संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

बस्तर : कलगांव के 17 किसानों की जमीन बीएसपी टाऊनशिप के लिये छीन ली गई, ग्राम सभा प्रस्ताव पास करती रह गई विरोध में

अनुभव शोरी 
विकास के नाम पर आदिवासियों के अधिकारों का हनन आखिर कब तक,क्या विकास की परिभाषा यह है कि अपने रास्ते में आने वाले समस्त चीजें चाहे वो संवैधानिक ही क्यों न हो उसको भी कुचलते हुए आगे बढ़ते रहना है ,क्या विकास के सामने सब कुछ बौना है ,चाहे वो मनुष्य ही क्यू न हो। इस प्रकार का विकास का तात्पर्य किससे है जो की संविधान एवं लोगो को कुचलते हुए हो रहा हो।
कांकेर। एक कहानी है अंतागढ़ जिला कांकेर के लगे गाव कलगांव की जहा सरकार BSP टाउनशिप के नाम पर आदिवासी किसानो की 17.750 हेक्टेयर जमीने हड़प रही है, वही आदिवासी किसान इसी कृषि भूमि पर व्यक्तिगत अधिकार पाने की लड़ाई लड़ रहे है,विगत 8-10 सालो की लड़ाई में ना जाने कितने आवेदन राज्यपाल से राष्ट्रपति तक भेजा गया, विधायक से लेकर मंत्री तक, सरकारे बदल गयी अफसरों का तबादला हो गया, फिर भी शासन प्रशासन का इस विषय पर किसी प्रकार के कोई रूचि नही दिखा, आज का सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है की आदिवासियों के अधिकारों के बात करते ही सरकार क्यों हाथ खड़ा कर लेती है? क्यों जवाबदेही से बचना चाहती है ? जबकि आदिवासी सविधान में अंकित अधिकारों की ही तो बात करते है।
ग्राम कलगाव के 17 किसान उक्त भूमि पर कई वर्षो से खेती करते आ रहे है इन 17 किसान भाइयो को पता भी नही था की उनकी जमीन को BSP टाउनशिप के लिए उनसे बिना पूछे कब्जा कर लिया गया है, इनको तो लग रहा था की अपने जमीनो के मालिकाना हक के लिए जल्द ही इनके अधिकार पत्रक मिल जायेंगे! इन किसानो को ग्रामसभा ने सर्वसम्मत्ति से व्यक्तिगत अधिकार पत्रक देने प्रस्ताव पास की जा चुकी थी फिर भी प्रस्ताव एवं अनुसंशा कोई काम का नही रहा, पूर्व में सरकार के व्दारा कहा गया की उक्त भूमि गाव के चरागन के लिए सुरक्षित है अत: आपको इस भूमि पर अधिकार नही दे सकते लेकिन अब वही जमीन को प्रसाशन द्वारा BSP टाउनशिप के लिए दे दिया गया है, ये बोलकर की जमीन अदला बदली नियम के तहत जिला दुर्ग के साथ की गयी है, अब तक समझा नही जा सका की ये कौन से कानून, नियमों के तहत किया गया है (भू-राजस्व सहिंता के खंड 4 क्रमांक 3 कंडिका-20 उदघोषणा में जिक्र करते हुए) दर्शाया गया नियम जोकि सिर्फ कृषि प्रयोजन के लिए है, चकबंदी से सम्बंधित है, चूंकि भारत क संविधान कहता है की 244(1) के तहत कांकेर जिला एक पांचवी अनुशुचित क्षेत्र है जहा प्रशासन और नियंत्रण आदिवासियों के अधीन होता है, ये कितना उचित है की सामान्य क्षेत्रो के जमीनो के साथ आदिवासी क्षेत्रों की जमीनो का अदला बदली किया जाये ग्रामसभा के प्रस्ताव के बगैर, इस विषय पर ग्रामसभा कलगाव अपनी असहमति दर्ज करा चुकी है जिसका अब तक न कोई जवाब आया न ही प्रशासन का इस सन्दर्भ में कोई रूचि दिखा।
क्या सरकार का ये उत्तरदायित्व नही है बनता की वो किसानो की भी बात सुने, आदिवासी किसानो भाइयो के साथ इस तरह सरकार के भेदभाव से प्रत्यक्ष रूप से दर्शाता है की सरकार पूंजीवादी व्यवस्था को बढावा देने के लिए ही इस तरह का व्यव्हार कर रहा है ताकि सस्ते में आदिवासियों के जमीनो को कब्ज़ा कर सके इसी कारण रास्ते में आने वाले किसी भी चीज को कुचलने की सक्रियता दिखा रहा है चाहे वह आदिवासियों के सवैधानिक अधिकार क्यों न हो विकाश के नाम पर पांचवी अनुसूची ,द्वारा प्रदत्त अधिकारों ,पेसा कानून की धारा 4 झ, वन अधिकार कानून 2006 एवं ऐसे समस्त कानूनों जो की आदिवासियों के आजीविका एवं रुडी प्रथा का अभिन्न अंग है जिसका भी घोर उल्लंघन किया जा रहा है ग्रामसभा के शक्तियों की अवमानना की जा रही है, यह सरकार का ये दोहरा रूप दर्शाता है की आदिवासियों, किसानो के मामले पर ये कितनी सवेदनशील है!(सामाजिक कार्यकर्ता है , उत्तर बस्तर में काम करते है)

इसको भी देख सकते है