संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

मध्य प्रदेश में पेसा कानून का क्रियान्वयन : जहाँ 25 साल बाद नियम तक नहीं बने !

मध्य प्रदेश के कुल भू -भाग का 22.07 प्रतिशत (68 हजार वर्ग किलोमीटर) अनुसूचित क्षेत्र है जो संविधान के अनुच्छेद 244(1) के तहत पांचवी अनुसूचि के अन्तर्गत वर्गीकृत है। इस क्षेत्र का विस्तार मध्यप्रदेश के 89 आदिवासी विकास खंडो में है। संविधान के भाग (10) के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों का प्रशासन स्थानीय आदिवासी समाज की सहमति से संचालित किया जाएगा।संविधान…
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मध्य प्रदेश सरकार बना रही 11 नए अभयारण्य : हजारों आदिवासियों पर विस्थापन का खतरा

मध्यप्रदेश का वन विभाग 11 नए अभयारण्य और रातापानी को टाईगर रिजर्व बनाने का प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा है। राज्य के…

आदिवासी क्षेत्र में कम्पनी के लिए भू- हस्तांतरण और संवैधानिक प्रावधान

भारत सरकार कानून 1935 की धारा 92 में प्रावधान था कि केन्द्र और राज्य कोई भी कानून पूर्णतः और आंशिक अपवर्जित(छोङा…

फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना के 10 वर्ष : सबक और सीख

जापान में 11 मार्च 2011 को आए भूकंप के बाद उठी विनाशकारी सुनामी लहरों की चपेट में फुकुशिमा परमाणु उर्जा संयत्र आ गया था। इसके बाद फुकुशिमा दायची परमाणु बिजली संयंत्र में रेडियोधर्म रिसाव हो गया था। इस हादसे में करीब 20 हजार लोगों की मौत हो गई थी। इससे फैले विकिरण से आस - पास के 20 किलोमीटर के इलाके प्रभावित है।लगभग 30 किलोमीटर इलाके को खाली करा कर…
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14 साल बाद : वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन की जमीनी हकीकत

वन अधिकार कानून 2006 के प्रस्तावना में उल्लेख है कि औपनिवेशिक काल के दौरान तथा स्वतंत्र भारत में राज्य वनों को समेकित करते समय उनकी पैतृक भूमि पर वन अधिकारों और उनके निवास को पर्याप्त रूप से मान्यता नहीं दी गई थी, जिसके परिणाम स्वरूप वन में निवास करने वाली उन अनुसूचीत जनजातियों और अन्य परम्परागत वन निवासियों के प्रति ऐतिहासिक अन्याय हुआ है, जो वन…
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किसानों की हाड़तोड़ मेहनत और सरकार की उदासीनता से बर्बाद होता आनाज

देश भर में इस साल 3 करोड 36 लाख हैक्टेयर में गेहूँ की बुआई हुईं थी। मध्यप्रदेश में इस साल 55 लाख हैक्टेयर से अधिक…

मध्य प्रदेश : ऊर्जा राजधानी सिंगरौली का स्याह सच

मध्य प्रदेश का सिंगरौली जिला विंध्य प्रदेश का महत्वपूर्ण क्षेत्र है। जहां हरिजन, आदिवासी की बहुलता वाली आबादी के…

‘विकास’ की वजह से विनाश की ओर जाता आदिवासी समुदाय : कान में तेल डालकर बैठी सरकारें

अब केवल विकास करते रहना ही जरूरी नहीं है, बल्कि अब विकास और विकास नीतियों की समीक्षा जरूरी है। 1986 मे संयुक्त राष्ट्र संघ ने विकास के अधिकार की उदघोषणा तैयार की, जिस पर भारत सहित अनेक राष्ट्रों ने हस्ताक्षर किए हैं। इस संधि के अनुसार विकास सभी नागरिकों का अधिकार है। विकास परियोजना के लिए तीन मापदंड निर्धारित किये गए हैं, (1) प्रभावित वयक्तियों की…
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