संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

9 अगस्त 2016 : 75 साल बाद एक बार फिर गूजेंगी ‘बहुराष्ट्रीय कम्पनियां’ भारत छोड़ों की आवाज़

9 अगस्त 2016 को भारत छोड़ो आंदोलन के 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इसी दिन 1942 में महात्मा गांधी ने करो या मरो का नारा और अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देकर इस आंदोलन की शुुरुआत की थी। देश को आजाद हुए 68 साल बाद हालत यह है कि पूरा देश विदेशी पूंजी, काले कानूनों तथा मानवाधिकार हनन के नीचे दबा हुआ है। देश की तमाम मेहनतकश जनता को इस उत्पीड़न की व्यवस्था से मुक्ति दिलाने और एक नई क्रांति की अलख जगाने के उद्देश्य से देश के विभिन्न क्रांतिकारी तथा जनवादी संगठन अपने-अपने क्षेत्र में इस दिन को जन-क्रांति दिवस के रूप में मनाएंगे । देश भर में 170 से भी ज्यादा कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इसी के साथ भारत सरकार से आर्मड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट जैसे काले कानूनों को रद्द कर इरोम शर्मिला की लड़ाई के साथ एकजुटता प्रदान करेंगे, जो 9 अगस्त 2016 को अपने 16 साल से चल रही भूख हड़ताल को समाप्त कर एक नए स्तर पर लड़ाई को जारी रखेंगी। हम यहां पर इस संदर्भ में किसान संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुनीलम का पर्चा आपसे साझा कर रहे हैं;

9 अगस्त 2016 : भारत छोड़ो आंदोलन के 75 वर्ष पुरे होने के अवसर पर देश भर के जन संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रमप्रिय साथी,

जिंदाबाद!

आशा है आप 9 अगस्त 2016 को अगस्त क्रांति की याद में जनक्रांति दिवस मनाने के कार्यक्रम की तैयारी कर रहे होंगे। 2 अगस्त को पीसीएसडीएस की बैठक में इरोम शर्मिला के 16 वर्ष तक AFSPA (एएफपीएसए )रद्द कराने की मांग को लेकर किए जा रहे अनशन की समाप्ति को लेकर चर्चा हुई। सभा में साथियों की राय थी कि हमें एएफएसपीए के खिलाफ संघर्ष को जारी रखना है कि इसलिए मेरा सुझाव है कि आप जब कार्यक्रम आयोजित करें तब उसमें एक बैनर इरोम शर्मिला को लेकर भी अवश्य लगाएं। इससे जुड़ा पर्चा आपको संलग्न कर रहा हूं। आपसे अनुरोध है कि 9 अगस्त के कार्यक्रम की जानकारी प्रेस विज्ञप्ति तथा पर्चे के माध्यम से अधिकत्तम लोगों तक पहुंचाएं तथा आपके क्षेत्र में कार्य करने वाले जनसंगठनों तथा बुद्धिजीवियों तथा अगस्त क्रांति के महत्व को स्वीकार करने वाले साथियों को कार्यक्रम में अवश्य आमंत्रित करें। अब तक मुझे जो सूचना मिली है उसके अनुसार निम्न संगठन और साथी नौ अगस्त का कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैः

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प्रिय साथियों,जिंदाबाद!

आप जानते ही हैं कि 9 अगस्त 1942 जनक्रांति दिवस आजादी के आंदोलन का सबसे महत्वपूर्ण दिन है, क्योंकि इस दिन अंग्रेजों भारत छोड़ो- करो या मरो की महात्मा गांधी की अपील को लेकर देश भर में जनक्रांति की शुरुआत हुई थी जिसमें पचास हजार आंदोलनकारी शहीद हुए और एक लाख भारतीयों को जेल जाना पड़ा। अंग्रेजों द्वारा पांच सौ अड़तीस बार आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाई गईं।

अगस्त क्रांति की परिणिती 15 अगस्त को हुई जब देश में सत्ता का हस्तांतरण हुआ जिसे हम स्वतंत्रता दिवस के तौर पर देश भर में शासकीय क्रार्यक्रमों के साथ जोर-शोर से मनाते हैं। लेकिन अगस्त क्रांति के शहीदों को देश भर में कम स्थानों पर ही मनाया जाता है। अगस्त क्रांति तथा उसके शहीदों को याद करने के लिए देश भर के संगठनों ने सौ से अधिक जिलों में जनक्रांति दिवस मनाने का फैसला किया है।

इस बार नौ अगस्त का दिन इस लिए भी महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि इंफाल में गत सोलह वर्षों से आर्मड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट रद्द करने की मांग को लेकर अनशन कर रही इरोम शर्मिला ने समर्थकों की अपील पर 9 अगस्त 2016 को अनशन समाप्त करने का फैसला किया है। अब इस संघर्ष को आगे ले जाने की जिम्मेदारी उन सब साथियों की है जो यह मानते हैं कि किसी भी सरकार को कानून बनाकर नागरिकों पर गोली चलाने, उन्हें गिरफ्तार करने, उनकी संपत्ति जब्त करने का अधिकार नहीं है तथा इस तरह का अपराध करने वाले अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज न होने देने की कानूनी छूट पूरी तरह से असंवैधानिक है।

ऐसे समय में जब सर्वोच्च न्यायालय भी आर्मड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट के दुरुपयोग को लेकर अपनी चिंता जाहिर कर चुका है तथा यूपीए सरकार द्वारा गठित किए गए कमीशन ने भी इसे एएफएसपीए को रद्द करने की अनुशंसा की थी यह जरूरी हो गया है कि हम नौ अगस्त को यह संकल्प लें कि हम इरोम शर्मिला द्वारा छेड़ी गई लड़ाई को मंजिल तक पहुंचाने के लिए तन-मन-धन से प्रयास करेंगे। हम इरोम शर्मिला को इस कार्यक्रम के माध्यम से यह विश्वास भी दिलाना चाहेंगे कि उनकी 16 वर्ष की तपस्या बेकार नहीं जाएगी तथा एएफएसपीए रद्द होने तक संघर्ष जारी रहेगा।

आपसे अनुरोध है कि आप इस कार्यक्रम में अधिक से अधिक संख्या में भाग लेकर सम्मानपूर्वक जीवन जीने के अधिकार के संवैधानिक मूल्य में अपनी आस्था प्रकट करते हुए पूर्वोत्तर तथा कश्मीर में एएफएसपीए से पीड़ित नागरिकों के संघर्ष में साथ देने का कार्य करें।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने शहादत इसलिए नहीं दी थी कि जनता द्वारा बनाई गई सरकारें अपने ही नागरिकों को गुलाम बनाकर रखें तथा आफ्पसा जैसे कानून की आड़ में जघन्य अपराध करने का षड़यंत्र करें। देश के शहीद समतावादी समाज की रचना करना चाहते थे जिसमें हर नागरिक को हक और सम्मान मिले तथा वह लोकतंत्र, धर्म निरपेक्षता, समाजवाद के मूल्यों को जी सके।

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