संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

मध्य प्रदेश : मोदी सरकार द्वारा परमाणु प्लांट की मंजूरी के बाद चुटका संघर्ष की राह पर

केंद्र की मोदी सरकार ने पिछले दिनों  चार राज्यों (कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ के कैगा, राजस्थान के बांसवाड़ा के माही, हरियाणा के फतेहाबाद जिले के गोरखपुर और मध्य प्रदेश के मंडला जिले के चुटका में स्थापित किये जायेंगे।) में 10 परमाणु रिएक्टरों की स्थापना को मंजूरी दे दी है। इसमें एक रिएक्टर मध्य प्रदेश के मंडला स्थित चुटका में बनेगा। ये रिएक्टर 2031 तक…
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भारतमाला-एक्सप्रेस भूमि अधिग्रहण : “जब तक नई बाज़ार दर से मुआवज़ा नहीं, तब…

बिहार के कैमूर सहित कई ज़िलों में अपनी ज़मीन के उचित मुआवज़े की मांग को लेकर किसान महीनों से आंदोलनरत हैं और इस…

हरियाणा : बेलसोनिका यूनियन की छंटनी के खिलाफ सामूहिक भूख हड़ताल, आंदोलन तेज करने…

हरियाणा के गुरुग्राम में दिनांक 26 मार्च 2023 को बेलसोनिका यूनियन ने आठ घंटे की सामूहिक भूख हड़ताल की। मजदूर विरोधी…

हरियाणा : बेलसोनिका प्रबंधन की तानाशाही के खिलाफ बेलसोनिका मजदूर यूनियन का संघर्ष जारी

हरियाणा, गुड़गांव स्थित बेलसोनिका ऑटो कंपनी लगभग पिछले दो सालों से कंपनी के अंदर फर्जी दस्तावेजों के नाम पर स्थाई मजदूरों की खुली-छिपी छंटनी कर रही है। कंपनी लगातार प्लांट के स्थाई मजदूरों को निलंबित कर ठेकेदारी पर मजदूरों को भर्ती कर रही है। इस दिशा में दिवाली के समय छुट्टियों की आड़ में कंपनी ने अपने तीन मजदूरों को नौकरी से निकाल दिया था।…
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निर्यात हेतु ‘जीएम’ बासमती नहीं, देशवासियों के लिए ‘जीएम’ सरसों क्यों?

खेती में अनेक सरकारी हस्तक्षेपों की तरह ‘जीन-संवर्धित’ बीजों को लाने के पीछे भी उत्पादन बढ़ाने का बहाना किया जा रहा…

बांध तो नहीं रुका, लेकिन क्या आंदोलन भी असफल रहा?

करीब चार दशकों के लंबे अनुभव में ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ को अपनी सफलता-असफलता के सवालों का सामना करते रहना पड़ा है। एक तरफ घाटी में प्रस्तावित बांध बनते रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ आंदोलन, अपनी स्थानीय, सीमित ताकत और प्रभाव से लेकर प्रदेश, देश की सीमाओं को लांघकर अंतरराष्ट्रीय हुआ है। क्या कहेंगे, इसे? प्रस्तुत है, इस विषय पर प्रकाश डालता आशीष कोठारी का…
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पेसा कानून : 26 वर्षों से क्रियान्वयन का इंतजार करता आदिवासी स्व-शासन का कानून

-डॉ सुनीलम 24 दिसंबर 2022 को पेसा कानून लागू हुए 26 वर्ष पूरे हो जाएंगे। भारत की संसद में 15 दिसंबर 1996 को पंचायत…

भोपाल गैस त्रासदी – जख्म अभी भरे नहीं हैं !

‘भोपाल गैस त्रासदी’ के 38 वें साल में, उसके प्रति सरकारों, सेठों और समाज की बेशर्म अनदेखी के अलावा हमें और क्या दिखाई देता है? 1984 की तीन दिसंबर के बाद पैदा हुई पीढ़ी इसे लेकर क्या सोचती है? क्या उसे अपनी पिछली पीढ़ी के कारनामों पर कोई कोफ्त नहीं होती? प्रस्तुत है, इन्हीं सवालों को उजागर करता युवा अस्मा खान का यह लेख; पुराने शहर की तरफ कभी यूँ…
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