संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

भू-अर्जन कानून 2013 : ओम्कारेश्वर बांध प्रभावितों का भू-अर्जन निरस्त

प्रभावित फिर से डूब की ज़मीन का भू-मालिक बना / पुनः पट्टे देने की मांग की

नए “भू-अर्जन, पुनर्वास एवं पुनर्विस्थापन में उचित प्रतिकार एवं पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013” के 1.01.2014 को प्रभावशील होने के बाद उसके एक महत्वपूर्ण प्रावधान के अनुसार ओम्कारेश्वर परियोजना की शासन द्वारा पूर्व में अधिगृहित हजारों एकड़ जमीन का भू-अर्जन निरस्त हो गया है. इस बात को लेकर आज सैकड़ों ओम्कारेश्वर बांध प्रभावितों ने कलेक्टर कार्यालय पर पहुंचकर आवेदन प्रस्तुत किया कि नए भू-अर्जन कानून के अनुसार उनकी डूब की भूमि जिस पर वे आज भी खेती कर रहे हैं व् उनके डूब क्षेत्र में स्थित मकान जिस में वे अभी भी रह रहे हैं, का भू-अर्जन निरस्त हो गया है. अतः भू-राजस्व के समस्त अभिलेखों में उनकी जमीनों पर उनके नाम पुनः दर्ज करके उन्हें ऋण पुस्तिका / पावती दी जाये. साथ ही उन्होंने शासन और NHDC कंपनी को आगाह किया कि इन ज़मीनों, उस पर बोई हुई फसलो को व उनके मकानों को डूबोना या किसी तरह से नुकसान पहूचाना गैर-कानूनी  होगा. दरअसल पिछले 10 साल से ओम्कारेश्वर बांध के क्षेत्र में शासन और NHDC ने प्रभावितों को पुनर्वास देने में अत्यधिक विलम्ब किया है और उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशो को अनदेखा किया है, जिस के कारण से प्रभावित आज भी डूब क्षेत्र में जी रहे हैं या खेती कर रहे है.

क्या कहता है नया कानून
देश की संसद द्वारा पारित नए भू-अर्जन व् पुनर्वास कानून “भू-अर्जन, पुनर्वास एवं पुनर्विस्थापन में उचित प्रतिकार एवं पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013” की कंडिका 24(2) का प्रावधान के अनुसार पुराने कानून भू-अर्जन अधिनियम 1894 के तहत जहाँ भी सरकार ने किसी निजी संपत्ति का अवार्ड 1.01.2014 (नया कानून लागू होने का तारीख) का 5 साल पहले पारित किया है, और उस संपत्ति पर मूल मालिक का भौतिक कब्ज़ा बरकरार है, वहा उस संपत्ति की पूर्व की भू-अर्जन प्रक्रिया निरस्त हो जाएगी. इस तरह से 1.01.2014 से मूल मालिक फिर से उस संपत्ति का भूमिस्वामी हो गया है. नए कानून के अनुसार अगर शासन चाहे तो वह नए सिरे से नए कानून के प्रावधानों के तहत उन संपत्तियों का अधिग्रहण कर सकती है.

 क्या होगा ओम्कारेश्वर परियोजना में नए कानून का असर

ओम्कारेश्वर बांध से लगभग 3000 हेक्टेयर जमीन डूब प्रभावित है. ओम्कारेश्वर परियोजना में 189 मीटर तक पानी भरा है एवं उसके ऊपर की समस्त जमीने खुली हुई है और इस प्रकार लगभग 2000 हेक्टेयर यानि लगभग 2500 किसानो की 5000 एकड़ जमीन डूब के बाहर है. प्रभावित उस पर खेती कर रहे है और उनका उस पर भौतिक कब्ज़ा बरक़रार है. डूब क्षेत्र में सैकड़ों प्रभावित अपने घरों में भी रह रहे हैं. ओम्कारेश्वर परियोजना प्रभावित के तमाम गाँव जैसे घोघलगाँव, एखंड, टोकी, कामनखेड़ा, केलवाबुजुर्ग, इन्धावदी आदि का भू-अर्जन वर्ष 2005 और फिर 2007 में हुआ था, अतः नए कानून के लागू होने के 5 वर्ष से पहले भू-अर्जन हुआ है. ओम्कारेश्वर बांध के प्रभावितों का पुनर्वास न होने के कारण बांध में 189 मीटर के ऊपर पानी भरा नहीं गया, इसलिए प्रभावित डूब क्षेत्र में आज भी जी रहे है और उन ज़मीनों पर खेती कर रहे हैं और उनका भौतिक कब्ज़ा बरक़रार है. अतः नए कानून के अनुसार इन संपत्तियों का भू-अर्जन निरस्त हो गया हैं. नए कानून के अनुसार यदि सरकार को इन जमीनों की आवश्यकता है तो इस कानून की धारा 24 के अनुसार सरकार को नए भू-अर्जन कानून के अनुसार फिर नए सिरे से भू-अर्जन करना होगा.

शासन और NHDC द्वारा पुनर्वास की एक भी कर्त्तव्य पूरी नहीं, विस्थापितों के साथ क्रूरता  

ये अत्यंत विडम्बना की बात है कि जबकि ओम्कारेश्वर बाँध का डूब क्षेत्र में भू-अर्जन का कार्य 2005 और 2007 में संपन्न हुआ, शासन और NHDC ने पुनर्वास के कार्य में अत्यधिक विलम्ब किया, और हजारो विस्थापितों को पुनर्वास नीति के अंतर्गत उनके जायज अधिकार से वंचित किया. इस तरह से एक भी विस्थापित को पुनर्वास नीति के अनुसार ज़मीन के बदले ज़मीन और न्यूनतम 5 एकड़ ज़मीन नहीं दिया गया और सैकड़ो विस्थापित को घर-प्लाट तक नहीं दिया गया, जिस पर वे घर बनाकर पुनर्वासित हो सकते हैं. माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपना 11.05.2011 का आदेश में इसपर तीखी टिपण्णी करते हुए यह कहा कि
“None of the obligations on part of the authorities as clearly stipulated by the R&R Policy had been fulfilled.”

आश्चर्य की बात है की माननीय सर्वोच्च न्यायालय का आदेश दिनांक 11.05.2011 के बाद भी आदेश के अनुसार विस्थापितों को उपजाऊ और गैर-अतिक्रमित ज़मीन नहीं दी गयी. सैकड़ो विस्थापितों को घर प्लाट देना भी बाकी है. 17 दिन पानी माँ बैठ कर ओम्कारेश्वर बांध के विस्थापितों ने जो पैकेज हासिल किया, वह भी अधुरा है, और उसे प्राप्त करने के लिए भी लोगो को बीच बरसात में अपने मकानों को तोडना पड़ा. इस तरह शासन और NHDC द्वारा विस्थापितों के साथ क्रूरता और अवहेलना का व्यवहार किया गया और पुनर्वास में विलम्ब किया गया जिसके कारण आज डूब की ज़मीन और मकानों का अवार्ड निरस्त हो गए हैं.

सैकड़ों प्रभावितों की जिला कलेक्टर से मांग : NHDC में भी सौपे आवेदन  

आज सैकड़ों ओम्कारेश्वर बांध प्रभावित ने जिला कलेक्टोरेट पर पहुंचकर अपर कलेक्टर श्री बघेल को जिला कलेक्टर को संबोधित आवेदन देकर मांग की कि नए भू-अर्जन कानून के अनुसार उनकी डूब की जमीनों व् घरों का भू-अर्जन निरस्त हो गया है, अतः उन्हें भू-राजस्व के समस्त अभिलेखों में उनकी मकानों और जमीनों पर उनका नाम पुनः दर्ज करके उन्हें  पुनः ऋण पुस्तिका/पावती दी जाये. इसके बाद सभी प्रभावित NHDC कार्यालय गए और उन्होंने भू-अर्जन अधिकारी को भी इसी सन्दर्भ में ज्ञापन सौंपे.

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