संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

झारखंड सरकार द्वारा सामाजिक कार्यकर्ताओं पर लगाए फर्जी देशद्रोह के मुकदमे के खिलाफ दिल्ली में जनप्रदर्शन

नई दिल्ली, 7 जुलाई 2018 को झारखण्ड भवन, नई दिल्ली के समक्ष झारखण्ड के 20 साथियों के ऊपर फेसबुक में लिखने के कारण फर्जी देशद्रोह का मामला खूंटी थाना में दर्ज होने के खिलाफ एक विरोध प्रदर्शन किया गया.

प्रदर्शन को संबोधित करते हुए मुक्ति तिर्की (दलित आदिवासी दुनिया के संपादक और उन बिस साथियों में से एक जिनके ऊपर देशद्रोह का मामला दर्ज हुआ है) मैं यैसा कोई देशद्रोही काम नहीं कर रहे है. हमलोग संविधान संबत 5वी अनुसूची की बात कर रहे है. उसके तहत गांव को ग्राम सभा को मजबूत करने की, संसाधनों के लूट के खिलाफ हम आवाज उठाते हैं. तो सरकार हमे देशद्रोही ठहराने में तुला हैं.

जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी के च. अ. प्रियदर्शी ने कहां कि जिन बीस लोगों पर एक तरह के अभियोग और धारायें लगा दी गई, मानो वे सभी किसी एक संगठन या गिरोह के सदस्य हों. जबकि हकीकत यह है कि उनमें अलग अलग पेशे के लोग हैं. कुछ सरकारी सेवक हैं, कुछ बैंककर्मी, कुछ पत्रकार- लेखक, कुछ समाजकर्मी. इनमें से 3 को छोड़कर किसी का आपस में कोई संबंध नहीं है. केस होने के बाद यह लोग एक दूसरे को पहचान रहे हैं. यहां तक कि फेसबुक फ्रेंड भी नहीं हैं. तो यह लोग आपस में मिलाकर देश तोड़ने का सडयंत्र कैसे कर सकते हैं? असल में यह सब प्रतिरोध के स्वर को दबाने में लगी है.

एन. पी. शाह ने कहाँ कि इन बिस लोगों के ऊपर मुख्य रूप से आरोप यह है कि इनमें से अधिकतर लोगों ने सोशल मीडिया पर लिख कर संविधान की गलत व्याख्या की, भ्रामक बातें फैलाई और खूंटी में लोगों को देशद्रोह के लिए उकसाया, जिस क्रम में 26 जून को खूंटी में आंदोलनरत आदिवासियों ने सांसद कड़िया मुंडा के सुरक्षा गार्डों का अपहरण किया. यह बहुत ही बेबुनियादी और बेतुकी बात हैं.

बीरेंद्र कुमार ने सवाल उठाते हुए कहाँ कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आईटी की धारा 66 ए / 66 एफ को दो साल पूर्व ही असंवैधानिक घोषित करते हुए निरस्त कर दिया है. बावजूद इसके खूंटी थाना प्रभारी ने उस धारा का प्रयोग किया जो हमारे हिसाब से असंवैधानिक कदम है, साथ ही यह माननीय उच्चतम न्यायालय की अवमानना भी. यैसी बचकानी हरकतों से प्रशासन को बचना चाहिए. और हम झाड़खण्ड सरकार से सभी बिस साथियों के ऊपर लगे सभी धाराओं को बिना शर्त वापस ले. साथ ही उन्हों आगे कहाँ कि झाड़खण्ड में अब भी भूख से मौते ही रहा है और झारखण्ड सरकार झाड़खंडिगों के जमीन छीनकर उसमे हाथी उड़ाने को विकास का संज्ञान देने में लगी हुई हैं. झाड़खण्ड से बाहर पढ़ने जाने वाले छात्रों का स्कॉलर खत्म करके उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ करने पर तुली हुए है. उन्होंने कहाँ की अबतक न ही सरकार ने और न प्रशासन के किसी अधिकारी ने पत्थलगड़ी को असंवैधानिक करार दिया. सबने यही कहाँ है कि इसका गलत व्यख्या किया जा रहा है. तो सरकार किसलिए हैं. सरकार के सूचना एवं प्रसार मंत्रालय को अखबारों के माध्यम से पाँचवी अनुसूची के तहत ग्राम सभा के अधिकारों और कर्तव्यों का जानकारी देना चाहिए. ग्रामीणों को जागरूकता करना चाहिए. यह काम जब सरकार ने इतने सालों में नहीं किया तो कुछ आदिवासी ने युवकों ने इस काम को किया. हो सकता है इनमें कमियां खामियां हो तो सरकार को इसका सही व्याख्या करना चाहिए न कि उनके ऊपर देश को तोड़ने का देशद्रोह जैसा संगीन आरोप लगाया जाना चाहिए. देशद्रोह का मुकदमा करने से सरकार की मंशा साफ झलकती हैं. सरकार अपने हर क्षेत्र में फेल है. इसलिए उसके खिलाफ उठने वाले आवाजों को दवाने में लगी है. जिसमे वे कभी सफल होगा.

यूनाइटेड अगेंस्ट हेट के नदीम खान ने कहाँ कि जबसे झारखण्ड में भाजपा का सरकार बनी है तबसे बच्चा चोरी और गाय के नाम से बेगुनाहों को मॉब लॉन्चिंग के नाम से मारा जा रहा हैं. जल – जंगल- जमीन के रक्षा का आंदोलन करने वालों के ऊपर देशद्रोह का मुकदमा लगाया जा रहा है.

सभा के बाद एक डेलिगेशन ने झारखण्ड सरकार के नाम एक ज्ञापन दिया और जिसमे मांग किया गया है कि सभी बिस लोगों के ऊपर से फर्जी देशद्रोह का मुकदमा वापस ले.

कार्यक्रम को सफल बनाने में विक्रम कुमार, थलापल्ली प्रवीण, रजनी, शुकृति, अनुभूति शर्मा, शांति, मनमीत, श्रुति, वर्तिका, ओम प्रकाश, विजय मिंज, अमन, आलम, सुधांशु, गुलशन टूडू, अभिनाश, अनिल, सौम्या एवं अन्य.

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