संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

उड़ीसा का एक ऐसा गांव जिसका हर निवासी जी रहा है किडनी रोग के साए में; भाग दो

उड़ीसा का एक ऐसा गांव जिसका हर निवासी किडनी रोग के साए में जी रहा है। हम यहां पर रंजना पाढी तथा राजेन्द्र सिंह नेगी की  रिपोर्ट का अंतिम (भाग दो) भाग प्रकाशित कर रहे हैं। संघर्ष संवाद के लिए इसे संध्या पाण्डेय ने हिंदी में अनुवाद किया है;

पहला भाग यहाँ पढ़े

जब हम उनके परिवार वालों से मिले तो तुलसी राव की पत्नी थोड़ी दूर केवड़ा के खेत में थी और बंदरो से केवड़ा के फूलों की रक्षा का उपाय कर रही थीं। उनका परिवार खेती से होने वाले आय पर, जो की 50,000 से 60,000 रु. सलाना होती है, निर्भर रहता है। वे अपने खेत को बटाई पर भी देती हैं। इन खेतों से 16-17 कुंतल धान हर साल पैदा होता है। वे काजू और नारियल को बेच कर भी कुछ आय प्राप्त करते हैं।

इंडियन रेयर अर्थ उद्योग

मोनाजाइट एक लाल भूरे रंग का फॉस्फेट खनिज लवण है जिसमें थोरियम, यूरेनियम और लेनथानम जैसे रेयर अर्थ तत्व पाए जाते हैं। समुद्र के बालू वाले तटों पर (सैंडी बीच) पर यह भारी मात्रा में क्रिस्टल के रूप में पाया जाता है। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के बाद उड़ीसा तीसरा सबसे ज्यादा मोनाजाइट सघन क्षेत्र है।

अन्तरराष्ट्रीय बाजार में मोनाजाइट की मांग उस समय बढ़ी जब थोरियम और युरेनियम की मांग बढ़ी। मोनाजाइट समेत इस तरह के रेयर अर्थ मिनरल आईफोन और लैपटॉप से लेकर स्मार्ट बम और टैंक इत्यादि के बनने में एक जरूरी सामग्री है।

दुनिया में चीन रेयर अर्थ का सबसे बड़ा निर्यातक रहा है। रेयर अर्थ मेटल्स का 90% हिस्सा जो निर्यात होता है उसका खनन चीन में होता रहा है। जब तक की 2010 में चीन ने अपना निर्यात घटाकर ७०% करके पश्चिमी महाश्क्तियों को इसका विकल्प खोजने के लिए मजबूर कर दिया। यह चीन द्वारा लिया गया एक निर्णयाक फैसला था जिसका उद्देश्य अपने देश के महत्वपूर्ण संसाधनों पर विदेशी कब्जे को रोकना और विदेशी कंपनियों के उत्पादन को अपने देश में लाने के लिए प्रोत्साहित करना था। रेअर-अर्थ मेटल को सबसे प्रतिस्पर्धी कीमत पर उपलब्ध करा सकने के बाद अब चीन की इस उद्योग पर ज्यादा मजबूत पकड़ है। जहां रेअर-अर्थ मेटल की उपलब्धि और और उत्पादन के साथ उसका संबंध अब चीन की शर्तों पर तय होता है।

इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (IREL) जो एक सार्वजानिक क्षेत्र की कंपनी है, की स्थापना 1979 में परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा की गई और जैसे ही मोनाजाएट की मांग बढ़ी विशेष तौर पर रक्षा क्षेत्र का विस्तार हुआ वैसे ही IREL के कामों में तेजी आई।

मोनाजाइट को पहले एक निर्धारित/नियत किए जाने वाले पदार्थ के रूप में वर्गीकृत किया गया। उसके खनन और आयात-निर्यात पर केवल केंद्र सरकार का नियंत्रण था। परमाणु ऊर्जा विभाग ने इसमें सुधार किया कि इसमें निजी क्षेत्र मदद कर सकते हैं। विभाग का लक्ष्य कम से कम एक मिलियन टन मोनाजाइट सैंड का खनन सुनिश्चित करना था जिससे निजी क्षेत्र के खनन मालिक उसका प्रोसेसिंग कर सकें।

हालिया वर्षो में केंद्र ने कहा था कि उसकी योजना है कि “2030 तक संचयी विद्युत ऊर्जा की क्षमता का 40 प्रतिशत हिस्सा गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करना है”। यूरेनियम आधारित रिएक्टरों को थोरियम आधारित रिएक्टरों में संवर्धित करना है।

गैर-जीवाश्म इंधन ऊर्जा की खोज भी अपने पर्यावरण और जन-स्वास्थ्य से खिलवाड़ किये बिना नहीं हो सकता। उदाहरण के तौर पर अगस्त 2013 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने केरल और तमिल नाडू के समुद्री तटों पर बालू खनन को प्रतिबंधित कर दिया था। डाउन टू अर्थ के अनुसार, “यह प्रतिबंध NGT बार एसोसिएशन द्वारा दयार एक याचिका के फलस्वरूप था जो दूसरे पर्यावर्णीय खतरे, तट पर खनन से उत्पन खनिज पदार्थ से उत्पन विकिरण (रेडियेशन) और ज्यादातर रेयर अर्थ से मिल कर बनता है”।

मोनाजाएट खनन पर उपलब्ध साहित्य बताते हैं की इसके रेडियो एक्टिव तत्व जन स्वास्थ्य और पर्यावरण पर कैसा प्रभाव डालते हैं। और इसी तरह उन स्वास्थ्य के खतरों को भी चिन्हित करते है जो प्रोसेसिंग के दौरान उत्पन्न अपशिष्ट और उन्हें एक जगह इक्कठा करने की वजह से होते हैं।

2010 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार अमरीकी पर्यावरणीय बचाव एजेंसी ने साफ-साफ कहा है की ऐसी जगह जहाँ मोनाजाइट डंप किया जाता है सामान्यतः अनेक रेडियो एक्टिव तत्वों के साथ मिले हुए खनिजों की सघनता ज्यादा होती है।

2010 में ब्रिटिश जियोलॉजी सर्वे (BSG) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट कई एक पर्यावारिणीय मुद्दो के साथ-साथ रेयर अर्थ तत्वों के उत्पादन से जुड़े पर्यावरण के मुद्दे को बताता है। यह निष्कर्ष उन इलाकों जहाँ खनन एंव प्रोसेसिंग होती है के पर्यावरणीय रेगुलेशन और कंट्रोल से निकलता है।

कुछ ores (ओर) का रेडिओ एक्टिविटी से महत्वपूर्ण संबंध है। उदहारण के तौर पर जीनो टाइम (Xenotime) जो एक रेयर अर्थ फोस्फेट पदार्थ है और मलेशिया में डंप किया गया है, में 2% यूरेनियम और 0.7% थोरियम है। ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे कहता है की यही वह कारण था कि मलेशिया का प्रोसेसिंग उद्योग असफल हुआ(पेज 15) और यही कारण है की आखिर क्यों ऑस्ट्रलिया यूरोप और चीन में मोनाजाएट मिला हुआ तटीय बालू (beach sand) का प्रोसेसिंग प्रतिबंधित हुआ।

तब फिर आखिर भारत में वह कौन सा सुरक्षागार्ड लगाया गया जब 10,000 टन प्रतिवर्ष मोनाजाइट प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित किया गया।

जांच पड़ताल की जरुरत

भारत के पूर्वी तटों पर लम्बे समय से मोनाजाएट का खनन होता रहा है। जनवरी 2013 में मद्रास हाईकोर्ट में तमिलनाडु की एक कंपनी वी.वी.मिनरल के अवैध बालू खनन के खिलाफ जुर्माना लगाया गया था और मद्रास हाईकोर्ट में उसके खिलाफ जनहित याचिका दायर की गई थी । हालांकि कम्पनी ने किसी भी प्रकार के अवैध खनन की संभावना से इंकार कर दिया। उसने पर्यावर्णीय मंजूरी होने और किडनी रोग के खतरे और उससे जुड़ी गतिविधियों के बारे में जानकारी न होने का दावा किया।

और एक रिपोर्ट आँध्रप्रदेश के भीककुलम के पड़ोसी जिले वत्स्वालसा की कम्पनी ट्राइमेक्स सैन्डस प्राइवेट लिमिटेड का है। कंपनी के सीएसआर ने 1.5 करोड़ रूपये से यह डायलिसिस यूनिट की शुरुआत की है। मरीजों को विशाखापट्टनम या भीककुलम नहीं जाना पड़ता है, लेकिन इसी साल एक और रिपोर्ट है की ट्राईमेक्स ने समुद्री बालू से मिनरल निकाल कर हजारों करोड़ कमाए हैं और कि मोनाजाइट और इसके तटीय बालू के खनिज पदार्थ जिनकी कीमत करीब 30,000 करोड़ है, हर साल निर्यात होता है।

हॉस्पिटल और क्लिनिक खोलने के बजाय जीर्ण किडनी रोगों के कारणों का अध्ययन जरूरी है।

इस अध्ययन की जल्दी जरूरत है, क्योंकि प्रकृतिक आपदा के समय और उसके बाद ये खतरनाक कचरे समस्या को और अधिक बढ़ा सकते है। तेज हवाएं और बारिश का पानी हवा के साथ इन कचरों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाकर समस्या बढ़ा सकते हैं। उड़ीसा के गंजाम जिले में जब 2013 में आया फेलिम साइक्लोन तब तटों से टकराया तो उड़ीसा का गंजाम जिला सर्वाधिक प्रभावित हुआ और बड़ापुट्टी का मोनाजाइट प्लांट को करीब 80 करोड़ का नुकसान हुआ। इस तरह कचरों का खनन की जगह से उड़कर भूजल में मिलने का अभी तक पता नहीं चल पाया।

विनीता बल जो अभी हाल ही में दिल्ली नेशनल इंस्टिट्यूट और इम्युनोलॉजी से एक साइंटिस्ट के तौर पर सेवानिवृत्त हुई है ने ‘द वायर’ को बताया कि क्रॉनिक किडनी रोग के संभावित कारणों पर कुछ छिट-पुट रिपोर्ट आई हैं- लेकिन अभी इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं है । युरेनियम अपने आप में किडनी के लिए जहरीला है। एक बार अगर यह किडनी पर जमा हो जाता तो वह लबे समय तक बना रहता और इसलिए वह विषैलेपन को और अधिक बढ़ाता है।

इसके आलावा जब एक बार किडनी खराब हो जाती है तो मोनाजाइट का एक हिस्सा फॉस्फेट इसे और भी खराब करता है, क्योंकि सामान्यता वह किडनी द्वारा ही साफ किये जाते हैं। और एक अस्वस्थ किडनी इस योग्य नहीं होती की वह फॉस्फेट की सफाई कर सके तब फिर फॉस्फेट किडनी में जमा होकर स्थिति को गंभीर बना देता है। लोगों में जो कुछ यह हो रहा है वह सामान्यतः मेडिकल इनफार्मेशन कम अनुमान (स्पेक्युलेशन) ज्यादा है।

जाने-माने पर्यावरणवादी प्रफुल्ल सामन्तरा ने, जो उड़ीसा के निवासी हैं, द वायर को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि निशिचत तौर पर यह जाँच का विषय है। रेडिएशन से न केवल किडनी रोग बल्कि और भी दूसरे रोग पैदा होते हैं। अगर केवल इस क्षेत्र से वेल्लूर अस्पताल जाकर इलाज करवा रहे मरीजों की ही संख्या सार्वजनिक कर दी जाए तो मरीजों और मौतों की सूची और लंबी हो जाएगी। वह संभवतः लम्बे समय समय से रेडिएशन के प्रभाव में रह रहे है। गाँव वालों द्वारा प्रशासन और प्लांट के अधिकारियों को की गई शिकायतों का कोई फर्क नहीं पड़ा है। बेहेरा कहते हैं, “सितम्बर, 2016 में कलेक्टर को इस संबंध में पत्र भेजने के बाद हमने प्रशासन को यह भी सूचित किया कि यदि अधिकारियों द्वारा इस पर कोई सुनवाई नहीं की गई तो हम धरना भी देंगे। कुछ दिन बाद उप-जिलाधिकारी लोगों से मिले और आश्वासन दिया कि प्रस्तावित मीटिंग के एक महीने के अंदर वह इसका हल निकलेंगे। वह मीटिंग कभी हुई नहीं।

यकीनन रेयर अर्थ की वैश्विक मांग को इंसानों के निवास और पर्यावरण की कीमत पर पूरा नहीं किया जा सकता है। बड़ापुट्टी को उसके अपने हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता है। बड़ापुट्टी हकीकत में राज्य और समाज द्वारा आवश्यक हस्तक्षेप की तरफ ध्यान दिलाने के लिए एक खतरे का संकेत होने की कीमत चुका रहा है।

लेखकों ने बड़ापुट्टी के निवासियों तथा कनाडा के वॉटरलू विश्वविद्यालय के तेजस्वी होरा का आभार व्यक्त किया है।

तस्वीर : Countercurrents 

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