संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

उत्तर प्रदेश : बांदा में बालू खनन माफिया के खिलाफ किसानों का जल सत्‍याग्रह

-रणविजय सिंह

उत्‍तर प्रदेश के बांदा जिले में केन नदी के किनारे खप्‍ट‍िहाकलां गांव स्‍थ‍ित है। इस गांव की रहने वाली सुमन सिंह इन दिनों बालू माफिया से काफी परेशान हैं। दरअसल, बालू खनन करने वाली कंपनी और माफिया मिलकर उनके गांव की जमीन पर अवैध खनन कर रहे हैं और शिकायत करने पर जान से मारने की धमकी देते हैं।

इन्‍हीं परेशानियों से आजिज आकर 1 जून 2020 को सुमन और उन जैसे अन्‍य किसान केन नदी में उतरकर जल सत्‍याग्रह करने को मजबूर हो गए। किसानों के जल सत्‍याग्रह करने की बात जब अध‍िकारियों तक पहुंची तो मौके पर उपजिलाध‍िकारी और पुलिस का दस्‍ता पहुंचा और किसानों को समझा बुझाकर जल सत्‍याग्रह खत्‍म कराया गया।

इस पूरे मामले पर सुमन कहती हैं, ”खनन कंपनी को ज‍िस जगह का पट्टा मिला है वहां अब बालू नहीं बचा, ऐसे में यह कंपनियां हमारी जमीनों को खोदकर बालू निकाल रही हैं। इसके ल‍िए हमसे सहमति भी नहीं ली गई और विरोध करने पर जान से मारने व फर्जी मुकदमे में फंसाने की धमकी भी देते हैं।”

गांव वालों की ओर से जो श‍िकायत की गई है उसके मुताबिक, आरुष‍ि ट्रेडर्स और साई चरण ट्रेडर्स नाम की दो खनन कंपनियां मिलकर ग्राम सभा की जमी पर अवैध खनन कर रही हैं। इन कंपनियों की ओर से ग्रामसभा की भूमि गाटा संख्‍या- 100/3, 273, 269, 299, 297, 296 में अवैध खनन किया गया है।

इस मामले पर बांदा के पैलानी क्षेत्र के उपजिलाधिकारी रामकुमार कहते हैं, ”खनिज विभाग, राजस्‍व विभाग और पुलिस विभाग की टीम अवैध खनन की जांच करने गई थी। इसकी रिपोर्ट जिलाध‍िकारी को भेज दी गई है।”

पर्यावरण को भी नुकसान

वहीं, इस पूरे मामले का एक पहलू यह भी है कि बालू खनन से पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है। बांदा जिले के ही रहने वाले सामाजसेवी आशीष सागर बताते हैं, ”केन नदी में अवैध खनन हमेशा से होता आया है। खनन कंपनियां जो मौरंग न‍िकाल रही हैं वो आज का नहीं है, यह मौरंग 1992 में आई बाढ़ से यहां आया था, बाद में इसपर खेत बन गए और मौरंग नीचे दब गया। खनन माफिया इसी मौरंग को हासिल करने के लिए मशीनों से बड़े-बड़े गड्ढे खुदवाते हैं, जबकि नियम है कि मशीनों से खनन नहीं हो सकता।”

”खप्‍ट‍िहाकलां में ज‍िस जगह अवैध खनन हो रहा है वहां से मात्र 300 मीटर दूर सिमराडेरा मजरा है। इस बारिश में स‍िमराडेरा वो पूरी तरह डूब जाएगा, क्‍योंकि बाढ़ को रोकने के लिए बबूल के पेड़ लगाए गए थे जो कि खनन कंपनी ने साफ कर दिए हैं। ऐसे में यह भी एक चिंता की बात है,” आशीष सागर कहते हैं।

नदियों पर हो रहे अवैध खनन को लेकर नदी विशेषज्ञ डॉ. वेंकटेश दत्‍ता भी चिंता जाहिर करते हैं। वो कहते हैं, ”पर्यावरण पर लंबे वक्‍त में क्‍या असर होगा इस बात को देखते हुए यह तय करना चाहिए कि कहां पर बालू निकालना है, लेकिन ऐसा होता नहीं है। ऐसे में इस तरह के खनन से नदी के हैबिटेट पर भी असर होता है। दूसरा यह कि ज्‍यादा खनन करने से उस इलाके में बाढ़ की संभावना बढ़ जाती हैं। कई जगह आर्ट‍िफिशियल पूल बन जाते हैं, वो भी हैबिटेट के लिए सही नहीं है।”

साभार : डाउन टू अर्थ

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