संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

अपनी जड़ों से उखड़ते आदिवासी : छत्तीसगढ़ से सुधा भारद्वाज की एक ज़मीनी रिपोर्ट; भाग एक



छत्तीसगढ़ में घट रही घटनाओं को सरसरी तौर पर देखने पर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहाँ सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. किसान, आदिवासी आंदोलन  कर रहे हैं जिससे अपने जल, जंगल और जमीन को बचाया जा सके. पूरे राज्य के आदिवासियों के लिए विस्थापन गंभीर समस्या लेकर आया है जिसमें उन्हें अपनी जड़ों को छोड़कर जाने को कहा जा रहा है ताकि किसी बड़े व्यापारी का कोई उद्योग लग सके. विकास के नाम पर प्राक्रतिक सम्पदा को नष्ट कर खनन उद्योग, राजमार्ग, अभ्यारण्य, सेना के रहने के लिए कालोनियां बहुत कुछ ऐसा बनाया जा रहा है जो वहां रहने वाले मूल निवासियों के लिए काम का नहीं है. हम यहाँ पर छत्तीसगढ़ के वर्तमान हालात को बयां करती सुधा भारद्वाज की विस्तृत  रिपोर्ट (छ:  भागों में ) प्रकाशित कर रहे हैं। रिपोर्ट अग्रेजी में है जिसका हिंदी तर्जुमा mediavigil.com ने किया है ;

रायपुर की स्पंज आयरन बेल्ट, रायपुर और बिलासपुर के बीच सीमेंट बेल्ट, कोरीया की कोयला खानों, सरगुजा के बॉक्साइट खदानों, कोरबा के बिजली संयंत्र और रायगढ़ से आगे “जिंदल-लेंड” जहां रिट जिंदल की कंपनी चलाती है – ये सभी क्षेत्र व्यापक रूप से विस्थापन के गवाह रहे हैं. यहां रहने वालों को हटाया तो गया लेकिन उसके बाद उनकी कोई सुध नहीं ली गई. न उन्हें बेहतर मुआवजा मिला और न ही पुनर्वास किया गया जिससे वे अपना जीवन फिर से शुरू कर सकें. जीवन-यापन सुधारने के नाम पर शुरू हुए विकास ने आदिवासियों, किसानों का नुकसान ही किया है.

छतीसगढ़ का विकास बड़े-बड़े कारखाने लगाकर किया जा रहा है जिसकि वहां के आदिवासी समुदाय को जरूरत नहीं है,. आदिवासी समुदाय मूलतः जंगल और जमीन पर रहने वाला समुदाय है जिसको आधुनिक विकास से कोई लेना देना नहीं है. बड़े उद्योग घरानों और राज्य प्रायोजित यह विकास वहां के प्राक्रतिक संसाधनों के लूटने का खेल है जिसमें सरकार उद्द्योगपतियों की मदद कर रही है. जमीन हडपने का यह खेल पूरे जोर-शोर के साथ किया जा रहा है. इसकी बानगी वहां लगे या फिर लगने वाले सीमेंट,बिजली के कारखाने हैं. स्थापित होने वाले इन कारखानों के कारण वहां के निवासियों को अपना मूल निवास स्थान छोड़ना पद रहा है जहाँ वे सदियों से रहते आये हैं. छतीसगढ़ के जिला जंजीर में 34 नए बिजली घर बनाये जाने की योजना है जो जिसे जिंदल जैसे बड़े व्यापारी लगा रहे हैं, वहीँ बालोदा बाजार के नए बने जिले में 7 सीमेंट प्लांट हैं जहां बहुराष्ट्रीय कंपनियों होल्सीम और लाफार्ज और बिड़ला समूह – अल्ट्राटेक, ग्रासिम और सदी की इकाइयां पहले से ही स्थित हैं।

उड़ीसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ के पूरे खनिज क्षेत्र में जहां गैर-नक्सल इलाकों

(पॉस्को, काथिकंद, कलिंगनगर, नारायणपट्टन, पोत्का) में क्रूर पुलिसिया दमन का सहारा लिया जा रहा है ताकि कैसे भी करके जमीन पर कब्ज़ा किया जा सके. जमीन में पाये जाने वाले खनिज पर सबकी निगाहें लगी हुईं हैं   खनन, जमीन पर कब्जे का सबसे बढ़िया कारण है. जो सबको अपनी तरफ़ आकर्षित करता है. जमीन पर कब्जे के खेल में दंतेवाडा जैसे इलाकों में तो युद्ध जैसे हालत बना दिए गए हैं जिसके कारण वहां रहने वालों को आए-दिन नक्सली कहकर मार दिया जाता है.

इस रिपोर्ट में यह जानने का प्रयास भर किया गया है कि किस तरह से जमीन पर कब्जे का सुनियोजित अभियान चलाया जा रहा है और सरकारें किस तरह से कानून के भीतर/बाहर संसाधनों की लूट में सहायता कर रही हैं. छत्तीसगढ़ बिलासपुर में “जनहित पीपुल्स लीगल रिसोर्स सेंटर” से जुड़े वकीलों के एक समूह ने कानूनी प्रक्रियाओं की समझ के आधार पर इसको जानने का प्रयास किया है. यह दस्तावेज कानून के एक अकादमिक अध्ययन से बहुत ज्यादा नहीं है, बल्कि हमारे अनुभवों से, समूह कानूनी सहायता प्रदान करने की कोशिश करता है। इस अध्यन में वहां के निवासियों द्वारा किये गए आंदोलनों के जरिए इसको समझने का प्रयास किया गया है.

क्रमशः जारी

इसको भी देख सकते है