संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

राजस्थान के रावतभाटा परमाणु बिजलीघर में 40 वर्षों से जारी है ठेका मजदूरों का शोषण

23 जून को रावतभाटा रिएक्टर में परमाणु विकिरण के रिसाव की सूचना मिलने पर संघर्ष संवाद की टीम  10 जुलाई को रावतभाटा पहुँची. रेडियेशन के खतरों और परमाणु-ऊर्जा के सवालों की पडताल करते हुए हमें एक नयी सच्चाई जानने को मिली – इस प्लांट में ठेके पर काम कर रहे मजदूरों की अमानवीय दशा. प्लांट के नियमित स्टाफ विकिरण वाली जगहों पर इन ठेका-मजदूरों को ही भेजते हैं और 23 जून की घटना में ट्रीशियम विकिरण के रिसाव का शिकार हुए 38 मजदूर भी ऐसे ही ठेका-श्रमिक थे. 

हमने अणुशक्ति डी. आर. (Daily Rate workers) श्रमिक संघ महासचिव श्री मानसिंह सोलंकी से बात की. उन्होंने परमाणु बिजलीघर में काम कर रहे ठेका-मजदूरों की दुर्दशा, उन पर हो रहे जुल्म और उनके संघर्षों से हमें अवगत कराया. 
इस बातचीत का संक्षिप्त ब्योरा हम यहाँ दे रहे हैं: 

“हमने इस शोषण से निजात पाने के लिए मार्च 2011 में अणुशक्ति डी. आर. श्रमिक संघ की स्थापना की ताकि गरीब श्रमिक को उसका हक मिल सके। संघ के बैनर तले हमने दिनांक 18. 03.2011, 18.07.11, 11.01.2012 और 21.05.2012 को चार बार धरना, हडताल, व आमरण अनशन किया लेकिन आर आर प्रबंधन पर कोई फर्क नही पड़ा। यहां का प्रबंधन श्रमिक विरोधी कुटिल नीति पर काम करता है उसने कभी भी श्रमिक के हितो का ध्यान में नही रखा कि श्रमिक को कितना वेतन दिया जा रहा है वे तो केवल आदेश निकाल देते है कि श्रमिको को इतनी दैनिक वेतन देना है। लेकिन उन्होने कभी भी यह पता नहीं किया की श्रमिको को कितना मिल रहा है। कई ठेकेदार वेतन मिलने के पहले ही खाली रजिस्टर पर श्रमिको के हस्ताक्षर करा लेते है और कुछ ठेकेदार पेमेन्ट डालकर एटीएम से पैसे निकालकर कम वेतन श्रमिको को देते है क्योकि एटीएम ठेकेदार के पास होते है। श्रमिको का शोषण निम्न प्रकार से किया जा रहा है-
1.                   राजस्थान परमाणु बिजलीघर एक संवेदनशील संयत्र है, सी आई डी सुरक्षा जयपुर की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान परमाणु बिजलीघर एवं भारी पानी संयंत्र ए श्रेणी के महत्वपूर्ण संवेदनशील संस्थान है फिर भी आर आर साइट प्रबंधन यहां पर कार्य करने वाले ठेका श्रमिको को एरिया श्रेणी-सी की न्युनतम मजदुरी दे रहा है। जो कि गलत है यहां के ठेका श्रमिको को एरिया श्रेणी-ए न्युनतम मजदुरी का वेतन देना चाहिए।
2.                   यहां पर लेबर एक्ट के तहत 5 से 20 वर्षों से कार्य कर रहे श्रमिको को कभी भी किसी भी प्रकार का लाभ नहीं दिया गया।
3.                   यहां पर जो भी ठेका श्रमिक के द्वारा कार्य कराया जाता है वो स्थाई प्रवृति (Regular Nature type of work) का काम है। यहां केवल हर साल ठेकेदार बदलते है श्रमिक वही रहते है श्रमिको को लगभग 2 से 20 वर्ष हो चुके है। विभाग जिनमे श्रमिक कार्य करते है वे जैसे सिविल मेंन्टीनेन्स, मेकेनिकल मेंन्टीनेन्स इलेक्ट्रीकल मेंन्टीनेन्स, योजना विभाग, सेन्ट्रल टेन्डर सेल, गार्डन, नर्सरी, एसटीपी, कामन सर्विस, हाउस किपिंग, मेटेरियल हान्डलिंग आदि ऐसे कई विभाग है जिनमे श्रमिक कई वर्षो से रेगुलर कार्य कर रहें है लेकिन संघ बनने के बाद ठेकेदार, प्रभारी अभियंताओ और प्रबंधन ने अनुभवी श्रमिको को कार्य से निकालना प्रारम्भ कर दिया है कि ठेकेदार को बोलते है पुराने कर्मचारियों की जगह नये कमचारी लगाओ। अनुभव के आधार जिन कर्मचारियों को उसी जगह स्थायी करना चाहिए उनको इसके बजाऐं नौकरी से बेदखल किया जा रहा है क्योकि श्रमिक अपने हितो व हको को जान गया है और आवाज उठाने लगा है।
4.                   यहां पर लगभग 300 से 400 महिला श्रमिक है, उन्हें आज तक प्रसूति सुविधा अधिनियम 1961 (Maternity Act -1961) का लाभ भी नहीं मिला। ठेकेदार कहता है ये यहां पर लागू नहीं होता।
5.                   आज तक आर आर साइट पर किसी भी ठेका श्रमिक को अर्जित अवकाश, आकस्मिक अवकाश, ग्रेच्युटी, छटनी लाभ, नोटिस पे, मेडीकल लाभ व अन्य जो भी स्थाई प्रवृति का कार्य करने वाले ठेका श्रमिकों पर लागु होते हैं, का लाभ नहीं मिलता है। यहां पर हर कार्यादेशों में लिखा जाता है श्रम कानून का पालन करना है। कहां पर है श्रम कानून। इस विषय पर कोई शिकायत करता है तो उस कर्मचारी को वार्निंग नही दी जाती को तुरन्त बिना किसी नोटिस-पे के कार्य से निकाल दिया जाता है। लेकिन मानव संसाधन के प्रबंधक से जब शिकायत करता है तो वो भी नाम मात्र की कार्यवाही करता है और निकाले गये श्रमिक को दोबारा कार्य पर नहीं रखवाते। वे केवल प्रभारी अभियंता व ठेकेदार का फायदा देखते है वे जैसा बोलते है वैसा ही करते हैं।
6.                   यहां पर प्रबंधन, ठेकेदार व प्रभारी अभियंता वर्षों का अनुभव रखने वाले श्रमिको को कार्य से निकाल रहें है और उनकी जगह अनुभवहीन श्रमिको का काम पर रख रहें है। जो श्रमिक 20 वर्षों से दिन रात खून पसीना एक कर कार्य कर रहा है उसें निकाल देंगे तो वो कहां जाएगा। यहां अनुभव की कोई कीमत नहीं है।
7.                   यहां के प्रबंधन ने 2009 में श्रमिकों के योग्यता, कार्य व अनुभव के आधार पर कई श्रमिकों के वेतन में ईजाफा किया जैसे न्युनतम मजदुरी रू 298 है तो प्रबंधन ने उसमें एक फैक्टर लगा दिया जैसे रू.298×1.25=रू.372.50, रू.298×1.50=रू.447, रू.298×2.0=रू.596 आदि कर के टेक्निकल श्रेणी में डाल दिया, TG-0, TG-1, TG-2 आदि, वैसे ही कुछ अकुशल श्रमिकों को अर्द्धकुशल, कुछ अर्द्धकुशल श्रमिको को कुशल एवं कुछ कुशल श्रमिको को अतिकुशल कर दिया गया। जिससे श्रमिको की आर्थिक स्थिती में सुधार हुआ। लेकिन 2012 में एक और तो मंहगाई में हर खाद्य पदार्थो का दाम बढ़ता जा रहा हैं वहीं आर आर साइट प्रबंधन उनकी आर्थिक स्थिती को सुधारने के बजाए उनका वेतन आधा कर उनकी आर्थिक स्थिती बिगाडने पर तुला है जैसे रू.596 से घटा कर रू.298, रू.447 से घटा कर रू.253, रू.372 से घटा कर रू.210, रू.298 से घटा कर रू.253, रू.253 से घटा कर रू.210, रू.210 से घटा कर रू. 180 कर रहा है। जब संघ ने पूछा तो प्रबंधन का कहना है ये तो NPCIL(Nuclear Power Corporation of India Limited) हेड क्वाटर, मुम्बई का आदेश है। वेतन बढा कर कम कर देना श्रमिको के लिए न्यायोचित नहीं है। लगता है NPCIL केवल अपने ही नियम पर चलता है श्रम कानून से नहीं। महोदय श्रम कानून के कौन से अधिनियम में लिखा है कि किसी श्रमिक का वेतन बढा देने के बाद उसका वेतन आधा कर दिया जाएगा।
8.                   महोदय, हर बार आर आर प्रबंधन के साथ वार्ता करते वक्त सांसद, विधायक, कलेक्टर, उपखण्ड अधिकारी, क्षेत्रिय श्रम आयुक्त, सहायक श्रम आयुक्त एव संध के पदाधिकारी भाग लेते हैं। लेकिन समझौते के नाम पर श्रमिको से खिलवाड होता है कि आपकी मांगें पूरी कर जाएगी, किसी को काम से निकाला नहीं जाएगा, किसी का वेतन कम नही किया जाएगा, श्रम कानूनों की पालन किया जायेगा परन्तु लगता है सभी राज नेता, लोकल प्रशासन के अधिकारी एवं प्रबंधन के पदाधिकारियों की मिली जुली साजिश है कि जो भी श्रमिक अपने हक की आवाज उठाएगा उसे काम से निकाल दिया जाएगा।
9.                   जिन श्रमिकों ने अपने हक के लिए आवाज उठाई उन्हें प्रबंधन ने कार्य से निकाल दिया और एक माह के उपर हो चुका है। प्रबंधन और प्रशासन की मध्यस्ता में वार्ता में कहां गया था कि पुलिस द्वारा चरित्र पमाण पत्र दोबारा बनवाने पर श्रमिक को कार्य पर रख लिया जाएगा परन्तु आज तक सभी श्रमिक बेरोजगार बैठे है।”
परमाणु उद्योग दुनिया भर में मजदूरों की बलि चढाने के लिए कुख्यात है. फुकुशिमा दुर्घटना में भी खुलेआम ठेका-श्रमिकों से खतरनाक काम करवाए जा रहे हैं और उनके लिए मानक सालाना रेडियेशन की खुराक को बढाकर दुगुना कर दिया गया है. भारत के काकरापार, कलपक्कम, तारापुर, कैगा इत्यादि परमाणु-बिजलीघरों से भी  ऐसे भयावह किस्से सामने आते रहे हैं. आज जब सरकार परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के कई-गुना विस्तार की योजना बना रही है, हमें इस क्षेत्र के मजदूरों की पीड़ा को समझना होगा और इस विनाश के खिलाफ मिलकर संघर्ष करना होगा. 
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