संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

हमारी लड़ाई समता, समानता, स्वराज और स्वावलंबन की है : NAPM का 12वां राष्ट्रीय सम्मेलन

हमारी लड़ाई समता, समानता, स्वराज और स्वावलंबन की है- मेधा पाटकर
ये वक्त की आवाज है मिलके चलोः जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय का 12वां राष्ट्रीय सम्मेलन शुरु

23 नवंबर, 2019 पुरी। जनसंघर्षों का राष्ट्रीय समन्वय ओडिशा के पुरी जिले में अपना 12वां राष्ट्रीय सम्मेलन 23-25 नवंबर 2019 को आयोजित कर रहा है। सम्मेलन में देश के कोने कोने से लगभग 1000 संघर्षों के साथी, प्रगतिशील विचारक तथा नागरिक समाज के सदस्य भागीदारी कर रहे हैं। आज 23 नवंबर 2019 को सम्मेलन की शुरुआत क्रांतिकारी गीतों तथा नारों के साथ हुई। सत्र की शुरुआत में जनसंघर्षों का राष्ट्रीय समन्वय द्वारा जनांदोलनों पर तैयार अंग्रेजी पत्रिका “मूवमेंट्स इन इंडिया”, हिंदी पत्रिका “आंदोलन” तथा नर्मदा आंदोलन पर जारी कैलेंडर का विमोचन किया गया।

सम्मेलन के उदघाटन सत्र “ये वक्त की आवाज़ है मिल के चलो”, में पहले वक्ता के रूप में बोलते हुए लोक शक्ति संगठन तथा जनसंघर्षों का राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय संयोजक प्रफुल्ल सामंत्रा ने मंच पर बैठे अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि आज धर्म के नाम पर देश का विभाजन करने के लिए जो नागरिकों पर हमला किया जा रहा है यह सम्मेलन उसके खिलाफ है। उन्होंने कहा कि एनएपीएम का 12वां राष्ट्रीय सम्मेलन संघर्ष के 25 वर्षों की कहानी सुनाता है। नई आर्थिक नीतियों की वजह से जो आज भयावह स्थिति बन चुकी है समन्वय उसके खिलाफ सदा संघर्ष करता रहेगा। आज के सम्मेलन का उद्देश्य संघर्ष की भावी रणनीति तय करेगा। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि एनएपीएम सिर्फ जल जंगल ज़मीन के लिए नहीं लड़ता बल्कि संविधान और देश की रक्षा की लड़ाई लड़ता है और हम इसे हमेशा लड़ते रहेंगे।

उदघाटन सत्र के अगले वक्ता सफाई कर्मचारी आंदोलन के अगुवाकार बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि आज देश की परिस्थितियां आसान नहीं हैं फिर भी ऐसे कठिन समयों पर हम जो देश के कोने-कोने से संघर्ष के साथी जो यहां पहुंचे हैं वह बहुत महत्वपूर्ण है। हम हुक्मरानों को यह बता देना चाहते हैं कि ज़ुल्म चाहे कितना बढ़ जाए हम संघर्ष करना नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने कहा इस देश में एक बच्ची भात-भात कहते हुए मर जाती है, यही इस देश की सच्चाई है। हमारे देश के प्रधान नरेंद्र मोदी कहते हैं कि देश की गरीबी का कारण आबादी है लेकिन यह देश आबादी नहीं अंबानी के हित में बनी नीतियों की वजह से गरीब है। हम बेरोज़गारी से जूझ रहे हैं लेकिन वह यह नहीं बताते हैं कि बेरोज़गारी इसलिए है क्योंकि तमाम पदों पर नियुक्तियां बंद हैं। बेरोज़गारी इसलिए है क्योंकि तमाम छोटी कंपनियों को बड़े पूँजीपतियों के हित के लिए बंद किया जा रहा है। लेकिन हम इसके आगे हार नहीं मानने वाले हैं। हम यह बता देना चाहते हैं कि यह देश, इस देश की संपदा, इसका संसद सबकुछ हमारा है। इस देश के नागरिक उनके साथ नहीं बल्कि हमारे साथ हैं।

उद्घाटन सत्र में बोलते हुए सिटिजन फॉर जस्टिस एंड पीस तथा प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा कि 25 नवंबर 2019 को हमारे संविधान के 70 साल हो जाएंगे। बाबा साहब ने 70 साल पहले ही कहा था कि हम राजनीतिक आज़ादी तो प्राप्त कर ले रहे हैं लेकिन सामाजिक तथा आर्थिक आज़ादी से वंचित रहेंगे। यह एक बड़ा सवाल है जो आंदोलनों के बीच उठना चाहिए। उन्होने कहा कि हमारे गृह मंत्री कहते हैं कि मानवाधिकार, समता और समानता की लड़ाई कहानी है लेकिन हम कहना चाहते हैं कि समता और समानता की लड़ाई इस देश की परंपरा रही है। समान शिक्षा के लिए संघर्ष करने वाले ज्योतिबा फूले तथा सावित्री बाई फुले का साथ दिया था फ़ातिमा शेख तथा उस्मान शेख ने। लेकिन बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि उस्मान शेख और फ़ातिमा शेख का नाम हमारी स्कूल की किताबों में नहीं मिलता है। उन्होने कहा कि आज देश के संवैधानिक पदों पर ऐसे लोग बैठे हैं जो संविधान को नहीं मानते हैं। वह एनआरसी जैसे विभाजनकारी कानून ला रहे हैं जो देश के अल्पसंख्यकों को, जो आंदोलनों का अहम हिस्सा है, नागरिक के दर्जे से वंचित कर रहा है। यदि हमारी नागरिकता छिन जाए तो फिर और किसी भी संघर्ष का कोई आधार नहीं रह जाता। हमें अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही शब्दों की राजनीति के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी।

मजदूर किसान शक्ति संगठन से अरुणा राय ने कहा कि नमर्दा के आंदोलन ने पूरी दुनिया को एक संघर्ष का रास्ता दिखाया है। हम भले ही जीत न सके लेकिन हमने लड़ाई का रास्ता दिखा दिया। सरकारें अब जान चुकी हैं कि हम वोट देकर चुप नहीं रहेंगे। वोट देंगे तो हम प्रश्न पूछेंगे। हम सवाल पूछेंगे क्योंकि सवाल खड़ा करना हमारा बुनियादी अधिकार है। इसीलिए ये लोग ऐसे कानून ला रहे हैं जो हमसे हमारा बोलने का अधिकार भी छीन रहे हैं। वो हमारे कितने साथियों को सवाल पूछने की वजह से जेल में डाल रहे हैं। एनएपीएम ने संविधान बचाओ का मुहिम शुरु किया था हम उसके साथ हैं। आज वह हमसे हमारे संसाधन छीन रहे हैं। कोई कोना ऐसा नहीं छूटा है जहां ज़मीन छीनी नहीं जा रही है। वह छोटे छोटे गाँवों को नगरपालिका में बदल रहे हैं जिससे कि उन्हें नरेगा का अधिकार नहीं देना पड़ेगा। यह सरकार हमारी नहीं है कॉर्पोरेटों की सरकार है। इसीलिए जरूरी है कि हम अपने वोट के लिए सवाल पूछें। आज लगभग 1,000 लोगों की जांच चल रही है। जो भी जनता के अधिकार की बात कर रहा है उसके खिलाफ जांच चल रही है। वह हमसे विरोध करने का अधिकार भी छीन ले रहे हैं। देशद्रोही हम नहीं वह देशद्रोही हैं। हमें तो गांधी भी चाहिए, बाबा साहब भी चाहिए, एम.एन.रॉय भी चाहिए और भगत सिंह भी चाहिए।

जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय से मेधा पाटकर ने सम्मेलन में आए सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि मौजूदा सरकार देश की अंखड़ता और एकता को नष्ट कर रहा है। अगर हम इसके खिलाफ नहीं लड़े तो हम नष्ट हो जाएंगे। हमें जाति और धर्म के नाम पर चल रही राजनीति का मुकाबला करना है। आज लड़ाई समता समानता स्वराज और स्वावलंबन की है। हम लोग जब समता और न्याय की बात करते हैं तो एक तरफ हम चुनौती दे रहें हैं तो एक तरफ चुनौती ले भी रहे हैं। हमारे बीच से हिंसा की राजनीति को पूरी तरफ से खत्म करना होगा। हमारे साथी 26 राज्यों से संविधान यात्रा के लिए निकलने और प्रण लिया कि हम संविधान को बचाएंगे और समानता का राज बनाएंगे। इस धर्म और नफरत की राजनीति के खिलाफ एक समानता आधारित वैकल्पिक राजनीति को खड़ा करना भी हमारा कर्तव्य है। समता और समानता की उम्मीद हम उनसे नहीं कर सकते क्योंकि वह मनुवादी राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं। हमें उनके खिलाफ अपने आंदोलनों को मजबूत करना होगा। उन्होंने कहा कि मैं आप सबका आह्वान करती हूं कि आप समन्वय के साथ जुड़े और समता और समानता की इस लड़ाई को और आगे बढ़ाएं।

उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष तथा विख्यात अर्थशास्त्री मनोरंजन मोहंती ने कहा कि सभी वक्ताओं की बातों में हमें चार चीजें याद रखनी हैं- समानता, सम आर्थिक नीति, स्वराज और स्वावलंबन। इन चारों चीजों को याद रखते हुए हम नव निर्माण का संकल्प लेते हैं। सम आर्थिक नीति की मांग की लड़ाई ही नियामगिरी संघर्ष समिति तथा पॉस्को संघर्श समिति के साथी लड़ रहे हैं। मौजूदा सरकार और पूर्ववर्ती सरकारें भी इन्हीं चीजों पर हमला कर रही हैं। उन्होंने कहा कि पुरी की जिस जमीन पर हम बैठे हैं वहां भी जमाने से ब्राह्मणवाद के खिलाफ लड़ाई चल रही है। सरकारें बातें चाहें समानता की करें लेकिन नीतियां असमानता की ही बनाती हैं। इसका उदाहरण है एऩआरसी की नीति। हम इन सबके खिलाफ मजबूत संघर्ष खड़े करने होंगे।सत्र का संचालन राजीव रंजन ने किया।

उद्घाटन सत्र के दूसरे भागः प्रतिरोध की गाथाएं और प्रतिरोध के प्रतीक में नियामगिरी सुरक्षा समिति से कुणी सिकाका, ददी पुसीका, दसरू कटारा, पोस्को संघर्ष समिति से मनोरमा, मेलरेट कुडनकुलम से लक्ष्मीबेन उना ने अपनी बात रखी। इस सत्र का संचालन कविता श्रीवास्तव ने किया।

सम्मेलन के दौरान कश्मीर तथा उत्तर पूर्व की स्थितियों पर हुए विशेष सत्र में कश्मीर और उत्तर पूर्व की स्थिति पर चर्चा करते हुए वहां की जनता के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए उनके संघर्षों में भागीदारी का संकल्प लिया गया। इस विशेष सत्र में कश्मीर से आए साथी डॉ शेख गुलाम रसूल, अर्शी कुरैशी. प्रोफेसर अपूरब बरुआ और नेइंग्लो क्लोम ने अपनी बात की। सत्र का संचालन एम.जे.विजयन ने किया।

इसको भी देख सकते है