संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

राजस्थान में चल रहे जमीन अधिग्रहण विरोधी जन आन्दोलनों पर एक नजर

दो जिलों की 72 हजार बीघा जमीन पर टिकी सीमेंट फैक्ट्रियों की नजरः
 
झुंझुनूं जिले के नवलगढ़ और सीकर जिले के बेरी क्षेत्र में सीमेंट कंपनियों के लिए 18 गांवों में बसी करीब 50 हजार लोगों की आबादी को उजाड़ने की तैयारी चल रही है। आदित्य बिड़ला ग्रुप की ग्रासिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड अल्ट्राटेक लिमिटेड व समष्द्धि सीमेंट लिमिटेड, बांगड़ ग्रुप की श्री सीमेंट लिमिटेड और दि इंडिया सीमेंट जैसी नामी कंपनियों को सरकार ने 72 हजार बीघा बेशकीमती जमीन हड़पने की हरी झंडी दे दी है। जमीन अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष कर रहे नवलगढ़ किसान संघर्ष समिति, शेखावाटी किसान मंच के प्रतिनिधियों का कहना है कि सीमेंट कंपनियों को इस क्षेत्र में खनन की मंजूरी दिए जाने से विकास नहीं बल्कि विनाश होने वाला है। सीमेंट फैक्ट्रियों  से आस-पास के गांवों के लोग ही नहीं बल्कि पूरे शेखावाटी क्षेत्र की जनता प्रभावित होगी।

 

नीम का थाना में अवैध खनन लील रहा है लोगों की जिंदगियाः

जब से हरियाणा राज्य की अरावली पहाड़ी पर उच्चतम न्यायालय ने खनन पर रोक लगाई है तब से सीकर जिले के नीमा का थाना क्षेत्र की पहाड़ियों में खनन माफिया की बड़े पैमाने पर घुसपैठ हुई है। अवैध और अनियंत्रित तरीके से हो रहे इस खनन, स्टोन क्रेशर यूनिट, बड़े पैमाने पर हो रही ब्लास्टिंग के कारण न केवल पर्यावरण बल्कि इस क्षेत्र के दर्जनों गांवों के हजारों लोगों के जीवन पर भी घातक असर पड़ रहा है। क्रेशर यूनिट में होने वाली ब्लॉस्टिंग के कारण इस क्षेत्र में हर माह दो से तीन लोगों की मौत हो रही है। क्रेशर यूनिट्स के कारण क्षेत्र का भूजल भी दूषित हो गया है। इसके कारण कभी भी प्राकृतिक आपदाएं आ सकती हैं।
छह साल का संघर्ष और सरकारी दमनः
नीम का थाना क्षेत्र में हो रहे इस अवैध खनन के खिलाफ स्थानीय लोग पिछले पांच-छह साल से आंदोलन कर रहे हैं। क्षेत्र में हो रहे अवैध खनन के खिलाफ स्थानीय लोग कई बार धरने, प्रदर्शन, रैली और नुक्कड़ सभाएं कर चुके हैं, लेकिन भ्रष्ट विधायक, पुलिस, प्रशासन और खनन माफिया के गठजोड़ के चलते कई बार लोगों की आवाज को कुचला जा चुका है। पुलिस ने बर्बरता का विरोध करने वाले सैकड़ों लोगों पर झूठे मामले दर्ज किये हैं, अवैध हिरासत एवं हिंसा का दमन चक्र चलाया है। खनन माफिया और सरकारी दमन के खिलाफ क्षेत्र के लोगों का संघर्ष अनवरत जारी है।
कंपनियों ने हड़पी किसानों की दो लाख हैक्टेयर जमीनः
बाड़मेर जिले की बायतू, धोरीमना, शिव और बाड़मेर तहसील में कोयला खनन, केयर्न एनर्जी के तेल क्षेत्र विस्तार, सैन्य क्षेत्र की स्थापना, जिंदल ग्रुप के हीटिंग स्टेशन जैसे कार्यों के लिए अब तक करीब दो लाख हैक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जा चुका है। बायतू और बाड़मेर तहसील के बोथिया, भाडखा, आकली और कपूरडी गांवों में जिंदल समूह के हीटिंग स्टेशनों के लिए 20 हजार बीघा भूमि अधिग्रहित की जा रही है।
लालच का दाँवः
बाड़मेर में तेल दोहन में लगी कंपनियां किसानों को तीन से चार गुना तक मुआवजा देकर उनकी आवाज दबाने में जुटी हैं। मुआवजे के लालच में तमाम किसान अपनी जमीन कंपनियों को सौंप चुके हैं। कई छोटे और मझोले किसानों ने अपनी जमीन कंपनियों को देने से इंकार भी किया, लेकिन कंपनियों से लाखों रुपए का मुआवजा पा चुके किसानों ने उनका साथ नहीं किया। कई किसानों ने जमीन अधिग्रहण के खिलाफ जिला प्रशासन से भी गुहार लगाई, लेकिन प्रशासन ने भी उन पर जमीन देने का दबाव डाला।
बिल्डरों के मुनाफे के लिए ढाई दर्जन गांव उजाड़ने की तैयारीः
जयपुर जिले के फागी उपखंड में साउथ नॉलेज सिटी, रोहिणी नगर विस्तार, आवासन मंडल और इंडियन ऑयल कारपोरेषन के डिपो स्थानांतरण के लिए करीब दस हजार बीघा भूमि अधिग्रहण की जा रही है। इस अधिग्रहण की मार  करीब 10 हजार से ज्यादा लोगों पर पड़ने वाली है। आश्चर्यजनक बात यह है कि अधिग्रहित की जा रही इस जमीन में ज्यादातर भूमि जल ग्रहण क्षेत्र, कृषि, गोचर और चारागाह की है। फागी तहसील के रेनवाल मांजी, डालूवाला, बीड रामचंद्रपुरा, हरिरामपुरा, धांधा की ढाणी, चांदाराम और गोदारा की ढाणी जैसे गांवों की 3017 बीघा भूमि हाउसिंग बोर्ड की प्रस्तावित योजनाओं के लिए अधिग्रहीत की जा रही है। फागी क्षेत्र के चित्तौड़ा, प्रतापपुरा, श्रीराजपुरा, जयनगर, रेनवाल, थरोलों की ढाणी, हरसुलिया, जयचंद का बास, मानपुर गेट, माहनपुरा पृथ्वीसिंह जैसे गांवों की 1500 बीघा भूमि साउथ नॉलेज सिटी के लिए अधिग्रहित की जा रही है। इसके अलावा रोहिणी नगर के प्रथम, द्वितीय व तष्तीय चरण के लिए रेनवाल मांजी और मोहब्बतपुरा गांवों की करीब 1600 बीघा भूमि अधिग्रहित की जा रही है।
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की हो रही है अवहेलनाः
फागी क्षेत्र में ढाई दर्जन गांवों में तालाब, चारागाह, जल ग्रहण क्षेत्र और गोचर भूमि को अधिग्रहण करने में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवहेलना की जा रही है। ‘‘फागी जमीन बचाओ संघर्ष समिति’’ के बैनर तले क्षेत्र में इस अधिग्रहण के खिलाफ पिछले काफी समय से आंदोलन चल रहा है, लेकिन सरकार हठधर्मिता के साथ जमीन को अधिग्रहित करने की कवायद में जुटी हुई है।
हाइवे का विस्तार उजाड़ेगा, हजारों परिवारः
भारतीय राजमार्ग प्राधिकरण की ओर से नेशनल हाइवे संख्या आठ का विस्तार किया जा रहा है। जयपुर जिले का पावटा क्षेत्र इस हाइवे विस्तार से प्रभावित होने वाला है। भारतीय राजमार्ग प्राधिकरण ने पावटा क्षेत्र के किसानों को जमीन अधिग्रहण के  नोटिस थमा दिये हैं। सरकार ने अभी तक हाइवे विस्तार से प्रभावित होने वाले लोगों के लिए किसी तरह के मुआवजे की भी घोषणा नहीं की है।
हाइवे विस्तार के खिलाफ पावटा के लोगों का संघर्षः
हाइवे विस्तार के खिलाफ पावटा क्षेत्र के स्थानीय लोग पिछले कई दिनों से आंदोलन कर रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर भी पावटा में जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन में शिरकत कर चुकी हैं, लेकिन सरकार ने अभी तक हाइवे विस्तार रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं।
दूसरी बार विस्थापन की मार झेलने को तैयार नहीं भैंसरोड़गढ़ क्षेत्र के 37 गांवों के वासीः
चित्तौड़गढ़ जिले की रावतभाटा तहसील के भैंसरोड़गढ़ क्षेत्र के 37 गांवों को राष्ट्रीय उद्यान विस्तार के लिए दूसरी बार उजाड़ने की तैयारी चल रही है। करीब 50 साल पहले वर्ष 1965 में राणा प्रताप सागर बांध के डूब क्षेत्र में आने के कारण इन लोगों को विस्थापित कर इस क्षेत्र में बसाया गया था। पिछले पचास साल में कड़ी मेहनत के बाद जंगल और पथरीले इस क्षेत्र को इन लोगों ने खेती और रहने के लायक बनाया। पांच दशक बाद सरकार ने अब इन्हें फिर से विस्थापित करने की तैयारी कर ली है। राष्ट्रीय उद्यान के विस्तार के नाम पर इस क्षेत्र के 25-30 हजार लोगों को फिर से दर-बदर करने का फरमान जारी हुआ है।
रंग ला रहा है आदिवासियों का संघर्षः
भैंसरोड़गढ़ क्षेत्र के आदिवासी अब तक पचास साल पहले हुए विस्थापन का दर्द नहीं भूले हैं। उस समय भी सरकार ने इनके लिए स्कूल, अस्पताल, मकान और अन्य सुविधाएं विकसित किए जाने के बड़े-बड़े वादे किए थे, लेकिन इन वादों की हकीकत इस क्षेत्र के आदिवासी को ही पता है। ऐसे में सरकार ने जब इन्हें दूसरी बार विस्थापित किए जाने की तैयारी की है तो यहां के आदिवासी भी इसके खिलाफ उसी तैयारी के साथ उठ खड़े हुए हैं। राष्ट्रीय उद्यान विस्तार के खिलाफ डूब विस्थापित समिति का गठन कर आदिवासियों ने आंदोलन का बिगुल बजा दिया है। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि वे किसी भी सूरत में अपने जल, जंगल और जमीन जैसे संसाधन नहीं छोड़ेंगे।
सीता माता क्षेत्र के दस हजार लोगों को दूसरी बार उजाड़ने की तैयारीः
प्रतापगढ़ जिले के सीता माता क्षेत्र के दस हजार आदिवासियों को दूसरी बार उजाड़ने की तैयारी की जा रही है। पहली बार गुजरात के माही-कडाना बांध के लिए इन लोगों को विस्थापित किया गया था। अब सीता माता अभ्यारण्य के लिए इन्हें दूसरी बार उजाड़ने की कोशिश हो रही है। सरकार के इस कुत्सित प्रयास के कारण करीब दस हजार आदिवासियों के सिर पर फिर से दर-बदर होने की तलवार लटक रही है।
सरकार के मंसूबे पूरे नहीं होने दे रहा आदिवासियों का पुरजोर संघर्षः
वर्ष 1982 में सरकार ने सीता माता अभ्यारण्य की घोषणा की थी। इसके बाद से ही सरकारी तंत्र इस क्षेत्र में रहने वाले दो हजार परिवारों को उजाड़ने की कोशिश में जुटा है लेकिन क्षेत्र के आदिवासियों के पुरजोर संघर्ष के कारण सरकार अब तक अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाई है। आदिवासी काष्तकार संगठन के बैनर तले क्षेत्र के लोगों की लड़ाई जारी है। सरकार के साथ ही क्षेत्र के लकड़ी माफिया भी आदिवासियों को यहां से उजाड़ने की कोशिश में जुटे हैं ताकि उनके जाने के बाद वे यहां के वन संसाधनों का अंधाधुंध दोहन कर सकें।
जंगल जमीन के लिए आदिवासियों की लड़ाई जारी हैः-
पिछले 15 सालों से दक्षिणी राजस्थान में जंगल-जमीन जन आंदोलन के बैनर तले, जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ रहे आदिवासी किसानों में से कुछ को अन्ततः जमीन मिली हैं 2006 में बने एफ.आर.ए. कानून के तहत कई हजारों आदिवासी किसानों के जमीन के दावे को नकारते हुए सरकार ने सिर्फ लगभग 30,000 आदिवासियों को जंगल-जमीन का हक दिया है। जिन किसानों को उन्होंने जमीन दी है वो भी उनके दावे के विपरीत बहुत कम जमीन दी है। यह आन्दोलन अपनी किसान बने रहने की लड़ाई जारी रख रहा है, नहीं तो लाखों किसानों का विस्थापन तय है।
राजस्थान में सिर्फ उपरोक्त जगहों पर ही अधिग्रहण की कोशिशें नहीं हो रही हैं बल्कि प्रदेश में कई अन्य जगहों पर भी इसी तरह के कुत्सित प्रयास चल रहे हैं। सरकारी जनविरोधी नीतियों के कारण इन क्षेत्रों में विस्थापित होने वाली बहुसंख्य आबादी सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर व शोषित वर्ग की है। सरकारी-पूंजीपति गठजोड़ के खिलाफ राजस्थान के कई इलाकों में विस्थापन विरोधी आंदोलन चल रहे हैं, लेकिन ये आंदोलन अलग-अलग जगहों पर छोटे-छोटे समूहों में होने के कारण इनकी आवाज मुखरता के साथ सामने नहीं आ पा रही है। राजस्थान में विस्थापन विरोधी इस मुहिम को साझी आवाज और ताकत प्रदान करने के लिए ही राज्य स्तरीय सम्मेलन आयोजित किया गया।
इस सम्मेलन में सर्व स्वीकृत माँगें तय की गयीं :-
  • किसान व आदिवासी की जमीन खेती के अलावा अन्य उपयोग के लिए अधिग्रहित नहींे की जाए।
  • राजस्थान में प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित व अवैध रूप से किया जा रहा दोहन बंद किया जाए।
  • राज्य में जल, जंगल और जमीन बचाने के लिए चल रहे जन आंदोलनों का दमन बंद किया जाए और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा सुनिष्चित की जाए।
  • भूमि अधिग्रहण, खनन व विस्थापन विरोधी आंदोलन कर रहे लोगों के खिलाफ लगाए गए झूठे मुकदमें वापस लिए जाएं एवं दोशी पुलिसकर्मियों के खिलाफ व प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
  • भ्रष्ट राजनीतिज्ञों, सरकारी नौकरशाहों और पूंजीपति औद्योगिक घरानों का गठजोड़ समाप्त किया जाए।
  • झुंझुनूं जिले के नवलगढ़ और सीकर जिले के बेरी इलाके में खनन के लिए सीमेंट कंपनियों को दी गई अनुमति वापस ली जाए।
  • सीकर जिले के नीम का थाना इलाके की पहाड़ियों पर हो रही खनन पर तुरंत प्रभाव से रोक लगाई जाए तथा डाबला और अन्य गांवों में खनन माफियाओं के खिलाफ आंदोलन करने वाले लोगों पर दर्ज किए गए मुकदमें वापस लिए जाएं।
  • डाबला में शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे लोगों पर लाठीचार्ज के लिए दोशी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
  • प्रतापगढ़ जिले के सीता-माता और चित्तौड़गढ़ जिले के भैंसरोडगढ़ में वन अभ्यारण्य के नाम पर हजारों परिवारों को दूसरी बार उजाड़ने की कोशिशें बंद हों।
  • जयपुर के पावटा क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्ग आठ के विस्तार, जयपुर शहर के चारों तरफ रिंग रोड के आस-पास बड़ी तादाद में कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण और फागी इलाके में आवासीय योजनाओं के निर्माण के लिए जमीन का अधिग्रहण तुरंत प्रभाव से रोका जाए।
  • बाड़मेर जिले के शिव, बायतू, चौहटन और धोरीमनी इलाकों में जिंदल समूह के हीटिंग स्टेशन और तेल कंपनियों को तेल दोहन के लिए जमीन अधिग्रहण बंद किया जाए।
  • किशनगंज-शाहबाद के सहरिया आदिवासियों को वन अभ्यारण्य के नाम पर विस्थापित की जाने की कोशिशें तुरंत बंद हों।
  • केंद्र के नए भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास कानून पर राजस्थान में व्यापक संवाद और बहस की जाए।
  • सभी कालबेलिया समाज को नागरिकता, जमीन व घर दिया जाए।
  • जंगल-जमीन का दावा कर रहे सभी आदिवासियों को जल्द से जल्द जंगल-जमीन का पट्टा दिया जाए।
  •  दलित समाज के लोगों की जमीन से बेदखली को रोका जाए एवं उनको पट्टे व कब्जे दिये जाए।
  • सरकार विभिन्न मांगों के संदर्भ में प्रभावित लोगों से तत्काल संवाद करे।
आगामी योजनाओं का सामूहिक फैसला-
पूर्व निणर्यानुसार 10 अगस्त 2011 को राजस्थान जनसंघर्ष मोर्चे के साथियों की मीटिंग दूर्गापुरा जयपुर में हुई। इस मीटिंग में तीन जिलों झुंझनूं, सीकर तथा अलवर के चल रहे भूमि अधिग्रहण विरोधी संघर्ष के साथियों ने भाग लिया तथा गंभीर विचार -विमर्श के बाद कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिये गये।
साथियों की रिपोर्ट से यह तथ्य साफ तौर पर दिखाई दे रहा था कि नीचे स्तर पर लम्बे संघर्ष के चलते गतिरोध पैदा हो रहा है। जनता व संघर्ष करने वाले साथियों का मनोबल बनाये रखने लिए संघर्ष के क्षेत्रों में पदयात्राएं निकाली जायें।
नवलगढ़, नीम का थाना तथा सीकर शहर के पास रेलवे के लिए की जाने वाली भूमिअधिग्रहण के इलाके के किसानों को लेकर एक संयुक्त बैठक 20 अगस्त तक नीम का थाना में आयोजित करने का निर्णय लिया गया। इस बैठक में पूरे इलाके में जुझारू किसान आन्दोलन चलाने की कार्ययोजना बनाई जायेगी।
इसके साथ ही राज्य में चल रहे जल, जंगल, जमीन बचाओ आन्दोलनों से सम्पर्क कर तैयारी के साथ जयपुर में किसानों का बड़ा पड़ाव आयोजित करने का भी निर्णय किया गया।
भूमि अधिग्रहण के खिलाफः किसानों की संकल्प सभा
भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आन्दोलन के एक साल पूरा होने पर नवलगढ़ में किसानों ने 27 अगस्त, 2011 को संकल्प सभा का आयोजन नवलगढ़ भूमि बचाओ संघर्ष समिति की ओर से दोपहर 12 बजे धरने स्थल पर किया। इस सभा में भूमि अधिग्रहण से प्रभावित सभी गांवों के किसानों ने भाग लिया।
सभा को सम्बोधित करते हुए संघर्ष समिति के संयोजक दीप सिंह शेखावत ने बताया कि आज हमारे इस संघर्ष के 365 दिन पूरे हो गये। ठीक एक साल पहले आज के दिन तीन साथियों ने मिलकर इसी सामने वाली चाय की दुकान में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आन्दोलन की रणनीति बनाई थी। उन्होंने कहा कि साथियों हमारा यह संघर्ष अभी तक सफल रहा; क्योकि सारे षडयंत्रकारी प्रयासों के बावजूद भी कम्पनियां हमारी कृषि भूमि 72000 बीघा में से मात्र 4700 बीघा जमीन की रजिस्टीª करवा पाई हैं। जो किसान भाई अपनी धरती मां को बेचकर चले गये थे। वे भी अपने बुरे दिन देखकर वापस आ रहे हैं। इसलिए किसान साथियों हमें हर हाल में अपनी जमीन बचाने के इस संघर्श को जारी रखना होगा। उन्होने अपने भाषण की समाप्ति इस नारे के साथ कि ‘जान दे देंगे, जमीन नहीं देंगे।’
सभा को राजस्थान जन संघर्ष मार्चो के संयोजक हरकेश बुगालिया ने सम्बोधित करते हुए कहा कि इस आन्दोलन से क्षे़त्र के व्यापक लोगो को जोड़ना होगा। देश में चल रहे भूमिधिग्रहण विरोधी किसान संघर्शो से प्रेरणा लेनी चाहिए। भूमि अधिग्रहण के कुप्रभावों के सवालों को व्यापक स्तर के जनजागरण के जरिए आम जनता के सामने रखना चाहिए। उन्होने बताया कि किसान आन्दोलन को मजबूत करने लिए ग्राम स्तर पर भूमि रक्षा दल बनाने होंगे।
सभा को शहीद भगतसिंह विचार मंच के जिला संयोजक बजरंगलाल एडवोकेट, शेखावाटी किसान मंच के संयोजक श्रीराम दूत, नवलगढ भूमि अधिग्रहण विरोधी किसान संघर्श समिति के पीथाराम मील, नरेन्द्र महण, नौरंगलाल दूत बसावा, पंचायत समिति सदस्य बजरंगलाल जांगिड, गोर्वधन सिंह निठारवाल, बलबीर सिंह, गणपत सिंह, गोमाराम दतुसलिया, आदि ने भी सम्बोधित किया।
– हरकेश बुगालिया
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