नरेंद्र मोदी के नाम फुकुशिमा से एक पत्र
भारत-जापान की इस प्रस्तावित संधि का जापान की जनता में गहरा विरोध है। इससे पहले कल जापान के फुकुशिमा से एक महिला युकिको ताकाहाशी ने नरेंद्र मोदी के नाम एक पत्र भेजा था जिसमें उन्होंने अपने यहां का हाल बताते हुए मोदी को कहा था कि वे भारत की संस्कृति को नाभिकीय ऊर्जा से तबाह न करें। पत्र जापानी में था जिसकी मूल प्रति और अंग्रेज़ी तर्जुमा DiaNuke.org पर प्रकाशित है। उस पत्र का हिंदी तर्जुमा हम जनपथ से साभार प्रकाशित कर रहे हैं।
सेवा में,
श्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री, भारतप्रिय प्रधानमंत्री जी,
युकिको ताकाहाशी मेरा घर फुकुशिमा में है। मैं भारत-जापान नाभिकीय संधि पर दस्तखत करने और आपके देश में नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों की संख्या बढ़ाने की आपकी योजना को लेकर अपनी गंभीर चिंता जाहिर करना चाहूंगी।
क्या आपको पता है कि फुकुशिमा दाइ-ची की मौजूदा स्थिति क्या है? कृपया फुकुशिमा आकर खुद देख लीजिए कि यहां क्या हो रहा है।
तीन साल से ज्यादा हो गए यहां नाभिकीय हादसा हुए, लेकिन यह अब तक जारी है। वास्तव में, यह तो बस समस्याओं की शुरुआत भर है।
रेडियोधर्मी पानी अब भी समुद्र में बह कर जा रहा है और इसे रोकने के तरीकों पर शोध हाल ही में शुरू हुआ है।
विकिरण का स्तर इतना ज्यादा है कि प्लांट के विशेषज्ञ एक्सपोज़र के तय स्तरों से पार जा चुके हैं लिहाज़ा इस तबाही को नियंत्रित करने के लिए यहां पर्याप्त कर्मचारी भी नहीं हैं।
हमें बताया गया है कि फुकुशिमा दाइ-ची को बंद करने में 30 साल लग जाएंगे, लेकिन मौजूदा हालात में यह बता पाना असंभव है कि इस हादसे को कब तक नियंत्रित किया जा सकेगा।
फुकुशिमा के मछुआरों की रोज़ी-रोटी छिन चुकी है। सुनामी से नावों को बचाने के लिए जिन लोगों ने अपनी जान जोखिम में डाली थी वे अब मछली नहीं पकड़ सकते क्योंकि समुद्र के पानी में रेडियोधर्मी तत्व मौजूद हैं। कोई नहीं जानता कि समुद्र साफ़ कब हो पाएगा, दोबारा यह जीवनदायी कैसे बन पाएगा।
फुकुशिमा के किसान भी विकिरण के स्तर से पीडि़त हैं जो कम नहीं हो रहा। किसी इलाके को अगर एक बार सफ़ कर भी दिया जाता है, अस्थायी तौर पर भी विकिरण का स्तर कम हो जाता है, तो दोबारा यह बढ़ने लगता है। क्या वह दिन कभी आ पाएगा जब हमारी इतनी ज्यादा प्रदूषित हो चुकी धरती एक बार फिर से उर्वर बन सके?
ज़रा सोच कर देखिए एक बार, कि जो काम आपके लिए इतना मायने रखता है उसे खो देने पर आपको कैसा महसूस होगा। इतने अस्पष्ट भविष्य के साथ जीना कितना मुश्किल होगा।
ऐसे करीब एक लाख से ज्यादा लोग थे जिन्हें अपने घर खाली करने पड़े जहां वे पीढि़यों से रह रहे थे, क्योंकि अब उनका घर ”संक्रमित क्षेत्र’ में आ चुका है। इनमें ऐसे लोग भी थे जिन्होंने स्वासथ्य समस्याओं से बचने के लिए स्वेच्छा से अपने घर छोड़ दिए।
परिवार के परिवार बिखर गए और तमाम लोग आज छोटी-छोटी आवासीय इकाइयों में सिमट गए हैं।
इस नाभिकीय हादसे में हमने अपनी जिंदगी, आजीविका, घर, सब कुछ खो दिया। वे सारी चीज़ें गंवा दीं जिनके लिए इंसान जीता है।
मैं शर्त लगा सकती हूं कि आप यही सोचते होंगे कि इस नाभिकीय हादसे में तो कोई नहीं मरा। यदि यह सिर्फ भूकंप और सुनामी होता, तो फंसे हुए लोगों को बचाया जा सकता था। चूंकि यहां नाभिकीय हादसा भी हुआ था, इसलिए बचावकर्मी उच्च विकिरण वाले क्षेत्रों में जा ही नहीं सके। उन्हें फंसे हुए लोगों की चीख-पुकार सुनाई देती रही, इसके बावजूद वे उनका कोई जवाब नहीं दे पाए।
जापान में हमें 40 साल से बताया जाता रहा है कि नाभिकीय प्लांट ”पूरी तरह सुरक्षित” हैं। इसके बावजूद यह हादसा हुआ। इतना ही नहीं, इस हादसे का कारण अब भी पूरी तरह पता नहीं चल सका है और तबाही जारी है। कोई नहीं जानता कि यह सिलसिला कब थमेगा।
हमने पाया है कि ”नाभिकीय ऊर्जा का स्वच्छ ऊर्जा” होना भी एक झूठ है। नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र को लगातार ठंडा किया जाना होता है। इसमें समुद्र का पानी काम आता है जो ठंडा करने के बाद उच्च तापमान पर वापस समुद्र में पम्प कर दिया जाता है। नाभिकीय ऊर्जा प्लांट के कारण समुद्र का तापमान बढ़ता है। यह एक तथ्य है कि जब से फुकुई प्रिफेक्चर में नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र को बंद किया गया है, समुद्र के आसपास की कुदरती पारिस्थितिकी नए सिरे से बहाल हुई है।
नाभिकीय ऊर्जा बहुत खर्चीली भी होती है। ईंधन और रखरखाव का तो जो खर्च है वो आता ही है लेकिन अगर कहीं कोई हादसा हो गया तो मुआवज़े के तौर पर दी जाने वाली रकम बहुत बड़ी होती है।
और आखिरी बात ये कि फ्रांस जैसे विकसित देश भी अब तक नाभिकीय कचरे के निस्तारण का कोई रास्ता नहीं खोज पाए हैं। जापान में तो हम उस कचरे को आओमोरी प्रिफेक्चर स्थित रोक्काशो-मुरा सुविधा केंद्र पर इकट्ठा करते आए हैं- इसके अलावा और कोई तरीका भी नहीं है।
नाभिकीय हादसे में जो भारी कचरा पैदा होता है… रेडियोधर्मी तत्वों से प्रदूषित धरती और अन्य चीज़ों को तो फिर भी जलाया जा सकता है, लेकिन आप बचे हुए उच्च रेडियोधर्मी ऐश (राख) का क्या करेंगे? फिलहाल तो स्थिति यही है कि इसे सड़क के किनारे छोड़ दिया गया है या फिर फुकुशिमा के पुराने भव्य मकानों के परिसर में रख छोड़ा गया है।
रेडियोधर्मी तत्वों पर मनुष्य का नियंत्रण नहीं होता। इंसान को चेर्नोबिल और फुकुशिमा के हादसों से यह सबक अब सीख लेना चाहिए।
पेड़ों पर चढ़ना, नदी किनारे आराम करना, समुद्र तट पर खेलना, ऐसी सामान्य चीज़ें भी अब मेरे शहर में मुमकिन नहीं रह गई हैं। मेरे बच्चे तो ख़ैर ये काम अब नहीं ही कर पाएंगे क्योंकि वे रेडियोधर्मिता से चौतरफा घिरे हुए हैं। कोई नहीं जानता कि भविष्य में इसका उन पर क्या असर होगा।
मांओं को डर है कि कहीं उनके दूध में रेडियोधर्मी पदार्थ न घुल गए हों। विकिरण के प्रभाव में आई लड़कियों को शंका है कि वे कभी बच्चे जन पाएंगी या नहीं।
हो सकता है कि यह सब किसी विज्ञान के गल्प जैसा जान पड़ता हो, लेकिन फुकुशिमा में जिंदगी फिलहाल ऐसी ही है। और अकेले फुकुशिमा ही संक्रमित नहीं है। रेडियोधर्मी पदार्थों के महीन कण तकरीबन समूचे पूर्वी जापान में बिखरे पड़े हैं।
हवा में सांस लेते हुए, खाना खाते हुए या घास पर लेटे हुए सुरक्षित महसूस करने जैसी रोज़मर्रा की सामान्य चीज़ें भी अब हम नहीं कर पाते, जो कि हमारे वजूद का सहज हिस्सा हैं।
क्या आप भारत में यही करना चाह रहे हैं?
मैं आपके देश कभी नहीं गई लेकिन मुझे भारतीय चीज़ें पसंद हैं, खासकर भारत का खाना। इसमें दिलचस्पी के चलते ही मैंने कुछ सूचनाएं जुटाई हैं और भारत के बारे में मेरी एक धारणा विकसित हुई है। मुझे लगता है कि भारत एक बेहद संस्कृति-संपन्न देश रहा है।
नाभिकीय ऊर्जा इस संस्कृति को तबाह कर देगी।
क्यों? क्योंकि यह लोगों की जिंदगियों को बरबाद कर देती है, जिसका संस्कृति के साथ चोली-दामन का साथ होता है।
फुकुशिमा में बिल्कुल यही तो हुआ है और मैं उसकी गवाह हूं। यह बात मैं आपसे पूरी ईमानदारी से कह रही हूं।
भारत के चमकदार भविष्य के लिए नाभिकीय ऊर्जा ज़रूरी नहीं है।
यदि आपको वाकई लगता है कि वह ज़रूरी है, तो आप फुकुशिमा आएं और यहां की हक़ीक़त को अपनी नंगी आंखों से खुद देख लें।
सादर,
युकिको ताकाहाशी