संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

कैंपेन फॉर सर्वाइवल एंड डिग्निटी का राष्ट्रव्यापी आह्वान : 5 जून और 9 अगस्त 2023 को कॉर्पोरेट परस्त, सांप्रदायिक व तानाशाह सरकार के खिलाफ़ देशव्यापी प्रदर्शन

कैंपेन फॉर सर्वाइवल एंड डिग्निटी (सीएसडी) का राष्ट्रीय सम्मेलन 14-15 मई 2023 को नई दिल्ली के रतन आर्य पब्लिक स्कूल, सरोजनी नगर में आयोजित हुआ। इस सम्मेेलन में देश के 12 राज्यों के 100 से ज़्यादा जनसंगठनों के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की।

राष्ट्रीय सम्मेलन में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की जन विरोधी, आदिवासी विरोधी एवं लोकतंत्र विरोधी नीतियों को पूरी तरह से निंदा करते हुए संकल्प लिया कि वन अधिकार, लोगों के मौलिक अधिकार एवं संवैधानिक मूल्यों के लिए किये जा रहे संघर्षों को और बुलंद करेंगे। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की कामरेड बृंदा करात; तृणमूल कांग्रेस के सांसद एवं सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी जवाहर सरकार; और असम के कोकराझार से निर्दलीय सांसद नाबा कुमार सरणिया ने सम्मेलन को सम्बोधित किया।

सम्मेलन में विभिन्न राज्यों से आये हुए जन संगठनों के प्रतिनिधियों ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की जन विरोधी, आदिवासी विरोधी एवं लोकतंत्र विरोधी नीतियों की पूरी तरह से निंदा करते हुए कहा कि आज हम सभी संकल्प लेते हैं कि हम हमारे वन अधिकार, हमारे मौलिक अधिकार एवं हमारे संवैधानिक मूल्यों के लिए किये जा रहे संघर्षों को और बुलंद करेंगे। हम मानते हैं कि जिस ढंग से केंद्र सरकार वन अधिकार कानून 2006 का सीधा उलंघन कर वनों को अदिवासियों को सामुदायिक वनाधिकार न दे कर वन विभाग और बड़ी कंपनियों के हित में वनों से लोगों को वंचित किया जा रहा है, यह न सिर्फ जंगलवासियों पर हमला है बल्कि यह पर्यावरण, हमारे देश के लोकतंत्र और संविधान पर भी हमला है।

आज कल हमारे देश में हर रोज़ किसी न किसी आदिवासी या जंगलवासी समुदाय पर अत्याचार हो रहा है- किसी को अपने खेतों और घरों से बेदखल किया जा रहा है; किसी को परियोजनाओं या सुरक्षित क्षेत्र के बहाने हटाया जा रहा है; किसी को सांप्रदायिक नफरत द्वारा निशाना बनाया जा रहा है; किसी को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाया जा रहा है तो किसी को आतंकवादी कह कर जेल भेजा जा रहा है। पिछले कुछ सालों से केंद्र सरकार लगातार ऐसी नीतियां बना रही है जिससे अत्याचारों को बढ़ावा मिल रहा है। 2016 में वृक्षारोपण के नाम पर नया कानून लाया गया जिसके अंतर्गत वन विभाग को लोगों के वनों पर कब्ज़ा करने के लिए नया हथियार मिल गया है। 2022 में वन संरक्षण नियमावली में संशोधन कर बड़ी परियोजनाओं के लिए ग्राम सभा एवं वन अधिकारों को नज़र अंदाज़ कर वन भूमि को कब्ज़ा कराने के लिए दरवाजा खोल दिया गया है। हाल ही में वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन करने का प्रस्ताव लाया गया जिसके द्वारा वन अधिकारों पर हमला करना और आसान होने वाला है। लोगों के हक़ों एवं ग्राम सभा के अधिकारों को मज़बूत करने के लिए एक भी नीतिगत कदम न उठा कर लगातार उनको कमज़ोर करने के प्रयास चल रहे हैं।

सम्मेलन में आये प्रतिनिधियों ने कहा कि इस सन्दर्भ में हम सरकार को याद दिलाना चाहते हैं कि अंग्रेज़ों के ज़माने की क़ानूनी व्यवस्था को जारी रख कर बार-बार हमें लोकतंत्र एवं बुनियादी अधिकारों से वंचित करने की कोशिश की गयी है। वन अधिकार कानून सिर्फ एक कानून नहीं है, बल्कि वह इस देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था की एक बुनियाद है। लेकिन आज कल धर्म और राष्ट्र के नाम पर और बड़े पूंजीपतियों के हित में लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं का हनन किया जा रहा है।

इसलिए ग्राम सभा के अधिकारों को केंद्र में रखते हुए देश की सभी लोकतान्त्रिक ताकतों के साथ मिल कर हम इन जन विरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाएंगे। पूर्वजों के सघर्षशील राह पर चल कर हम वन अधिकारों द्वारा इस देश में न्याय, समता एवं लोकतंत्र के वास्ते हमेशा लड़ते आये हैं, और आगे भी लड़ते रहेंगे।

इस सम्मेनलन में निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किए गए-

• सभी आदिवासियों एवं जंगलवासियों के अपने जायज व्यक्तिगत वन अधिकार के दावों और वन क्षेत्रों में सभी गांवों के सामुदायिक वन हक़ों के लिए अधिकार पत्र दिया जाय।

• वन अधिकारों का उल्लंघन करने वाले सभी पारित किये गए पर्यावरण और वन नीतियों को वापस लिया जाय या संशोधित किया जाय।

• वन अधिकारों के संबंध में लिए गये ग्राम सभा के निर्णयों का उल्लंघन करने वाले सभी वन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो, इसके लिए केंद्र सरकार आदेश निकाले।

• सरकार सुनिश्चित करें कि वन भूमि को प्रभावित करने वाली हर परियोजना, प्रभावित गांवों की ग्राम सभाओं की योजनाओं के आधार पर और उनकी सहमति के बाद ही स्वीकृत की जाय।

आगामी कार्यक्रम

सम्मेलन के अंत में निर्णय लिया गया कि देश भर में 5 जून 2023 (विश्व पर्यावरण दिवस) और 9 अगस्त 2023 (विश्व आदिवासी दिवस) को ब्लॉक, तहसील और राज्य स्तर पर धरना, जुलूस या अन्य कार्यक्रमों द्वारा स्थानीय समुदाय उपरोक्त चार मांगों को ले कर आवाज़ उठाएंगे।

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