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दिल्ली
गांव तक पहुंचा, कचरे का कहर
कहा जाता है कि शहरी लोग कचरे का सर्वाधिक विसर्जन करते हैं, लेकिन अब यह व्याधि गांवों तक भी पहुंच गई है। प्रस्तुत है, इसी विषय पर प्रकाश डालता कुलभूषण उपमन्यु का यह लेख;
भारतवर्ष में प्रतिदिन 28 करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है जिसमें से 10.95 करोड़ टन ग्रामीण क्षेत्रों में हो रहा है। ग्रामीण भारत में तेजी से बदलती जीवन-शैली के चलते शहरी सुविधाएँ…
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निर्यात हेतु ‘जीएम’ बासमती नहीं, देशवासियों के लिए ‘जीएम’ सरसों क्यों?
खेती में अनेक सरकारी हस्तक्षेपों की तरह ‘जीन-संवर्धित’ बीजों को लाने के पीछे भी उत्पादन बढ़ाने का बहाना किया जा रहा…
भूमि अधिकार आंदोलन का राष्ट्रव्यापी आह्वान : 10 दिसम्बर और 30 जनवरी 2023 को…
भूमि अधिकार आन्दोलन का चौथा राष्ट्रीय सम्मेलन 26-27 सितम्बर 2022 को नई दिल्ली में कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित…
पूंजी की प्रभुता में लोकतंत्र की हैसियत
दुनियाभर की भांति-भांति की शासन-प्रणालियों को देखें तो उनमें सर्वश्रेष्ठ लोकतंत्र ही दिखाई देता है, लेकिन पूंजी के बेशर्म सम्राज्य में उसकी कितनी हैसियत बची है? आज दुनिया का कोई भी देश, अपनी खामियों-खूबसूरतियों के बावजूद लोकतंत्र और पूंजी के रिश्तों को सुधार नहीं पा रहा है। ऐसे में क्या लोकतंत्र कारगर उपाय हो सकेगा? प्रस्तुत है, इसकी पड़ताल करता…
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वन जमीन डायवर्जन नियम में संशोधन : कारपोरेट के सामने नतमस्तक सरकार
मोदी सरकार की “ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस” नीति के तहत केंद्रीय वन, पर्यावरण एव जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 28 जून…
आदिवासियों की बदहाली के संवैधानिक गुनहगार
संविधान में आदिवासियों को मिले विशेष दर्जे को आमतौर पर अनदेखा किया जाता रहा है। मसलन – राज्यपालों को अनुसूचित क्षेत्रों में विशेषाधिकार दिए गए हैं, ताकि वे आदिवासियों की विशिष्ट जीवन पद्धतियों, खान-पान और भाषा आदि को देखते हुए उनके हित में निर्णय ले सकें, लेकिन विडंबना है कि अधिकांश राज्यपाल संविधान के इस प्रावधान से अनजान, अछूते ही रहे हैं।…
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पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों के राज्यपालों को गृह मंत्रालय का दिशा-निर्देश
दिल्ली 26 मई 2022। पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों (राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा, गुजरात,…
दिल्ली : लंबे संघर्ष के बाद आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व सहायक को मिला ग्रेच्युटी का हक़
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की पीठ ने कहा कि आंगनवाड़ी केंद्र भी वैधानिक कर्तव्यों का पालन…
जलवायु परिवर्तन : खेती पर मंडराता खतरा
मौजूदा विकास के साथ जो संकट सर्वाधिक महसूस किया जा रहा है, वह है- जलवायु परिवर्तन का। जिस तौर-तरीके से हम अपना विकास करने में लगे हैं उससे धीरे-धीरे पहले प्रकृति, फिर वनस्पतियां और फिर खेती समाप्त होती जाएंगी। आम लोगों पर क्या होगा इसका असर? सप्रेस से साभार पंकज चतुर्वेदी का आलेख;
जलवायु परिवर्तन की ‘अंतर सरकारी समिति’ (आईपीसीसी) की ‘जलवायु…
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