संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

निरमा सीमेंट प्लांट विरोधी संघर्ष

महुआ क्षेत्र 1998 तक सौराष्ट्र का कश्मीर हुआ करता था वहां अधिकतर सभी फसलें हुआ करती थीं। आज भी महुआ की सब्ज़ी बम्बई जाती है। ऐसी धरती पर निरमा के किशनभाई पटेल ने एक सीमेंट प्लाट लगाने का प्रपोज़ल गुजरात सरकार को 2003 के ‘ग्लोबल समीट’ में दिया। किसानों ने साफ तौर पर कहा कि यह ज़मीन उपजाऊ है, हम यह ज़मीन किसी भी कीमत पर नहीं देंगे। पिछले करीब 2 साल से आंदोलन चल रहा है लेकिन सरकार का अभी तक दमनात्मक रूख ही दिख रहा है। एक छोटी सी पदयात्रा निकालनी हो तो महुआ गांव से 15-16 हज़ार लोग आ जाते हैं। किसान साफ तौर पर कहते हैं कि हम अपनी ज़मीन किसी भी कीमत पर नहीं देंगे।

सरकार लोगों को भ्रमित कर रही है जैसे मुख्यमंत्री नंबर वन, जीडीपी, विकास इत्यादि के नाम पर। अभी जो फजीऱ् विकास की बातें चल रही है उसकी वजह से राष्ट्रीय मीडिया में आंदोलनों की खबरें नहीं आ पाती हैं। जिस तरह से 2002 के दंगों के समय हिन्दुत्व को लेकर जो मानसिकता लोगों की थी वही मानसिकता इस फर्ज़ी विकास को लेकर है। परंतु किसान लड़ रहे हैं वह किसी भी कीमत पर ज़मीन नहीं देना चाहते। पिछले दो माह पूर्व हमने एक सम्मेलन किया। इस सम्मेलन के लिए दस बीघा ज़मीन पर खड़ी फसल को साफ करना पड़ा तब जा कर सम्मेलन के लिए स्थान बन पाया। मेरा कहने का मतलब है कि किसान किसी भी कीमत पर अपनी ज़मीन देने को तैयार नहीं है। यहां के सत्ता दल का विधायक किसानों के साथ है उस पर जानलेवा हमला हुआ  है। इसके बावजूद सरकार इस कंपनी को वहां से हटाने के लिए तैयार नहीं है। पिछले दिनों 11,111 किसानों ने अपने ख़ून से हस्ताक्षर करके सरकार को ज्ञापन दिया लेकिन सरकार ने किसानों के ख़ून से हस्ताक्षरित ज्ञापन को लेने से मना कर दिया। यही है स्वर्णिम गुजरात? यही है वाइब्रेंट गुजरात का सच?
गुजरात को एक प्रयोगशाला के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। पहले हिन्दुत्व प्रयोगशाला के तौर पर प्रचारित किया गया जिसके परिणामस्वरूप 2002 में गुजरात दंगे हुए, उसके बाद निर्दोष मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार कर उनके गुप्तांगों में इलेक्ट्रिक शॉक दिए गए फिर उन्हें पोटा के मुकदमों में जेल भेजा गया, इसके बाद इशरत जहाँ एनकाउंटर, शब्बीर ख़ाँ पठान एनकाउंटर, शादिक जमाद एनकाउंटर, शोहराबुद्दीन एनकाउंटर यह सारी घटनाएं बेशक गुजरात को एक प्रयोगशाला की मानसिकता की तौर पर ही की गयीं लेकिन इसके साथ ही इन घटनाओं के समकक्ष दूसरा घटनाक्रम भी चल रहा था, वह था हिन्दुत्व व पूंजीवाद के गठजोड़ की राजनीति।
फर्जी एनकाउंटर की ही तरह से गुजरात का विकास भी फर्जी है। गुजरात का मोदी आज 2010 में 2002 से भी ज़्यादा ख़तरनाक है क्योंकि सांप्रदायिकता से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक पूंजीवाद होता है। आने वाले समय में जिस तरह से गुजरात में भूमि अधिग्रहण होने वाला है जिसका ज़िक्र बिग 2020 नाम की रिपोर्ट में गुजरात सरकार ने किया है जिसमें वह कह रहे हैं कि अभी हमारे पास केवल 23 हज़ार हैक्टेयर ज़मीन है और 2020 तक हमें 1 लाख 20 हज़ार हैक्टेयर भूमि का अधिग्रहण करना होगा।
यदि किसान अपनी ज़मीन नहीं देगा तो राज्य दमन से इस ज़मीन को हड़पने की कोशिश की जायेगी। गुजरात देश का एकमात्र राज्य है जहां पर स्पेशल इनवेस्टमेंट एक्ट लागू किया गया है। इसके अंतर्गत गुजरात में 13 स्पेशल इन्वेस्टमेंट रीजन स्थापित किये जा रहे हैं। प्रत्येक रीजन हेतु 10,000 एकड़ ज़मीन की ज़रूरत होगी।
गुजरात में एक सवाल आने वाले दिनों में गंभीर रूप से चर्चा का मुद्दा बनेगा कि इतनी ज़मीन आयेगी कहां से? और जमीन से विस्थापित लोग जायेंगे कहाँ? जिंदा कैसे रहेंगे? – जिग्नेश मेवाणी, महुआ (गुजरात)
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