संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

बजट में समर्थन मूल्य संबंधी घोषणाएं किसानों को गुमराह करने वाला सफेद झूठ; किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ 12 फरवरी से राष्ट्रव्यापी अभियान का ऐलान

दिल्ली 6 फरवरी 2018। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले आज प्रेस वार्ता हुई है। बजट में समर्थन मूल्य संबंधी घोषणाएं किसानों को गुमराह करने वाला सफेद झूठ बताते हुए  ऐलान किया कि किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ 12 फरवरी से 19 फरवरी के बीच राष्ट्रव्यापी अभियान के तहत 1000 स्थानों पर किसान विरोधी बजट की प्रतियां जलाई जाएंगी। पढ़िए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति प्रेसनोट;

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (ए.आई.के.एस.सी.सी.) ने 2018-19 के बजट को किसानों के साथ वित्त मंत्री द्वारा किया गया भद्दा मजाक, धोखा, छलावा करार दिया है। वित्त मंत्री की घोषणाओं को सफेद झूठ एवं महज चुनावी शुगूफा बतलाया है, जिसका पर्दाफाश गांव-गांव में किया जाएगा तथा किसानों की संपूर्ण कर्जा मुक्ति और किसानों को लागत से डेढ़ गुना दाम दिलाने तथा केंद्र सरकार किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ 12 फरवरी से 19 फरवरी के बीच राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जाएगा। देश भर में 1000 स्थानों पर किसान विरोधी बजट की प्रतियां जलाई जाएंगी।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के अनुसार कृषि संकट से किसानों को उबारने के लिए किसानों की संपूर्ण कर्जा मुक्ति को लेकर बजट में तो कोई प्रावधान किया ही नहीं गया है। यहां तक कि वित्त मंत्री ने किसानों की आत्महत्याओं को रोकने का उल्लेख तक करने की आवश्यकता नहीं समझी है। देश की आबादी के 65 प्रतिशत किसानों को केवल 2.36 प्रतिशत बजट उपलब्ध कराने तथा लागत से डेढ़ गुना दाम देने की घोषणा के साथ आवश्यक बजट उपलब्ध न कराने, दामों की स्थिरिता के लिए बाजार में हस्तक्षेप हेतु गत वर्ष आवंटित 950 करोड़ की राशि को घटाकर 200 करोड़ किये जाने, भण्डारण, किसान पेंशन, प्राकृतिक आपदा, लागत कम करने (बीज, खाद, कीटनाशक, डीजल, पेट्रोल, बिजली, कृषि उपकरण), जलवायु परिवर्तन के लिए आवश्यक राशि आवंटित नहीं किये जाने से स्पष्ट हो गया है कि किसानों के साथ अन्याय, उपेक्षा और भेदभाव जारी है। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री द्वारा किसानों की आमदनी दुगुनी करने का वायदा मात्र जुमला बनकर रह गया है। फसल बीमा के लिए आवंटित राशि, बीमा कंपनियों को लाभ देने के लिए ही आवंटित की गई है, किसानों के लिए नहीं।
एनडीए ने 2014 के चुनाव में लागत से डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने की घोषणा की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सरकार बाकायदा शपथपत्र देकर फरवरी 2015 में पलट गयी। कृषि मंत्री ने इस आशय का बयान जुलाई 2017 में संसद में भी दिया। गत 4 वर्षों में न्यूनतम समर्थन मूल्य में की जाने वाली औसत बढ़ोतरी से भी कम बढ़ोतरी की गई। राज्य सरकार द्वारा लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) को की गई लागत की कीमत संबंधी अनुशंसाओं में 30 से 50 प्रतिशत तक कटौती की गई।

मंदसौर में 6 जून, 2017 को पुलिस गोलीचालन के बाद अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का गठन किया गया। समिति में शामिल 191 किसान संगठनों द्वारा देश के 19 राज्यों में दस हजार किलोमीटर की किसान मुक्ति यात्रा किये जाने के बाद 20-21 नवंबर को नई दिल्ली में आयोजित लाखों किसानों की किसान मुक्ति संसद तथा किसान मुक्ति सम्मेलनों से पैदा हुए माहौल, किसानों की जागरूकता, देशभर में स्वतः स्फूर्त किसान आंदोलनों ने सरकार को समर्थन मूल्य के बारे में मुंह खोलने के लिए मजबूर किया। परंतु सरकार की कलई तब खुल गई जब वित्त मंत्री द्वारा कहा गया कि उसने रबी में ही अपने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) वायदे को पूरा कर दिया है जबकि वस्तुस्थिति यह है कि सरकार द्वारा लागत की परिभाषा ही बदल दी गई है। सरकार ने रबी में सी-2 के आधार पर लागत का आंकलन करने की बजाय ए-2 + एफएल पर आंकलन किया है। यह किसानों के साथ क्रूर मजाक है जिससे यह स्पष्ट होता है कि खरीफ में भी किसानों को स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों के मुताबिक लागत से डेढ़ गुना समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा।

सरकार एक बार फिर किसानों को बेवकूफ बनाना चाहती है। किसान संगठनों का संघर्ष डा स्वामीनाथन द्वारा की गई सिफारिश के मुताबिक किसानों को समग्र लागत की कीमत सी-2 + 50% दिलाना है जिसका वायदा प्रधानमंत्री ने सैकड़ों सभाओं में किया था।

ऐसे समय में जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य भी किसानों को नहीं मिल रहा है तथा अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आंकलन के मुताबिक केवल खरीफ (2017) में न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा बाजार मूल्य के बीच 32,700 करोड़ रुपए का अंतर पाया गया है, जिसे हम किसानों की लूट मानते हैं। बाजार के दाम और समर्थन मूल्य के अंतर को पाटने के लिए बाजार में हस्तक्षेप हेतु हजारों करोड़ के बजट की आवश्यकता थी लेकिन सरकार द्वारा यह राशि 950 करोड़ रुपए से घटाकर 200 करोड़ रुपए कर दी गयी है। सरकार ने बजट में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की राशि 4500 करोड़ रुपए से घटाकर 3600 करोड़ रुपए कर दी है। मनरेगा के लिए 80 हजारा करोड़ की आवश्यकता थी लेकिन केवल 54 हजार करोड़ रुपया ही आवंटित किया गया है। आपदा राहत फंड में भी कटौती की गई है।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने रमेश चंद्र कमेटी की सिफारिशों के आधार पर लागत की कीमत की गणना किये जाने की सरकार से मांग की है।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का मानना है कि किसानों के संपूर्ण कर्जा मुक्ति के लिए बजट आवंटन करने की बजाय सरकार ने उद्योगों के नॉन परफोर्मिंग एसेट को खत्म करने का बजट में वायदा किया है। गत 4 वर्षों में भी सरकार करोड़ों रुपए की छूट गिने-चुने औद्योगिक घरानों को देती रही है।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने 12 फरवरी से 19 फरवरी के बीच देश भर में जनपद एवं तहसील स्तर तक उक्त मुद्दों को लेकर समिति में शामिल सभी संगठनों के द्वारा धरना-प्रदर्शन-सम्मेलन-प्रेसवार्ता-आमसभाएं आयोजित करने का ऐलान किया।

देशभर में किसान मुक्ति सम्मेलनों के पूरा हो जाने पर बजट सत्र के दौरान संपूर्ण कर्जा मुक्ति बिल एवं किसान (कृषि उपज लाभकारी मूल्य गारंटी) अधिकार बिल संसद में किसानों की ओर से पेश किया जाएगा तथा इन दोनों मुद्दों को लेकर संसद में लोकसभा अध्यक्ष को याचिका भी सौंपी जाएगी।प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वी एम सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में एक हलफनामा देकर किसानों की फसल का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने से इनकार किया। वहीं देशभर से लाखों किसान नवम्बर में दिल्ली पहुंचे तो सरकार ने मजबूर होकर बजट में लागत का डेढ़ गुणा समर्थन मूल्य देने की घोषणा की। परन्तु सरकार द्वारा ये केवल दुःखी अन्नदाता के साथ धोखा है, जहां फसल की लागत का रेट हर दिन बढ़ रहा है वहीं सरकार ने फर्जी आंकड़े दर्शाते हुए लागत आया रेट कम बताया जिसके कारण घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ही लागत से डेढ़ गुना दिखाई पड़ती है ओर ये भी झूठ कहा कि ये स्वामीनाथन के बराबर है, क्योंकि सरकार को किसानों का पैसा देना ही नहीं है इसलिए सरकार ने फसल का डेढ़ गुना दाम देने के लिए बजट में कोई आवंटन ही नहीं किया गया।

अखिल भारतीय किसान सभा के महामंत्री, पूर्व सांसद हन्नान मौल्ला ने कहा कि मोदी सरकार की किसान विरोधी नीतियों की परिणिति बजट में स्पष्ट दिखलाई पड़ती है जिससे पता चलता है कि सरकार ने किसानों के साथ धोखा किया है। किसानों को सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में गंभीर संकट में डालने जा रही है। कृषि वृद्धि दर मोदी सरकार के तमाम लम्बी-चौड़ी घोषणाओं के बावजूद गत दशकों में सबसे कम रह गयी है। इस किसान विरोधी बजट के चलते सरकार का जाना होना तय हो गया है।

स्वाभिमानी शेतकारी के अध्यक्ष एवं सांसद राजे शेट्टी ने कहा कि जो सरकार किसानों के लिए बहरी बनी हुई थी, उसे हम सुनाने में कामयाब हुए। यह सरकार किसानों के लिए गूंगी बनी हुई थी, हम उसका मुंह खुलवाने में कामयाब हुए। मोदीजी ने चुनाव के मद्देनजर घोषणाएं ही की हैं जिन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। क्योंकि 2014 की घोषणाएं ही अब तक पूरी नहीं की गई हैं। बजट किसानों को अपने पैर पर खड़े होने में मदद करने की बजाय उन्हें पंगु बनाने का काम कर रही है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन-जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की नेत्री मेधा पाटकर ने कहा कि बजट से कृषि संकट-किसानों की आत्महत्याओं में कमी आने की कोई संभावना नहीं है। आर्थिक विकास के जुनून में सरकार ने बजट बनाते समय समाज के किसानों, मजदूरो, आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं, युवाओं सहित सभी की अनदेखी की है ,बजट के बाद महंगाई, गैरबराबरी, बेरोजगारी बढ़ना तय है। सरकार ने किसानों के ऋण मुक्ति की मांग को एक सिरे से खारिज कर दिया।

जय किसान आंदोलन के नेता योगेन्द्र यादव ने कहा कि इस बजट से यह स्पष्ट हो गया है कि यह सरकार ना तो किसानों का दुख-दर्द समझती है और ना ही समझना चाहती है। उसे लगता है कि किसानों की आंख में धूल झोंक कर उन्हें हिन्दू-मुस्लिम में बांट कर वोट पाये जा सकते हैं। किसान आंदोलन अपने संघर्ष से सरकार की इस गलतफहमी को दूर करेगा।उन्होने कहा कि बजट घोषणा के साथ 33,000 करोड़ रुपये आवंटित किए जाते तब किसानों को डेढ़ गुना मूल्य दिया जा सकता था।

किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष, पूर्व विधायक डॉ सुनीलम ने देश भर में किसानों के बढ़ते आंदोलनों और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति द्वारा तैयार की जा रही एकजुटता से घबरा कर किसानों संबंधी घोषणा मजबूरी में की है। लेकिन जब देश में प्रचलित समर्थन मूल्य ही नहीं दिया जा रहा तब सरकार द्वारा घोषित किए जाने वाले समर्थन मूल्य पर सभी कृषि उत्पादों की खरीद होना संभव नहीं दिखलाई पड़ता। सरकार यदि घोषणा करती कि लागत (स्वामीनाथन कमेटी की अनुशंसा के मुताबिक) से डेढ़ गुना दाम पर संपूर्ण उत्पादन की खरीद सुनिश्चित की जाएगी एवं कम दाम पर खरीद करने वाले व्यापारियों पर जुर्माना लगाकर जेल भेजा जाएगा, तब यह सोचा जा सकता था कि सरकार किसानों के लिए कुछ करना चाहती है। लेकिन सरकार ने किसानों के नाम पर चुनावी स्टंट किया है, जिसे धोखाधड़ी के अलावा कुछ और नहीं कहा जा सकता है।

ए आई के एम एस के महामंत्री डॉ आशीष मित्तल ने कहा कि वित्त मंत्री घोषणा कर रहे है कि कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ेगा लेकिन तथ्य यह है कि2013 -2014 आयात 16 .5 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2015 – 2016 में 21.4 बिलियन डॉलर हो गया है।

और निर्यात 1.37 लाख करोड से घटकर 1.06 लाख करोड़ हो गया है।उन्होंने पेट्रोल ,डीजल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें बताते हुए किसानी की लागत घटाने की मांग की।

भारतीय किसान यूनियन ( अम्बावत) के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अम्बावत ने कहा कि मोदी सरकार ने किसानों को धोखा दिया है जिसकी कीमत उनको अगले विधान सभा चुनाव में चुकानी पड़ेगी ,जैसा राजस्थान में हुआ वैसा ही पूरे देश में होगा।

वी एम सिंह
संयोजक, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति
अविक साहा, सचिवालय प्रभारी

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