संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

ऋचा फैक्ट्री : मजदूरों की हड़ताल आंशिक सफलता के साथ समाप्त

उत्तराखण्ड के काशीपुर स्थित ऋचा फैक्ट्री के  मजदूर 27 जून को अपनी 39 दिन की हड़ताल (जिसमें 4 दिन आमरण अनशन भी शामिल है) के बाद 6 बर्खास्त श्रमिकों को पुनर्बहाल करवाने और यूनियन को मान्यता दिलवाने में सफल रहे। हालांकि बर्खास्त श्रमिकों को 8 माह दूसरी साइटों पर स्थानान्तरण पर जाना होगा। मजदूरों की इस सफलता से काशीपुर क्षेत्र की अन्य फैक्टरियों के मजदूरों को भी हौंसला मिलेगा। नगरिक डाट कॉम से साभार;

 रिचा इण्डस्ट्रीज के मजदूरों का संघर्ष मनमाने तरीके से मजदूरों का गेट बंद करने के खिलाफ 20 सितम्बर 2015 को शुरू हुआ था जिसमें प्रबंधन की मक्कारी और प्रशासन की धूर्तता से अलिखित समझौता हुआ जो लागू नहीं किया। आगे मजदूरों ने इस छलावे का जवाब यूनियन बनाने से दिया। अभी यूनियन बनाने की प्रक्रिया शुरू ही हुई थी कि अध्यक्ष बलदेव सिंह को गलत कागजात प्रस्तुत करने के झूठे आरोप में बर्खास्त कर दिया गया। साथ ही महामंत्री योगेश पांडे, कोषाध्यक्ष अरुण कुमार तथा दो अन्य यूनियन सदस्यों अमित व अनीश को गैर कानूनी ढंग से ट्रांसफर कर लम्बी प्रक्रिया में बर्खास्त कर दिया। इसके खिलाफ 25 दिसम्बर 2015 से इन पांच श्रमिकों के साथ मजदूरों ने एस.डी.एम. कार्यालय काशीपुर में धरना शुरू किया जो 19 मई 2016 तक जारी रहा। इस बीच 26 अप्रैल को यूनियन पंजीकृत हो गयी। 20 मई से सभी मजदूर बर्खास्त श्रमिक नेताओं व अन्य तीन श्रमिकों (जिसमें एक श्रमिक हरीश राणा को मई माह में बर्खास्त किया गया) की कार्यबहाली की मांग के साथ हड़ताल पर चले गये।

अकड़ केे पीछे  पूंजीपतियों के संगठन कुमाऊं-गढ़वाल चैम्बर आफ कामर्स के अलावा सरकार व प्रशासन का पूरा समर्थन मूल ताकत था। इसके जवाब में रिचा के मजदूरों की ताकत इकलौती यूनियन, इंकलाबी मजदूर केन्द्र का सहयोग व मार्गदर्शन, इसके अलावा पंतनगर सिडकुल की कुछ यूनियनों का सहयोग ही था। प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन भी मजदूरों के समर्थन में सक्रिय रहे। संघर्ष के प्रचार के दौरान जनता के सहयोग-समर्थन ने भी मजदूरों को ताकत दी। अपनी इस हड़ताल के दौरान मजदूर 39 दिन तक बहादुरी के साथ दिन-रात आंधी-पानी, प्रशासन की घुड़कियों का मजबूती से मुकाबला करते रहे। मजदूरों के परिवारजनों (पत्नी-बच्चों) की भागीदारी ने संघर्ष को धार प्रदान की। इस दौरान एसडीएम का घेराव, शहर में जुलूस प्रदर्शन, डीएम कार्यालय पर धरना आदि कार्यवाहियों के साथ 24 जून से 4 मजदूरों द्वारा आमरण अनशन आदि कार्यवाहियां की गयीं।

नवनियुक्त एसडीएम ने मजदूरों को बहलाने-फुसलाने से लेकर हड़काने तक के सभी हथकण्डे अपनाये पर वे मजदूरों की एकता को तोड़ न सके। मालिक-प्रबंधन ने भी मजदूरों को तोड़ने के लिए लोभ लालच के साथ बीसियों मजदूरों को बर्खास्त करने के हथकण्डे अपनाये पर वह भी नाकाम रहा।

अंततः 27 जून को एसडीएम, उपश्रमायुक्त की मध्यस्थता में त्रिपक्षीय वार्ता में प्रबंधन 6 बर्खास्त मजदूरों को 8 माह के स्थानान्तरण के बाद वापस काशीपुर प्लांट में लेने को सहमत हुआ। हालांकि समझौते के दौरान बाकी बर्खास्त श्रमिकों को एक बांड पर हस्ताक्षर कर भीतर जाने व बर्खास्त स्थानान्तरित मजदूरों को पर्यवेक्षण में रखने का प्रावधान डलवाने में प्रबंधन कामयाब रहा। इस तरह इस पूरे संघर्ष में जहां प्रबंधन अपनी मन की कर पाने में नाकामयाब रहा वहीं मजदूरों को भी मनमर्जी का समझौता हासिल नहीं हुआ।

इस संघर्ष की प्रक्रिया में रिचा के मजदूरों ने संघर्ष कर अपनी एकता मजबूत की है। अपनी यूनियन को तात्कालिक तौर पर वे बचाने में कामयाब हुए हैं पर मालिक-प्रबंधन यूनियन तोड़ने के प्रयास आगे भी करता रहेगा। मजदूरों को इससे सचेत रहना होगा। इस संघर्ष में मजदूरों को स्थानीय जनता का व्यापक सहयोग समर्थन मिला। जनता द्वारा दिये अनाज-सब्जी-धन आदि सहयोग के दम पर ही संघर्ष बगैर विशेष आर्थिक दिक्कत के चलाया जा सका। महिलाओं की जुझारू भागीदारी के बगैर भी मजदूर प्रशाासन-प्रबंधन पर दबाव कायम नहीं कर सकते थे। इस दबाव का अनुमान अन्तिम दिनों में एसडीएम की घुड़कियों से सहज ही लग जाता है जब वे महिलाओं को घर वापस भेजने का दबाव बनाने लगे जिसे मजदूरों ने ठुकरा दिया।

मजदूरों को इस हड़ताल से सबक निकालकर आगे की तैयारी करनी चाहिए। पहली बात कि मजदूरों की तुलना में आज पूंजीपति वर्ग अधिक संगठित है। इसलिए एक फैक्टरी के मजदूर अन्य फैक्टरी के मजदूरों की सक्रिय भागीदारी के बिना लड़ाई नहीं जीत सकते। मजदूरों को पूंजीपतियों की एकता के जवाब में सभी क्षेत्रीय फैक्टरियों के मजदूरों के साथ एकता बनानी होगी तभी वे अपनी मांगों की पूरी सफलता की गारण्टी कर सकते हैं। दूसरी बात सरकार, प्रशासन व श्रम विभाग निर्विवाद तौर पर पूंजीपतियों की सेवा में लगे हुए हैं। मजदूरों ने अपने संघर्ष के दौरान श्रम विभाग, एस.डी.एम, डी.एम., विभिन्न मंत्रियों और सरकार तक अपनी गुहार लगायी। लेकिन जब मजदूर सड़कों पर प्रशासन-सरकार के खिलाफ उतरे और अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए सरकार व प्रशासन को घेरने लगे तब जाकर अफसर-मंत्री कुछ हरकत में आए। इस हरकत में आने में भी बहलाने और धमकाने यानी गाजर और डंडे वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए मजदूरों को अपने संघर्षों के दौरान अफसरों-मंत्रियों पर दवाब बनाने का भी निष्कर्ष निकालना चाहिए।

रिचा के मजदूरों को इस हड़ताल से शासन-प्रशासन-पुलिस-न्यायालय सबका पूंजीपरस्त चेहरा देखने को मिला। उन्हें इस बात का अहसास गहराया कि पूंजीवादी व्यवस्था में मजदूरों को न्याय मिलना बगैर संघर्ष के नामुमकिन है कि अभी मिली कामयाबी भी अस्थाई है जिसे मालिक कभी भी छीनने की कोशिश कर सकता है। ऐसे में पूंजीवादी व्यवस्था को बदलने व मजदूर राज कायम करने के संघर्ष को आगे बढ़ाया जाना जरूरी है। जब तक पूरी व्यवस्था को बदल नहीं दिया जाता तब तक मजदूरों को संघर्ष की अलख जलाये रखनी होगी। काशीपुर शहर के बाकी मजदूरों से एकता, उनके संघर्षों में सहयोग समर्थन इस दिशा में जरूरी होगा।    

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