भी जारी हैं।
टी.पी.एस.एस. ने बढ़ते हमलों को देखते हुए महिला आंदोलनकारियों को अधिक सक्रिय करने की रणनीति पर कार्य करना शुरू किया था तथा इन महिला साथियों ने आगे बढ़कर मोर्चे भी संभाले। कंपनी ने एक बार फिर से राष्ट्रीय बैंकों की सहायता से महिलाओं के बनाये गये स्वयं सहायता समूहों (एस.एच.जी.) का इस्तेमाल आंदोलनकारी महिलाओं के खिलाफ एक समांनांतर ताकत के रूप में करने की योजना पर काम करना शुरू किया। आंदोलनकारी महिलाओं को विकास विरोधी तथा दिग्भ्रमित बताने के लिए टी.वी. चैनेल्स, फिल्म शो, क्रिकेट टूर्नामेंट, हेल्थ कैंप आदि का कंपनी ने इस्तेमाल किया तथा यह भी प्रचारित किया कि स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलायें दिन-प्रतिदिन तरक्की कर रही हैं- और यही तरक्की का एकमात्र रास्ता है। इसके पीछे कंपनी की सुविचारित रणनीति थी कि कंपनी समर्थकों की तादाद बढ़ायी जाय तथा लोगों को लालच-प्रलोभन देकर अपने खेमों में शामिल किया जाय। इसमें आंशिक कामयााबी से निराश कंपनी ने इस योजना पर काम करना शुरू किया कि आदिवासी महिलाओं में हिंसक संघर्ष कराये जायं। अतएव कंपनी समर्थक महिलाओं को पुलिस के संरक्षण में परंपरागत हथियारों से लैस कराके आंदोलनकारी महिलाओं पर हमले कराये गये जो आज भी जारी हैं।
आज कलिंगनगर में एक तरफ आंदोलनकारियों के स्वतंत्रतापूर्वक इधर-उधर आने-जाने तक पर अघोषित प्रतिबंध हैं तो वहीं दूसरी तरफ टाटा कंपनी को अपराधिक षड्यंत्रों-कृत्यों की खुली छूट।
– आलोक मोहंती, कलिंगनगर (उड़ीसा)
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