संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना : मोदी का मुनाफाखोर बीमा कंपनियों को किसानों को जबरन लूटने का तोहफा

मोदी ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना  को पिछले 70 साल के इतिहास में सबसे बड़ा किसान हितैषी कदम बताते हुए धूमधाम से शुरुआत की है। इसमें कान को सीधे नहीं हाथ घुमाकर पकड़ा गया है। भारत सरकार ने अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए एक ऐसी व्यवस्था बनाई है, जो देश भर के कर्ज के बोझ में दबे कर्जदार किसानों से जबरन रकम इकट्ठा कर आपदाग्रस्त किसानों  के नुकसान की भरपाई  करेगी और इस व्यवस्था में किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी का लाभ किसानों को नहीं बल्कि बीमा कम्पनियों को ही मिलेगा। भारतीय किसान यूनियन से धर्मेंद्र मालिक की रिपोर्ट;

भारत सरकार द्वारा बडे जोर-शोर से नई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को पिछले 70 साल के इतिहास में सबसे बडा किसान हितैषी कदम बताते हुए लागू किया गया। प्रधानमंत्री जी द्वारा यह भी कहा गया है कि किसान को मामूली प्रीमियम देना पडेगा 1, 2, 5 प्रतिशत! योजना को कुछ इस तरह से बयां किया गया कि जैसे हमेशा के लिए प्रीमियम दर यही रखी जायेगी। पूर्व सरकारों का अनुभव है अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा 1999 और बाद में मनमोहन सरकार की तीन तरह की फसल बीमा योजना को कभी किसानों ने स्वीकार नहीं किया और न ही यह योजनाएं आपदा के समय किसान के साथ खडी दिखाई दी। नुकसान की भरपाई के समय कडे नियम कानून के चलते हमेशा बीमा कम्पनियों को ही लाभ मिला। सरकार विश्व बैंक की इस योजना को लागू करने को बेचैन थी, इसलिए शुरूआत में प्रीमियम को नीचे रखा गया है ताकि किसान कांटे की इस मछली को गले से नीचे उतारना शुरू कर दे। कोई भी बीमा योजना प्रीमियम कम करने से तब तक अच्छी नहीं हो सकती जब तक बीमित वस्तु के नुकसान का शत प्रतिशत भुगतान सुनिश्चित ना हो।

भारत सरकार द्वारा लागू प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का तिलिस्म भी योजना के धरातल पर आते ही टूट गया और देश के विभिन्न हिस्सों में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के विरोध में किसानों का गुस्सा फूटने लगा। पंजाब सरकार ने इस फसल बीमा योजना को सिरे से नकारते हुए लागू करने से मना कर दिया। उत्तर प्रदेश, हरियाणा के किसान फसल बीमा योजना के विरोध में जिलाधिकारी कार्यालयों पर प्रदर्शन, बैंकों पर तालाबंदी एवं अपने-अपने तरीके से किसान अपना विरोध लगातार दर्ज करा रहे हैं। किसानों की दुर्दशा का कारण यह भी है कि किसानों के नाम पर देश की सरकारों द्वारा समय-समय पर जो योजना बनाई गयी उससे किसानों को लाभ की बजाय नुकसान देखने को मिला। इसका मुख्य कारण यह रहा है कि किसान की किस्मत का फैसला एयरकंडिशनर कमरों में बैठकर लिये जाते समय किसान समुदाय या उसके प्रतिनिधियों की राय को शमिल नहीं किया जाता।

आज किसान भी इतना समझदार हो गया है कि वह योजना के बारे में अपना भला-बुरा समझने लगा है। आज देश में किसानों की बढती आत्महत्याएं और खेती किसानी का संकट मूलतः किसान विरोधी नीतियों का परिणाम है। देश में किसानों की स्थिति अत्यंत कठिन व किसान पूर्णतः कर्ज के चक्रव्यूह में फंस चुका है। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार देश के 96 प्रतिशत किसान गरीबी की जिंदगी जी रहे हैं। आज किसान मौत की सेज पर लेटा है। ऐसी स्थिति में प्राकृतिक आपदा के समय किसान की फसलों के नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी सरकार की है।

भारत सरकार ने अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए एक ऐसी व्यवस्था बनाई है, देश भर के कर्ज के बोझ में दबे कर्जदार किसानों से जबरन रकम इकट्ठा कर आपदाग्रस्त किसानों को नुकसान की भरपाई की जायेगी और इस व्यवस्था में किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी का लाभ किसानों को नहीं बल्कि कम्पनियों को ही मिलेगा। नई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में थोडे-बहुत बदलाव कर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की है, लेकिन इस योजना में बदलाव के नाम पर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हुई है। लम्बे समय से देश के किसान व किसान संगठन फसल बीमा योजना में किसान को इकाई मानने की मांग करते आये हैं, लेकिन प्रधाानमंत्री फसल बीमा योजना में भी किसानों की इस मांग को दरकिनार करते हुए ग्राम पंचायत को ही इकाई माना गया है जो किसानों के साथ छलावा है। इस फसल बीमा योजना का चरित्र ऐसी लाॅटरी या जुगाड का है जिसमें भाग्य की जगह हानि होने पर क्षतिपूर्ति दी जाती है। नुकसान होने पर साबित न करने और न नुकसान न होने की स्थिति में सारा लाभ कम्पनियों को ही मिलता है। अमीर लोग यह जुगाड लगा सकते हैं, लेकिन कर्ज के बोझ तले किसानों के साथ जबरदस्ती क्यों की जा रही है? यह भी एक फसल बीमा योजना पर सवालिया निशान लगाता है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना प्रीमियम देते समय ऐसी प्रतीत होती है जैसे भारतीय जीवन बीमा निगम या अन्य कम्पनियों द्वारा किया जाने वाला स्वास्थ्य बीमा, लेकिन जब किसान की क्षतिपूर्ति की बात आती है तो प्राकृतिक, आपदाओं, सूखा, बाढ़, बारिश, कीट बीमारी आदि प्राकृतिक कारणों से ग्राम पंचायत की 75 प्रतिशत फसलों के नुकसान होने की स्थिति में भरपाई की जायेगी। जहां प्राकृतिक आपदाओं को संकट नहीं है, वहां किसानों को कुछ मिलने वाला नहीं है, बल्कि वहां के किसानों की बताकर जेब काटी जा रही है।

पिछले वर्षो के अध्ययन से स्पष्ट है कि आज तक कम्पनियों में जितने किसान की नुकसान की भरपाई की है उससे कहीं ज्यादा प्रीमियम के तौर पर रकम जुटाई गयी है। बीमे का अर्थ यही है कि बडे समूह से रकम जुटाकर छोटे समूह के नुकसान की भरपाई कर मुनाफा कमाना।

राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना के अनुसार खरीफ 2007 से खरीफ 2014 तक 8 साल में किसानों ने 8083.45 करोड रुपयें प्रीमियम और सरकारी सब्सिडी 1132.68 करोड रूपया मिलाकर 9216.13 करोड रुपये के सापेक्ष 27.62 प्रतिशत बीमित किसानों को 27146.78 करोड रुपये के नुकसान की भरपाई की गयी जिसमें कम्पनियों ने केवल 7232.26 करोड दिये। बाकी रकम 19914.52 करोड रुपये की नुकसान की भरपाई सरकार द्वारा की गयी।

मौसम आधारित फसल बीमा योजना के अनुसार खरीफ 2007 से खरीफ 2014 तक किसानों में 5950.344 करोड रुपयें की प्रीमियम लिया और सरकार ने 3948.405 करोड रुपये दिये। दोनों को मिलाकर 9898.749 करोड रुपये की प्रीमियम कम्पनियों द्वारा इकट्ठा किया गया। इसके सापेक्ष कम्पनियों द्वारा बीमित किसानों में से 55.67 प्रतिशत किसानों को 4078.835 करोड रुपये के नुकसान की क्षतिपूर्ति की गयी।

संशोधित राष्ट्रीय किसान बीमा योजना के अनुसार रबी 2010 से खरीफ 2014 तक किसानों से 2363.40 करोड रुपये का प्रीमियम वसूला गया और सरकार द्वारा 1444.01 करोड रुपया मिलाकर 3807.41 करोड रुपये का प्रीमियम वसूला गया, जिसके सापेक्ष बीमित किसानों में से 17.11 प्रतिशत किसानों को 1719.49 करोड रुपये नुकसान की क्षतिपूर्ति हेतु दिये गये।

उपरोक्त तीनों उदाहरणों से स्पष्ट है कि जहां नुकसान भरपाई की जिम्मेदारी केवल कम्पनियों की है वहां नुकसान की क्षतिपूर्ति देशभर के किसानों से प्राप्त प्रीमियम से कम की गयी है। जहां जिम्मेदारी कम्पनियों और सरकार की है वहां नुकसान भरपाई में कम्पनी का हिस्सा किसान की प्रीमियम से कम ही है। सरकार की प्रीमियम द्वारा किसानों के लिए दी गयी सब्सिडी का सारा लाभ कम्पनियों को ही मिला है। उदाहरण के तौर पर दैनिक भास्कर ने दिनांक 09.02.2016 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि मध्यप्रदेश के सहडोल सम्भाग में 3.58 लाख किसान है। वर्ष 2014-15 व 2015-16 में 44654 किसानों ने बीमा कराया, लेकिन अतिवर्षा से क्षतिग्रस्त सम्भाग के मात्र 4469 अर्थात कुल बीमाकृत किसानों के मात्र 10 प्रतिशत किसानों को बीमा राशि मिल सकी जबकि अतिवर्षा से पूरे सम्भाग की फसलों को नुकसान हुआ था। दूसरी मिसाल राजस्थान की है जिसमें कहा गया कि पहली योजनाओं के मुकाबले प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में महत्वपूर्ण बदलाव उत्पादन निर्धारण के लिए की जाने वाली क्राॅप कटिंग के सम्बन्ध में किया गया है। संशोधित फसल बीमा योजना में केवल राजस्व विभाग क्राॅप कटिंग करता था वहीं अब प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में राजस्व विभाग के साथ बीमा कम्पनी भी क्राॅप कटिंग करेगी। उत्पादन निर्धारण के लिए ड्रोन से तस्वीरें व आंकडे लिये जायेगें। यह प्रावधान भी कम्पनी हित में ही है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में गारन्टीड उपज बहुत कम है इसलिए फसल खराब होने के स्थिति में किसान को लाभ मिलना बहुत मुश्किल है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के दस्तावेजों का अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि किन-किन क्षेत्रों में और किन-किन फसलों को सरकार बीमा के लिए तय करेगी उसी के अनुसार फसलों का बीमा होगा। इससे स्पष्ट होता है कि फसल बीमा योजना पूरी तरह से प्रशासनिक तंत्र व बीमा कम्पनियों की गठजोड की मनमानी पर चलेगा और किसान ठगा का ठगा रह जायेगा। सम्बन्धित किसानों और किसान प्रतिनिधियों की इसमें कोई भागीदारी नहीं है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में भी किसान वर्ग को ही नुकसान होगा यह एक उदाहरण से स्पष्ट है। उत्तर प्रदेश के जनपद मुरादाबाद, बिजनौर, मुजफ्फरनगर में गंगा व सोनाली नदी के खादर के किसानों का जबरदस्ती बैकों द्वारा बीमा कर दिया गया। बारिश के कारण यहां के किसानों को हजारों एकड गन्ना पूर्णतः नष्ट हो गया। किसान क्षतिपूर्ति के लिए जिला कृषि अधिकारी कार्यालय पहुंचे, तो पता चला कि उस क्षेत्र में गन्ने का बीमा ही नहीं किया गया। खेत में गन्ने की फसल लगी है, लेकिन बीमा धान का दिखाया गया है। अब सवाल यह उठता है कि किसान से प्रीमियम लिये जाने के बावजूद भी गन्ने की फसल के नुकसान के भरपाई हेतु बीमा कम्पनी द्वारा मना कर दिया गया है तो किसानों के नुकसान की भरपाई कौन करेगा?

किसान वर्ग का ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूं कि विश्व व्यापार संगठन के दिशा- निर्देशन पर  अमल करते हुए फसल बीमा योजना के लिए 11 देशी व विदेशी कम्पनियों के साथ 4 सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों कों निर्धारित किया गया है। ये कम्पनियां जो सेवा देंगी उसकी कीमत सरकार के आदेश पर किसान देगा और स्वयं अपनी बर्बादी की ओर एक कदम उठायेगा। इस योजना के द्वारा किसानों के प्रति सरकार अपनी बुनियादी जिम्मेदारियों के पल्ला झाडकर बडी कम्पनियों की लूट का उपाय बना दिया गया है। दुनियाभर में कम्पनियां कानूनी-गैरकानूनी तरीके अपनाकर घोर भ्रष्टाचार कर रही हैं। मक्कारी, चालबाजी व धोखाधडी इनकी कार्यशैली का अंग है। इसका उदाहरण यह है कि प्रधानमंत्री जी की महत्वाकांक्षी योजना जन-धन योजना में खाते खोलने में निजि बैंकों ने अपनी दिलचस्पी नहीं दिखाई है।

किसानों के साथ अगर कम्पनियां अन्याय कर रही हैं और किसानों के दावों का अगर सही भुगतान नही हो पा रहा है तो ऐसी स्थिति में क्राॅस चैकिंग के लिए सरकार के पास कोई व्यवस्था नही है। पिछले वर्ष आपदा के समय कई राज्यों से खबरें आ रही थीं कि किसानों को मुआवजा नहीं मिल पा रहा है और जहां मिल रहा है वहां भी सही नहीं है। इसके बावजूद भी इनकी जांच कराने के लिए सरकार द्वारा अब तक भी कोई कदम नहीं उठाया गया है। बडी चतुराई से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में मान निर्मित नुकसान, जंगली जानवरों से होने वाले नुकसान को बाहर कर दिया गया है, जबकि किसानों को इन्हीं दो कारणों से अधिक नुकसान हो रहा है। देश में किसानों के लिए कोई भी फसल योजना तब तक व्यावहारिक नहीं हो सकती जब तक योजना में किसान के खेत को इकाई न माना जाये। खेत को इकाई मानते हुए खेत में काम करते समय जन हानि, मशीन हानि, पशु हानि की क्षतिपूर्ति को भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में शामिल किया जाये। प्रधानमंत्री जी का यह बयान कि देश के 70 प्रतिशत किसानों को कवरेज में शामिल किया जायेगा यह भी सपना सा ही प्रतीत होता है। देश में दो तरह की फसल बीमा योजना की आवश्यकता है।

देश के किसानों के लिए एक फसल बीमा योजना जिसकी कवरेज शत-प्रतिशत अनिवार्य रूप से लागू हो और उसका प्रीमियम सरकार द्वारा भरा जाये। आपदा की स्थिति में किसानों को लागत मूल्य और अगली फसल तक की लिए जीवनयापन हेतु कुछ राशि दी जाये दूसरी फसल बीमा योजना स्वैच्छिक हो जिसका प्रीमियम किसान एवं सरकार द्वारा संयुक्त रूप दिया जाये। किसान की फसल की हानि की स्थिति में किसान को फसल के उत्पादन के आधार पर क्षतिपूर्ति की जाये। 2004 में सरकार द्वारा गठित किसान आयोग की रिपोर्ट में फसल बीमा के सम्बन्ध में यह भी संस्तुति की गयी है कि छोटे-मझौले लघु-सीमान्त किसानों की फसलों के बीमे का प्रीमियम सरकार द्वारा भरा जाये। किसान के लिए यही बेहतर है कि उनकी फसलों की शत-प्रतिशत नुकसान के भरपाई सरकार द्वारा की जाये उसके लिए चाहे बीमे की व्यवस्था हो या सरकार स्वयं वहन करे। किसी भी योजना को किसान पर थोपकर उनका भविष्य सुरक्षित नहीं किया जा सकता।

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