संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

किसान विरोधी बजट की प्रतियां 12 से 19 फरवरी के बीच जलाने की अपील

नयी दिल्ली, 7 फ़रवरी 2018। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने केन्द्रीय बजट 2018 में किसानों की समस्या हल न किए जाने के विरोध में 12 से 19 फरवरी के बीच तहसील स्तर पर उसकी प्रतियां जलाने की अपील की है।

केन्द्र सरकार ने बजट में केवल खोखली घोषणाएं करके किसानों की मांगों पर बयान दर्ज किया है। किसान स्वामीनाथन आयोग के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य देने, लागत के दाम घटाने, और सभी किसानों व कृषि मजदूरों के निजी कर्जों समेत कर्ज माफी की मांग कर रहे हैं। सरकार का दावा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जा रहा है व दिया जाएगा पर इसके लिए न तो एमएसपी बढ़ाया है न ही कोई फंड आवंटित किया है। सरकार केवल 24 फसलों की एमएसपी घोषित करती है। यह भी केन्द्रीय एग्रीकल्चरल काॅस्ट एंड प्राइसिंग कमीशन, सीएसीपी द्वारा आंकलित मूल्य सी2 के डेढ़ गुना दर से कम रहता है। कई फसलों का एमएसपी सी2 से भी कम रहता है। एनडीए के बजट असल में कह रहा है कि जो दिया जा रहा है वही डेढ़ गुना है और एक पैसा ज्यादा नहीं मिलेगा।

श्री जेटली ने घोषणा की है कि नीति आयोग की एक समिति बाजार के दाम और एमएसपी के बीच के अंतर का भुगतान करने का एक सुनिश्चित तरीका बताएगी। पर इस काम के लिए केवल 200 करोड़ आवंटित किए हैं जो एक जिले के लिए भी पर्याप्त नहीं है।

भारत के किसान गहरे कर्ज से लदे हैं जो लागत के तेजी से बढ़ते दाम, जो लागत ज्यादातर विदेशी कम्पनियां बेचती हैं के कारण है। बजट में न तो सरकारी बैंक कर्ज माफ किए न निजी कर्जदारी हल की। उसमें बीज, खाद, कीटनाशक दवा, मशीनरी, बिजली, डीजल, पेट्रोल आदि लागत के दाम घटाए गए।

बजट में किसानों को 11 लाख करोड़ रुपए तक बढ़ा कर देने की बात की जब की वर्तमान बकाया कर्ज 12.6 लाख करोड़ रूपए हैं जो मोदी शासन के पहले 3 सालों में 55 फीसदी बढ़े हैं। दूसरी ओर सरकार ने कारपोरेट करों में 3.1 लाख करोड़ रुपए की राहत दी है।

भारतीय उपमहाद्वीप में ईंधन की कीमतें, 29 जनवरी 2018 को सबसे ज्यादा भारत में थीं। पेट्रोल भारत में रु0 76.16 था, जबकि पाकिस्तान में 46.92, अफगानिस्तान में 41.27, श्रीलंका में 52.94, बंगलादेश में 68.00 और भूटान में 56.31 था। डीजल के दाम भारत में रु 66.51, जबकि पाकिस्तान में 51.74, अफगानिस्तान में 42.18, श्रीलंका में 39.29, बंगलादेश में 49.66 और भूटान में 51.95 था।

संक्षेप में कहा जाए तो बजट ने खेती के संकट व ग्रामीण बेरोजगारी को कम नहीं किया है। उसका संदेश है कि किसानों की लूट और कारपोरेट को छूट, जारी रहेगा।

किसानों का संकट नई आर्थिक नीतियों के दौरान ज्यादा बढ़ा है। खेती की सुविधाएं घटीं, सिंचाई कमजोर हुई, बाजार व भंडारण अपर्याप्त बना रहा और एग्रो प्रोसेसिंग में विदेशी कम्पनियों को बढ़ाया गया। सरकार का ई-ट्रेडिंग को बढ़ाने का प्रस्ताव और 22,000 ग्रामीण मंडियों को इसके तहत लाने से केवल कम्पनियों को फायदा होगा, किसानों को नहीं। कम्पनियां सबसे सस्ती मंडी में पहँुच जाएंगी जबकि किसान सबसे महंगी मंडी में नहीं पहँुच पाएंगे।

खेती का भारी नुकसान प्राकृतिक आपदाओं, कीट प्रकोप, नकली व मिलावटी बीज व खाद के कारण हुआ है। इस पर सरकार ने बीमा कम्पनी पक्षधर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को सुधारने का भी प्रयास नहीं किया। 2015-16 में निजी बीमा कम्पनियों ने किसानों से 22,000 करोड़ रुपए का प्रीमियम इकट्ठा किया था जबकि केवल 1200 करोड़ रुपए का मुआवजा दिया और 10,000 करोड़ का मुनाफा कमाया।

ग्रामीण बेरोजगारी पर भी बजट में वर्तमान साल के बराबर 55 हजार करोड़ रुपए आवंटित किया है। मोदी शासन के दौरान 2015-16 व 2016-17 में केवल 235 करोड़ श्रम दिन काम सृजित हुआ, जबकि योजना में भ्रष्टाचार अभूतपूर्व था, वेतन बहुत कम और देर से पेमेंट मिले। इस साल के बजट में केवल 230 करोड़ दिन काम मिलेगा।

वित्त मंत्री ने बिना किसी आधार के यह दावा कर दिया है कि भारत से कृषि निर्यात 30 बिलियन डालर से बढ़ कर 100 बिलियन डालर हो जाएगा। सच यह है कि 2013-14 में यह 21 बिलियन डालर था जो घटकर 2015-16 में 17 बिलियन डालर रह गया। दूसरी ओर फसलों का आयात जो 2013-14 में 16.5 बिलियन डालर था वह बढ़कर 2015-16 में 21.4 बिलियन डालर हो गया (1,40,000 करोड़ रुपए)।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, एआईकेएससी

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