संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

कूडनकुलम में शुरू हुआ जल सत्याग्रह

11   सितम्बर 2011

आज सुबह से तीन हज़ार आम लोग कूडनकुलम में समुद्र के पानी में ‘जल सत्याग्रह’ कर रहे हैं। परमाणु रिएक्टर परियोजना को खुद पर थोपे जाने और इसके खिलाफ चल रहे आन्दोलन के कार्यकर्त्ताओं पर बर्बर पुलिसिया दमन के विरोध में महिलाएं, बच्चे और साधारण मछुआरे इस सत्याग्रह में हिस्सा ले रहे हैं।

उधर इस आन्दोलन के प्रमुख कार्यकर्त्ता एस. पी. उदयकुमार के परिवार को नागरकोइल में पुलिस द्वारा प्रताड़ित करने की खबर आई है।

इस दमन के खिलाफ और जनांदोलन के समर्थन में महाश्वेता देवी, अरुंधती राय, अरविंद केजरीवाल आदि  प्रमुख सामाजिक हस्तियाँ तथा कई मानवाधिकार संगठन खुलकर सामने आए हैं।

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11 सितम्बर 2011

कूडनकुलम में पिछले दो दिनों से निर्माणाधीन रिएक्टर के पूर्वी हिस्से के नज़दीक घेराव पर बैठे 20,000 से अधिक लोगों पर – जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे -कल दोपहर के बाद से वहशियाना पुलिसिया दमन शुरू हुआ जिसमें अबतक एक निर्दोष मछुआरे की जान जाने, कम-से-कम पचास लोगों के बुरी तरह घायल होने और आस-पास के गांवों में पुलिस द्वारा जबरदस्त कहर बरपाने की खबर आई है.आंदोलन का केन्द्र बने इडिंतकराई गाँव के चर्च को भी नुकसान पहुंचाया गया है.

कूडनकुलम में पिछले एक साल से आंदोलनरत हज़ारोंलोग आज भयावह उपेक्षा और दमन का सामना कर रहे हैं. कई स्वतंत्र वैज्ञानिकों, खुद सी.ए.जी. की रिपोर्ट और संसद की कमेटियों द्वारा देश में परमाणु ऊर्जा और इसके बिजलीघरों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल उठाने के बावजूद जहां एक तरफ सरकार इस रिएक्टर को शुरु करने पर आमादा है वहीं दूसरी ओर इस परियोजना को जबरदस्ती लोगों के गले उतारने के लिए नृशंस दमन का सहारा ले रही है.

आंदोलन की तीन प्रमुख महिला कार्यकर्त्ताओं को गिरफ्तार किया गया है. कूडनकुलम में दमन के खिलाफ देश के अनेक हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं. कल दिल्ली में तमिलनाडु भवन के सामने प्रदर्शन हुआ जिसमें प्रफुल्ल बिदवई, अचिन वनायक और दर्जनों लोगों ने हिस्सा लिया. चेन्नई के अलग-अलग-हिस्सों में प्रदर्शन और रेल रोकने की घटनाएं हुईं. केरल में भी कई जगह बड़ी संख्या में लोगों ने विरोध प्रदर्शित किया. कोलकाता और पुणे में भी सभा का आयोजन किया गया.

ज्ञात हो कि कूडनकुलम में 6,000 से अधिक लोग देशद्रोह और भारतीय राज्य के खिलाफ युद्ध छेडने जैसे मुकदमों में फंसाए गए हैं. आज़ादी के बाद देशद्रोह के मुकदमे इतनी बड़ी संख्या में इस शांतिपूर्ण आंदोलन के खिलाफ लगाए गए हैं, इससे ही यह पता चलता है कि आज की सरकार का  लोगों के जीवन व स्वास्थय, प्राकृतिक संसाधनों और उनकी जीविका तथा सुरक्षा को लेकर कोई भी सरोकार नहीं बचा है.

पुलिसिया दमन:

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