संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

वेदांत विश्वविद्यालय एवं वेदांता कंपनी पर कसता न्यायालयों का शिकंजा

केन्द्र के वेदांत एलुमिनियम कंपनी के लांजीगढ़ एल्युमिनियम रिफाइनरी के ताकत को 1 एमटीपीए से 6 एमटीपीए तक बढ़ाने की अर्जी को खारिज करने के बाद वेदांत कंपनी ने उड़ीसा हाईकोर्ट में अपनी अर्जी दाखिल की। चीफ जस्टिस वी.गोपालगौड़ा एवं जस्टिस बी.एन. महापात्र की पीठ ने कंपनी के वकील व केंद्र के असिस्टेंट सोलिसिटर जनरल को सुनने के बाद इस अर्जी के ऊपर 1 मार्च 2011 को आदेश दिया कि कोई कार्यवाही आगे नहीं बढ़ायें। असिस्टेंट सोलिसिटर जनरल के कहने के मुताबिक वेदांत कंपनी द्वारा अपने काम को चालू कराने से पहले पर्यावरण एवं वन कानूनों के तहत अनुमति न लेने के कारण यह हस्तक्षेप किया गया।

बिजली के टावर एवं 33 केवी विद्युत केबल को झारसुगुडा में खेती की जमीन पर लगाने पर भी उड़ीसा हाईकोर्ट की तरफ से रोक लगा दी गयी है। चीफ जस्टिस वी. गोपाल गौडा एवं जस्टिस बी.एन. महापात्र की पीठ राज्य सरकार व वेदांत कंपनी को कारण दर्शाओ नोटिस भी जारी कर चुकी है क्योंकि यह मामला बिजली नियम 2003 के तहत आता है।

हाईकोर्ट का यह आदेश कुमुदपल्ली एवं डाल्की बंधतेरा गांवके लोगों के अर्जी के बाद आया जिसमें इन गांव के लोगों का कहना है कि वेदांत कंपनी खेती की जमीन पर जबरन अपने टावर बिठाना चाहता है जिसके खिलाफ बोलने पर प्रतिरोध करने पर धमकी भी दी जाती है। उनका यह भी कहना है कि ठेकेदारों ने उनकी जमीन को खोदते हुए उनकी खेती को नुकसान पहुंचाया है। झारसुगुडा पुलिस एवं कलेक्टर को इसके खिलाफ रिपोर्ट करने के बाद भी इस पर कोई सुनवाई नहीं की गयी।
वहीं दूसरी तरफ वेदांत व अनिल अग्रवाल फाउंडेशन के वेदांत विश्वविद्यालय बनाने की अर्जी उच्चतम न्यायालय ने स्थगित कर दी है। पुरी में बनने वाले इस विश्वविद्यालय के भू-अधिग्रहण के खिलाफ लोगों के संघर्ष के चलते हाईकोर्ट ने 2010 में ही रोक लगा दी थी। इस भूमि-अधिग्रहण के खिलाफ तमाम अर्जी दायर की गयी हैं।

इस बीच उड़ीसा राज्य सरकार ने वेदांता कंपनी की बाक्साइट माइनिंग पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा लगायी गयी रोक को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है। राज्य सरकार का कहना है कि पर्यावरण मंत्रालय का आदेश माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की अवमानना है। सर्वोच्च न्यायालय का कहना था कि यदि राज्य सरकार केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना मानती है तो अवमानना की याचिका दायर कर सकती है।

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