संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

मारूति मजदूरों के आन्दोलन पर सरकारी दमन

जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिये चल रहे संघर्षों में जिस तरह संघर्षरत जनता और
उनके समर्थकों को चुन-चुन कर पकड़ा जाता है या मार दिया जाता है उसी तर्ज
पर हरियाणा में भुपेन्द्र हुड्डा की सरकार शांति पूर्वक धरने पर बैठे मजदूरों को ही
नहीं बल्कि उनके परिवार तथा उन्हें समर्थन दे रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं और
बुद्धिजीवियों को भी चुन-चुन कर गिरफ्तार कर रही है। 
मारूति सुजुकी मजदूरों की दमनात्मक कार्यवाहियों को उद्घाटित करता सुनील कुमार  का महत्वपूर्ण आलेख;

मारूति सुजुकी मजदूरों के आन्दोलन को दो वर्ष होने वाले हैं। यूनियन बनाने का जो संविधान में कानूनी अधिकार दिया गया है मारूति सुजुकी के मजदूर उसके लिए मारूति सुजुकी प्रबंधन और श्रम विभाग से मांग करते आ रहे थे। जब उनकी बात को मारूति सुजुकी प्रबंधन और श्रम अधिकारियों ने अनसुना कर दिया तो मजदूरों ने अपने आखिरी हथियार हड़ताल का सहारा लिया। पहली बार मारूति सुजुकी के मजदूर 4 जून, 2011 को हड़ताल पर गये 13 दिनों के संघर्ष के बाद जब मारूति सुजुकी प्रबंधन और श्रम विभाग उनकी एकजुटता और मनोबल को नहीं तोड़ पाया तो आन्दोलनरत मजदूरों के साथ समझौता किया। मारूति सुजुकी प्रबंधन और श्रम विभाग द्वारा समझौते के उल्लंघन पर मजदूरों ने दुबारा 28 जुलाई, 2011 से 30 सितम्बर 2011 तक हड़ताल की। इतने लम्बी हड़ताल को तोड़ने के लिये प्रबंधन ने मुकु यूनियन (मारूति सुजुकी के गुड़गांव प्लांट का यूनियन जो मारूति सुजुकी प्रबंधन के इशारे पर चलता है) की मदद ली और मुकु के सहयोग से 30 अगस्त को मजदूरों से आधे अधूरे मन के साथ समझौता करा लिया। दबाव में कराये गये समझौते को भी प्रबंधन द्वारा नहीं माना गया और 3 अक्टूबर को प्रबंधन ने समझौते को तोड़ते हुए मजदूरों पर कार्रवाई की गई। मजदूरों ने कम्पनी के अन्दर ही 7 अक्टूबर को शांतिपूर्वक धरने पर बैठ गये, 15 अक्टूबर को भारी पुलिस बल बुलाकार मजदूरों से प्लांट को खाली कराया गया। प्लांट खाली कराने के बाद मजदूर बाहर धरने पर बैठ गये। 19 अक्टूबर को मारूति सुजुकी प्रबंधन, श्रम अधिकारियों द्वारा मजदूरों को गेस्ट हाउस में बुलाकर त्रिपक्षीय समझौते किये गये। मजूदरों के जुझारू तेवरों से घबराकर मारूति सुजुकी प्रबंधन ने 18 जुलाई को षड़यंत्र के तहत एक मजदूर को जाति सुचक गाली देकर निकाल दिया। मजदूरों के विरोध करने पर वार्ता के लिए यूनियन के पदाधिकारियों को बुलाया गया। वार्ता के बीच में ही प्रबंधन ने बाउन्सरों (गुंडों) को मजदूरों की वर्दी में बुला कर मार-पीट करना शुरू कर दिया और आगजनी की कार्रवाई करायी गई जिसमें एक एचआर मैनेजर की मृत्यु हो गई। इस घटना के सबूत को छिपाने के लिए सीसीटीवी के सभी फुटेज को बर्बाद कर दिया गया और मारूति के मजदूरों को झूठे केसों में फंसा कर जेलों में डाल दिया गया। 
18 जुलाई के षड़यंत्र के बाद 546 स्थायी तथा 1800 ठेका मजदूरों को नौकरी से निकाल दिया गया। मारूति सुजुकी द्वारा इस तरह के गैर कानूनी/संवैधानिक कारवाईयों (संविधान में पहले से ही मेहनतकश जनता के लिए बहुत कम अधिकार दिये गये हैं और इन संवैधानिक अधिकारों को लागू कराने के लिए भी शासक वर्ग से लड़ना पड़ता है) पर हरियाणा सरकार, केन्द्र सरकार भी मुहर लगा चुकी है। 18 जुलाई की घटना के बाद मारूति सुजुकी के मानेसर प्लांट को एक माह से अधिक समय तक के लिए बंद रखना पड़ा था जिसमें मारूति सुजुकी को 70 करोड़ रु. प्रति दिन का नुकसान होना बताया जा रहा है। 2013, जनवरी-मार्च के तिमाही में मारूति सुजुकी ने रिकॉर्ड मुनाफा 1147.5 करोड़ रु. कमाया। इस मुनाफे की नींव रखने वाले मजदूर जो कि 42 सेकेंड में एक कार तैयार कर देते हैं की हालत दयनीय होती जा रही है। इस घटना को 300 से अधिक दिन हो गये हैं उस समय से अभी तक 147 मजदूर जेल में अमानवीय जिन्दगी जी रहे हैं उनके परिवार कोर्ट का चक्कर लगा रहे हैं। मजदूरों के अधिकारों का दमन करने के लिए खुले रूप से हरियाणा सरकार केन्द्र सरकार एक साथ मारूति सुजुकी के साथ खड़ी है आज भी मारूति सुजुकी मजदूरों का उत्पीड़न जारी है। हरियाणा की हुडा सरकार ने मजूदरों के आन्दोलन को खत्म करने के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद सब कुछ अपना लिया है। जब मजदूरों की एकजुटता इससे भी कम नहीं हुई तो मानेसर प्लांट को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया और मजदूरों को आईपीसी की गंभीर धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया और 300 दिन बाद भी गवाहों की जान का खतरा मानकर जमानत नहीं दी जा रही है। मजदूरों के खिलाफ गवाही देने वालों का नाम और पते गुप्त रखे गये हैं और उनकी पहचान संख्या दी गई है और इसको बेस्ट बेकरी (गुजरात जनसंहार) केस केे गवाहों जैसे खतरा माना गया है।

मारूति सुजुकी के मजदूरों का आन्दोलन श्रम कानूनों को प्राप्त करने के लिए था, जिसमें वे यूनियन बनाने, ठेकेदार और अस्थायी मजदूरों को स्थायी करने के लिए आन्दोलन कर रहे थे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारतीय श्रम सम्मेलन के 45 वें उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि ‘‘न्यूनतम वेतन, पेंशन और श्रम कानून जैसे मुद्दों पर सरकार फिक्रमंद है। सेंट्रल ट्रेड यूनियनों की मांगों से सरकार को कोई असहमति नहीं हैं।’’  इन्हीं मुद्दों को लेकर सेंट्रल ट्रेड यूनियन ने फरवरी में दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल की थी। प्रधानमंत्री जिस बात को लेकर अपने को फिक्रमंद बता रहे हैं उसी बात के लिए मारूति सुजुकी के मजदूर लड़ रहे हैं जिसके कारण उनको जेल में डाल दिया गया है। लगभग 2500 मजदूरों को नौकरी से निकाल दिया गया और केन्द्र तथा हरियाणा सरकार इन सब अत्याचारों में शामिल रही। अगर सरकार फिक्रमंद है तो चुप्पी क्यों? मारूति सुजुकी के मजदूरों का दमन क्यों किया जा रहा है? क्या यह मनमोहन सिंह की दो मुंही बातें है जनता को भ्रमजाल में डालने के लिए? मनमोहन सिंह के नाक के नीचे दिल्ली के श्रमभवन पर मारूति सुजुकी मजदूरों पर हो रहे दमन के खिलाफ दिल्ली में नागरिक संगठनों, मानवाधिकार संगठनों, छात्र संगठनों, ट्रेड यूनियनों, बुद्धिजीवियों द्वारा किये गये प्रदर्शनों पर पार्लियामेंट थाने के एस.एच.ओ. द्वारा प्रदर्शनकारियों के साथ बदसूलकी की गई और धमकाया गया। एक सिपाही द्वारा प्रदर्शनकारियों पर बदसूलकी न करने पर एस.एच.ओ. द्वारा सिपाही को थप्पड़ मारा गया और एस.एच.ओ. पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। क्या भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को यह बात पता नहीं थी? मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल के ही गृह राज्य मंत्री द्वारा राज्य सभा में बयान दिया गया कि इन प्रदर्शन में माओवादियों का हाथ है।

मारूति सुजुकी मजदूरों का आन्दोलन नये चरण में

मारूति सुजुकी के मजदूरों ने अपनी एक स्वतंत्र यूनियन और स्थायी, अस्थायी, ठेकेदार मजदूर को आपस में जोड़कर जो आन्दोलन शुरू किया था उसको आगे बढ़ाते हुए किसानों को भी अपने साथ जोड़ने का काम किया है। 24 मार्च, 2013 से कैथल में मजदूर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गये जिसको आस-पास के गांव व व्यापारियों का समर्थन मिला। 28 मार्च से 4 मजदूर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गये। 3 अप्रैल को मुख्यमंत्री और उद्योग मंत्री ने मारूति सुजुकी मजदूरों को आश्वासन दिया कि मारूति प्रबंधन व श्रम विभाग को समस्या का शीघ्र समापन करने के निर्देश देंगे। इस आश्वासन के बाद मजदूरों ने भूख हड़ताल समाप्त कर दी। जिस तरह मारूति सुजुकी प्रबंधन द्वारा बार-बार मजदूरों से झूठे समझौते किये गये उसी तरह हरियाणा सरकार का आश्वासन भी झूठा रहा। एक भी मजदूर जेल से बाहर नहीं आये और न ही एक भी मजदूर को काम पर वापस बुलाया गया। मजदूरों ने 8 मई को आयुक्त कार्यालय के सामने प्रदर्शन और महापंचायत की जिसमें कई गांव के सरपंचों ने शिरकत की। इस महापंचायत में निर्णय हुआ कि सरकार अगर 10 दिन में मजदूरों की मांगों पर ध्यान नहीं देती तो 19 मई से उद्योगमंत्री के घर का घेराव किया जाएगा।

हरियाणा के हुड्डा साहब जो कि ‘संविधान और जनतंत्र’ (जो कि आम आदमी के लिए कभी लागू नहीं होता) की रक्षा का शपथ लेकर मुख्यमंत्री बने थे अपने शपथ को भूल गये और ओसामू सुजुकी (मारूती सुजुकी के मालिक) को दिये गये वचन को याद रखा कि उनकी कम्पनी को पूरा सुरक्षा दी जायेगी और कम्पनी पर किसी तरह का आंच नहीं आने दिया जायेगा। हुड्डा सरकार ओसामू सुजुकी के वचन को निभाते हुए 18 मई की रात 11.30 बजे सो रहे 100 मजदूरों और उनको समर्थन दे रहे लोगों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। 19 मई को जब मजदूर उनके परिवार व मजदूरों को समर्थन दे रहे लोग कैथल पहुंचे तो उन पर लाठी चार्ज, पानी की बौछार और आंसू गैस के गोले दागे गये। महिलाओं, बच्चों बुढ़ों को पुरुष पंुलिस कर्मियों द्वारा बुरी तरह से पीटा गया। झूठे केस बनाने के लिए पुलिस कर्मियों द्वारा अग्निशमन के गाड़ियों को तोड़ा गया। हजारों लोगों जिसमें महिलाएं, बच्चे बुढ़ों की संख्या काफी थी को गिरफ्तार कर इस लू भरी गर्मी में रात 9-10 बजे तक बसों में इधर से उधर घुमाते रहे। कैथल में बस स्टाप, सड़कों यहां तक की अस्पताल तक में जाकर लोगों को पकड़ा और पीटा गया, कैथल के सड़कों को पुलिस छावनी में बदल दिया गया था सड़कों पर जो भी मिला उसको पकड़ा गया। राम निवास जो कि मारूति सुजुकी ट्रेड यूनियन के पदाधिकारी हैं उन्हें खोज कर के पकड़ा गया, पकड़ने के बाद इतना पीटा गया कि वे बेहोश हो गये। नीतीश जो कि इस आन्दोलन में भी नहीं था वो अपने रिश्तेदार के घर जा रहा था उसको पकड़कर कर पीटा गया और आईपीसी की संगीन धराएं लगा दी गयी।

जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिये चल रहे संघर्ष में जिस तरह संघर्षरत जनता और उनके समर्थकों को चुन-चुन कर पकड़ा जाता है या मार दिया जाता है उसी तर्ज पर भुपेन्द्र हुड्डा की सरकार शांति पूर्वक धरने पर बैठे मजदूरों को ही नहीं बल्कि उनके परिवार तथा उन्हें समर्थन दे रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को भी चुन-चुन कर गिरफ्तार कर रही है। जैसा कि 18 मई को श्यामवीर और अमित को गिरफ्तार कर कैथल जेल भेज दिया गया अमित जेएनयू के शोधार्थी है। 19 मई को यूनियन के प्रमुख राम निवास, हिन्दुस्तान मोटर्स संग्रामी श्रमिक कर्मचारी यूनियन कोलकता के दीपक बक्शी, मजदूर अखबार श्रमिक शक्ति के संवाददाता सोमनाथ, हिसार के ग्राम पंचायत नेता सुरेश कोथ अपने रिश्तेदार के घर जा रहे नीतिश जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों को गिरफ्तार कर आई पी सी  की धारा 148, 149, 188, 283, 332, 353, 186, 341, 307, आर्म्स एक्ट (25) सम्पति की क्षति (पीडीपीपी ऐक्ट-3) में 11 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।

इस दमन के खिलाफ दिल्ली में 19 व 20 मई को सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, मानवाधिकार संगठन, छात्र संगठन, ट्रेड यूनियनों ने मिलकर हरियाणा भवन और हुड्डा के निवास 9 पंत मार्ग पर प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों में से 3 लोग जब भुपेन्द्र हुड्डा के आवास पर गये तो भुपेन्द्र हुड्डा का बयान बेहद गैर जिम्मेदराना, असंवेदनशील, सामंतों जैसा था। ‘‘तू कौन है, तू इन्कलाबी संगठन से है तो मैं महाइन्कलाबी हूं, यू गो, मैं तुम से बात नहीं करूंगा मैं मजदूरों का प्रतिनिधि हूं, मैं मारूती मजदूरों से बात करूंगा’’ कह कर चले गये और ज्ञापन की प्राप्ति प्रति (रिसिविंग कॉपी) बार-बार मांगने के बावजूद नहीं दी गयी। यह एक ‘लोकतांत्रिक’ देश के मुख्यमंत्री महोदय बोल रहे थे। यह भाषा जनतंत्र की हो सकती है या गिरोह तंत्र की? जिसे यह भी पता नहीं कि भारतीय संविधान भारत के हर नागरिक को शांति पूर्वक बात रखने का अधिकार देता है। क्या हम इसे लोकतंत्र कह सकते हैं? भूपेन्द्र हुड्डा जो कि हरियाणा सरकार के प्रतिनिधि हैं उन्होंने दिल्ली में आकर लोकतंत्र का मजाक बना दिया। जहां पर दुनिया का सबसे बड़े ‘लोकतंत्र’ के मंदिर (संसद, सुप्रीमकोर्ट, मानवाधिकार आयोग) हैं। हम अनुमान लगा सकते हैं कि वे हरियाणा में किस तरह का राज चलाते होंगे? यहां पर बोलते हैं कि मारूति के मजदूरों से बात करेंगे और जब मारूति मजदूर उनसे मिलने जाते हैं तो उनको भगा दिया जाता है गिरफ्तार कर लिया जाता है।


भारत का शासक वर्ग संविधान व जनतंत्र का गला घोंट कर, लूट तंत्र में लगे पूंजीतंत्र की रक्षा करने में लगा हुआ है। पूंजीपतियों की ज्यादा से ज्यादा चाकरी करने के लिए शासक वर्ग में होड़ मची हुई है जिससे कि लूट में से कुछ हिस्से उनको भी मिल सके। तथाकथित लोकतंत्र के मुखौट को भी उखाड़ कर फेंक दिया है और आये दिन उड़ीसा, केरल, छत्तिसगढ़, झारखंड और देश के अन्य भागों में फर्जी मुठभेड़ और फर्जी केस लगा कर लोगों के आन्दोलन को क्रूरता पूर्वक दबाया जा रहा है। एनसीआर में ही मजदूरों-किसानों पर रोज आये दिन जुल्म ढाये जा रहे हैं। नोएडा के अन्दर गर्जियानो, निप्पोन तथा फरवरी 2013 में हुए दो दिवसीय हड़ताल के दौरान सैकड़ों मजदूरों को आज भी जेल में रखा गया है उन मजदूरों की नौकरी छिन गई है उनके परिवार भूखों मरने के लिए मजबूर हैं। इसमें भगत सिंह का वो कथन और ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है- ‘‘अगर कोई सरकार जनता को उसके मूलभूत अधिकारों से वंचित रखती है तो जनता का न केवल अधिकार ही नहीं बल्कि आवश्यक कर्तव्य भी बन जाता है कि ऐसी सरकार को तबाह कर दे।’’ हमें भगत सिंह के इन शब्दों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ना होगा।

 (सुनील कुमार से sunilkumar102@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है )

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