संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

महिला कामगारों के संघर्ष

जहां एक तरफ स्वयं सहायता समूह के जाल में फंसी तथा कर्ज से कराहती महिलायें आत्महत्या करने को विवश हो रही हैं वहीं उत्तर प्रदेश राज्य के कानपुर तथा राजस्थान राज्य के जयपुर शहरों में घरों में काम करने वाली महिलायें अपनी एकता एवं जागरूकता के बल पर अपने आपको एक बेहतर कल के लिए तैयार कर रही हैं।

कानपुर शहर पिछले समय में अवसाद एवं निराशा से ग्रस्त लड़कियों एवं महिलाओं की आत्महत्याओं की घटनाओं के कारण चर्चा में रहा है परंतु पिछले दो सालों से मीनू सूर एवं राजेन्द्री देवी जैसी महिलाओं एवं इनकी साथियों की पहल पर गठित ‘घरेलू महिला कामगार यूनियन’ घरों में काम करने वाली महिलाओं के बीच में आशा, सम्मान की भावना तथा सरकारी तंत्र द्वारा मान्यता पाने में कामयाब हुई हैं। शोषण तथा छेड़खानी जैसी समस्याओं से भी उन्हें एक सीमा तक निजात मिला है। कामवालियों का पहचान पत्र भी यूनियन ने जारी किया है जिसे पुलिस, प्रशासन, नगरपालिका तथा बैंक भी मान्यता प्रदान कर रहे हैं। यूनियन की महामंत्री मीनू सूर ने बताया कि यूनियन की सदस्यायें हर हफ्ते एक पार्क में इकट्ठा होकर अपनी बैठक करके समस्याओं के बारे में फैसले लेती हैं। यूनियन ने घरों में काम करने वाली महिला कामगारों की मजदूरी की दर भी तय कर रखी है। इसके साथ ही यूनियन असहाय महिलाओं की बच्चियों की शादी कराने, इलाज कराने, राशन दिलाने, बच्चियों को स्कूल भिजवाने के कार्य में भी लगी है। यूनियन ने पिछले समय में हजारों की संख्या में कामगार महिलाओं की समस्याओं को लेकर श्रम आयुक्त तथा जिलाधिकारी के समक्ष जुझारू प्रदर्शन किये हैं।

इसी तर्ज पर राजस्थान के जयपुर शहर में घरेलू कामगार महिलाओं ने भी अपनी यूनियन बनाकर अपनी अगुआ मेवा भारती के नेतृत्व में अपने बदतर हालात सुधारने का बीड़ा उठाया है। मेवा भारती का कहना है कि यूनियन की बढ़ती गतिविधियों से कामगार महिलाओं में साहस बढ़ा है, शोषण के खिलाफ आवाज उठी है तथा मजदूरी की दरें सुधरी हैं। यहां की यूनियन ने अन्य महिला-पुरुष कामगारों के साथ मिलकर एक साझे मंच का प्रयास भी शुरू कर दिया है। यूनियन का मानना है कि असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कामगारों की व्यापक एकता से ही महिला कामगारों की हालात में बदलाव संभव है।

कानपुर तथा जयपुर दोनों शहरों में पुलिस की ज्यादती, अपराधी तत्वों की हरकतों, दलालों के षड्यंत्रों तथा सरकारी मशीनरी की उदासीनता और पुरुषवादी मानसिकता का सामना यूनियन को करना पड़ता है।

इसको भी देख सकते है