राजस्थान : करौली में मंदिर माफी की जमीन नहीं बिकेगी लेकिन नवलगढ़ में छीन ली जाएगी : एक ही राज्य में न्याय व्यवस्था का दोहरा रंग
राजस्थान के करौली जिले में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा बाबा रामदेव को दी गई जमीन की लीज़ को सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह जमीन मंदिर माफी की है अतः इसको बेचा नहीं जा सकता है। गौरतलब है कि यह वही राज्य है जहां झुंझुनू जिले के नवलगढ़ में किसान पिछले एक दशक से भी अधिक समय से अपनी जमीनों को बागड़-बिरला के सीमेंट फैक्ट्रियों से बचाने के लिए लड़ रहे हैं लेकिन प्रशासन भूमि जबरन अधिग्रहित करने पर तुला हुआ है। 700 बीघा मंदिर माफी की जमीन इन सीमेंट प्लांटो के लिए अधिग्रहित कर ली गई किंतु इस बात का संज्ञान न तो प्रशासन ने लिया न ही न्यायालयों ने। -सम्पादकीय टिप्पणी;
आप सभी किसान भाईयों को जानकारी होनी चाहीये कि अपने राजस्थान के ही करौली जिले में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने बाबा रामदेव के स्वाभिमान ट्रस्ट को 401 बीघा जमीन जो की मन्दिर माफी की है देने की पहले घोषणा की फिर पिछले दिनों शिलान्यास भी कर दिया। हड़बड़ी तब मची जब सर्वोच्च न्यायालय ने यह कह कर इस लीज को ही अवैध करार दे दीया तथा कहा कि मन्दिर ट्रस्ट की जो जमीन है वो मूर्ति के नाम है तथा मूर्ति नाबालिग है इसका बैचान हो ही नहीं सकता। और न इसे कोई लीज या डीड पर कोई दे सकता।
मन्दिर की जमीन का कृषि उपयोग के अलावा किसी प्रकार का बदलाव या रूपांतरण नहीं हो सकता। इस लिये इस लीज को ही अमान्य कर दिया गया। ये समाचार बड़े विस्तार से आया था। अब मैं नवलगढ के ईलाके में सिमेंट कंपनीयों द्वारा किये जा रहे अधिग्रहण के परिपेक्ष्य में कहना चाहता हूं कि इस अधिग्रहण प्रभावित ईलाके में भी काफी जमीन मंदिर माफी की है उसको कैसे ले लिया। जो कि बिक ही नहीं सकती। मेरी जहां तक जानकारी है अब तक जो मंदिर माफी की जमीन कंपनी ने ली है उसमें किसी की भी रजिस्ट्री नहीं हुई है सिर्फ इकरार नामें पर साईन हुऐ हैं दूसरी बात ये है कि मंदिर माफी की जमीन का पैसा भी बहुत कम दिया है। इस बात पर अगर गोर करें तो ये बात किसान के हक की है जो मिलेगा लेकिन कुछ संघर्ष तो करना ही पडे़गा। ये ईलाका पढे लिखे, समझदार व क्रांतिकारियों व वीरों की भूमि कहलाता है और बोलने वाला कोई नहीं है।
जिनको बोलने के लिऐ चुना वो या तो पार्टी या कंपनी के द्वारा खरीद लिऐ गये या उन्होने सोच लिया कि फालतु में क्यों सिरदर्द लें। सब बातों में हमारा जिले की राजनिती व वीरता का डंका बजता है लेकिन इस मामले में सिर नीचे करना पड़ता है।
सभी वकील बंधुओं,पत्रकार बंधुओं, उभरते हुए व पहले से जगमगा रहे जन प्रति निधियों, प्रोफेसरों, अध्यापकों, व्यापारियों व सभी किसानों से अनरोध है कि अगर मेरी बात में कहीं संसय हो या आपको लगता है पर्यावरण, पानी, पलायन व कृषि आधारित रोजगार पर कोई असर नहीं पडे़गा तो ठीक है वर्ना आप भी इस अन्याय व बर्बादी के खिलाफ आवाज उठाऐं।