संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

नर्मदा बचाओं आंदोलन को बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का समर्थन, 16 सितम्बर को पहुँचेंगे राजघाट, बडवानी



मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के राजघाट पर पिछली 30 जुलाई  से अनिश्चितकालीन नर्मदा जल जंगल जमीन हक सत्याग्रह जारी है । नर्मदा बचाओं आंदोलन के 31 वर्ष के संघर्ष तथा अनिश्चितकालीन सत्याग्रह को समर्थन देने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 16 सितम्बर 2016 को राजघाट, बडवानी पहुँचेंगे। अब  यह देखना दिलचस्प होगा की नीतीश कुमार केवल नर्मदा बचाओं आंदोलन के संघर्ष को समर्थन देने का काम करते हैं या विस्थापित होने वाले 45 हजार परिवारों के संपूर्ण पुर्नवास को लेकर चलने वाले इस आंदोलन को किसी परिणीति तक पहुंचाने में कोई कारगर भूमिका लेने की भी घोषणा करते हैं। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह देखना होगा कि वैकल्पिक विकास की बहस को वे देश में किस तरह आगे बढ़ाने का  जन आंदोलनों को भरोसा दिलाते हैं।

नर्मदा बचाओं आंदोलन के 31 वर्ष के संघर्ष तथा अनिश्चितकालीन सत्याग्रह को समर्थन देने बिहार के मुख्यमंत्री एवं जनतादल(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार 16 सितंबर 2016 को बडवानी पहुंच रहें हैं। घाटी में मंत्रियों का पहुंचना नई बात नहीं है, लेकिन अब तक जो भी आए वे सरकार की ओर से आए या घाटी के विस्थापितों की समस्याओं को सुनने-समझने आए। पहली बार किसी दूसरे राज्य का मुख्यमंत्री और पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष जन आंदोलन को समर्थन देने पहुंच रहा हैं।

जहां तक जनतादल(यू) के समर्थन की बात है जब शरद यादव पार्टी अध्यक्ष थे तब भी नर्मदा बचाओं आंदोलन का समर्थन पार्टी ने किया था। के.सी त्यागी जी सहित पार्टी के कई संसद सदस्य नर्मदा बचाओं के दिल्ली में होने वाले आंदोलनों में भागीदारी करते रहे हैं।

आमतौर पर राजनैतिक दलों का आंदोलनों के प्रति रवैया नकारात्मक रहता है, वे जन आंदोलनों तथा संस्थाओं में कोई अधिक अंतर नहीं मानते, बोले चाहे कुछ भी पार्टी नेताओं के मन में आंदोलनकारियों के प्रति एक ही भाव रहता है कि वे विकास विरोधी हैं तथा विकास की योजनाओं में कहीं से पैंसा लेकर अडंगा डालना चाहते हैं। भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो आंदोलनकारियों पर विदेशी एजेंट होने तथा देशद्रोही होने का आरोप लगा चुके हैं।

नीतीश कुमार एक ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने ना केवल एस.ई.जेड का विरोध किया बल्कि मुख्यमंत्री रहते एनडीए सरकार द्वारा तैयार किए गए भू अधिग्रहण कानून को बिहार में लागू न करने की घोषणा के साथ-साथ उसका विरोध किया। हाल ही में नीतीश कुमार जब रघुवंश जी की किताब ‘हम भीड़ हैं’ का लोकार्पण करने दिल्ली आए तब उन्होंने मेधा जी के संघर्ष का उदाहरण देते हुए देश के बुद्धिजीवियों से एकजुट होकर संघर्ष करने की अपील की।

समाजवादी होने के नाते मेधा जी से नीतीश कुमार जी का संबंध पुराना है परन्तु जब 17 मई 2016 को समाजवादी आंदोलन के 82 वर्ष पूरा होने के अवसर पर पटना में समाजवादी एकजुटता सम्मेलन आयोजित किया गया तब नीतीश जी ने आमतौर पर समाजवादियों से और खासतौर पर मेधा जी से नशा मुक्त भारत एवं संघ मुक्त भारत निर्माण के लिए सहयोग मांगा। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि मैं समाजवादियों की एकजुटता कायम करने में अब तक सफल नहीं हो पाया हूं। अब यह प्रयास हिन्द मजदूर सभा, राष्ट्र सेवा दल और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डा. जी.जी. पारिख को लेकर आपको करना चाहिए। दोनों को लोकतांत्रिक समाजवाद की वैचारिक कडी जोड़ती है।

16 सितंबर को यह देखना दिलचस्प होगा की नीतीश कुमार जी केवल नर्मदा बचाओं आंदोलन के संघर्ष को समर्थन देने का काम करते हैं या विस्थापित होने वाले 45 हजार परिवारों के संपूर्ण पुर्नवास को लेकर चलने वाले इस आंदोलन को किसी परिणीति तक पहुंचाने में कोई कारगर भूमिका लेने की घोषणा करते हैं।

इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह देखना होगा कि वैकल्पिक विकास की बहस को वे देश में किस तरह आगे बढ़ाने का कार्य करते हैं। किसी दल की सरकार न हो तो उसके नेता भाषण देकर छुट्टी पा सकते हैं लेकिन पार्टी की सरकार जब किसी प्रदेश में है तो उससे अपेक्षा की जाती है कि वह अपने विचार को अपने प्रदेश में भी लागू करने का काम भी करेंगे। महत्वपूर्ण केवल वर्तमान विकास के ढांचे का विरोध करना नहीं है बल्कि वैकल्पिक विकास की नीतियां तैयार कर उन्हें लागू करना है। नई राजनीति नया विचार के साथ ही विकास की नई वैकल्पिक नीतियां बनाई जा सकती हैं।

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