संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

मोदी सरकार के लूटतंत्र का एक और तमाशा : झूठ और फर्जीबाड़े के दम पर छीन ली छत्तसीगढ़ के आदिवासियों की सैकड़ों एकड़ जमीन



मोदी सरकार के सत्ता में आते ही पूरे देश में जैसे जमीन की लूट मच गई है। जिस तरफ देखें वहीं किसानों आदिवासियों की जमीन धोखे-फरेब-लालच दे कर उनसे छीन कर प्रभुत्वशाली वर्ग को सौंपा जा रहा है। यहां गौरतलब यह है कि यह लूट सिर्फ बड़े कॉर्पोरेट या उद्यमों के लिए नहीं है, बल्कि मध्यम तथा छोटे उद्योगों तथा फर्म मालिकों को भी प्रशासन किसी भी कीमत पर जमीनें छीन कर सौंप रहा है। बल्कि संक्षेप में कहे तो जो कोई भी पैसे लेकर सरकार से जमीन मांग रहा है सरकार उसे हर कीमत पर जमीन दिलवा रही है। भोले-भाले आदिवासियों को बेवकूफ बनाकर या फिर जबरन दमन का सहारा लेकर उनकी जमीनों से उन्हें बेदखल किया जा रहा है। ऐसा ही एक उदाहरण छत्तसीगढ़ के छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जिला रायगढ़ की तहसील खरसिया के ग्राम कुनकुनी में देखने को आया है जहां आदिवसियों की सैकड़ो एकड़ जमीन सुनुयोजित षड्यंत्र के तहत सप्तऋषि इंफ्रास्ट्रक्चर के मालिक संतोष गौतम को सौंप दी गई। इसमें खास बात यह है कि सप्तऋषि  इंफ्रास्ट्रक्चर फर्म का कोई दस्तावेज जमीनों की रजिस्ट्री के समय नहीं लगाया गया। पूरी तरह से झूठ और धोखेधड़ी के आधार पर किए गए इस भू-अर्जन पर सवाल उठे तो पूरा प्रशासन उसे बचाने के लिए लीपा-पोती में जुट गया। आइए छत्तीसगढ़ के जनचेतना संगठन से रमेश अग्रवाल की इस रिपोर्ट के जरिए देखें कि कैसे संतोष गौतम को बचाने के लिए प्रशासन द्वारा दी गई दलीलें किसी भी तर्कशील व्यक्ति के लिए पचा पाना कितना मुश्किल हैः

छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जिला रायगढ़ की तहसील खरसिया के ग्राम कुनकुनी में आदिवसियों की सैकड़ो एकड़ जमीन सुनुयोजित षड्यंत्र के तहत सफेदपोश रसूखदारों द्वारा हड़प ली गई | मिडिया में मामला सामने आने पर रायगढ़ जिला प्रशासन द्वारा जाँच समिति बनाई गई जिसने गुनहगारों को बचाने लीपापोती कर जाँच प्रतिवेदन कलेक्टर को सौंप दिया |

जाँच रिपोर्ट में बताया गया कि संतोष गौतम भागीदार सप्तऋषि  इंफ्रास्ट्रक्चर ने अपने फर्म के नाम पर आदिवासीयों की लगभग ३० हेक्टेयर जमीन क्रय की | सप्तऋषि  इंफ्रास्ट्रक्चर फर्म का कोई दस्तावेज जमीनों की रजिस्ट्री के समय नहीं लगाया गया | तहसीलदार कोटा जिला बिलासपुर के अनुसार संतोष गौतम की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और न ही उसके नाम से कोई अचल सम्पति है | संतोष गौतम ने २०१० से २०१४ के दरम्यान लगभग दो करोड़ बीस लाख रूपये की जमीन खरीदी की | लेकिन २०१० से २०१२ की आमदनी नहीं बताई गई | तो फिर यह रकम सप्तऋषि  इंफ्रास्ट्रक्चर ने लगाई हो सकती है | लेकिन फर्म की २०११-१२ से २०१५-१६ की आयकर विवरणी में इसका कोई उल्लेख नहीं है | २०११-१२ की आयकर विवरणी में मात्र तीस लाख पचास हजार की पूंजी जरुर बताई गई है लेकिन बाद के वर्षो में न तो यह पूंजी है और न कभी आयकर पटाया गया |

सप्तऋषि इंफ्रास्ट्रक्चर फ़र्म १ जून २०१० में बनाई गई | इसके पार्टनर थे संतोष गौतम औरगैलेक्सी पावमेंट प्रा.लिमिटेड | दोनों ५०-५० परसेंट के भागीदार | लेकिन फर्म का रजिस्ट्रेशन करवाया गया ३०.१०.२०११ को | रजिस्ट्रेशन के समय संतोष गौतम और गैलेक्सी पावमेंट प्रा.लिमिटेड की तरफ से डायरेक्टर नितीन अग्रवाल ने हस्ताक्षर किये | गैलेक्सी पावमेंट ने वर्ष २०१४ में करीब सत्तर लाख का लोन सप्तऋषि  इंफ्रास्ट्रक्चर को देना बताया गया है लेकिन मालूम नही क्यों ये लोन फर्म की आयकर विवरणी में दिखाई नहीं देता | गैलेक्सी पावमेंट के सबसे ज्यादा दो लाख पचास हजार शेयर हिन्द एनर्जी एंड कोल बेनिफिकेसन के पास तो बाकी के एक एक लाख शेयर नितिन अग्रवाल और अरुण सोनी के पास थे | कहा जा सकता है कि गैलेक्सी पावमेंट और सप्तऋषि  इंफ्रास्ट्रक्चर का कंट्रोल हिन्द एनर्जी के पास ही था | पूरे घोटाले में हिन्द एनर्जी का हाथ था या नहीं ये तो उच्चस्तरीय जाँच में ही खुलासा हो सकता है|

संतोष गौतम और सप्तऋषि इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम से जो जमीन खरीदी गई उसमे से कुछ जमीन रेल लाइन के लिये भूअर्जन में चली गई | ताजुब की बात है कि सप्तऋषि  इंफ्रास्ट्रक्चर की जमीन का भुगतान भी संतोष गौतम को कर दिया गया | यही नहीं जो दो एकड़ जमीन संतोष गौतम ने २०१० में २,४९,००० में खरीदी थी वही जमीन ६,४२,००० में मनीष बन्सैया के पार्टनर संतराम को बेच दी |

घसियाराम राठिया, गिरधारी प्रसाद, बिरहस बाई, अनुज राम , चमरा, रामलाल, रोहित, मयाराम, अमर सिंह, ड्रायवर सिंह, पोखराजइत्यादी सभी ने अपने बयान में बताया है कि वो संतोष गौतम को नहीं जानते और रजिस्ट्री के वक्त वह मौजूद नहीं था | उनको जो भी पैसा मिला है वो किन्ही दलालों ने दिया है | यह भी बताया गया कि भूअर्जन के पहले ही रेल लाइन का काम शुरू हो चूका था |

अनुजराम आ. मयाराम का कहना है कि ६.२५ एकड़ जमीन का सौदा अशोक अग्रवाल पिता गजानंद अग्रवाल खरसिया के साथ हुआ था | बैंक ऑफ़ बड़ोदा रायगढ़  के ६० लाख से ऊपर के चेक दिये गये जिन पर  किसी लुकेश्वर के  हस्ताक्षर थे लेकिन सभी चेक बाउंस हो गये | विदित हो कि इसी बैंक से फर्म मनीष बन्सैनिया की और से अशोक अग्रवाल द्वारा हस्ताक्षर कियेलगभग  आठ करोड़ के चेक द्वारा शासन कोभुगतानकिया गया था |
०७.०८.२०१५ को सचिव छ.ग.शासन को प्रेषित अपने पत्र में कलेक्टर ने लिखा है किवेदांता कोल वाशरी को भू-अर्जन के माध्यम से ७३.५१ एकड़ जमीन दी गई है एवं इस कोल वाशरी को लाभ पहुँचाने की नियत से आदिवासियों की जमीनमनीष बनसैया, सप्तऋषि इंफ्रास्ट्रक्चरइत्यादि द्वारा बिना आदिवासी जाति प्रमाण पत्र, छलपूर्वकएवं बेनामी अंतरण क्रय किया गया है | पटवारी से लेकर एसडीएम स्तर तक के अधिकारियों कर्मचारियों को दोषी पाया गया |

सवाल है कि जब प्रशासन मानता है कि आदिवासियों की जमीन धोखाधड़ी-छलपूर्वक बेनामीअंतरणद्वाराखरीदी गई हैतो संबंधितो के विरुद्ध शेड्यूलकास्टएंड शेड्यूलट्राइब्स ( प्रेवेंसन ऑफ़ एट्रोसिटीज ) एक्ट, बेनामी ट्रांस्जेक्सन एक्ट व प्रेवेंसन ऑफ़ करप्सन एक्ट इत्यादि के तहत कार्यवाही होनी चाहिये थी |भू-अर्जन निरस्त कर आदिवसियों को उनकी जमीन वापसदी जानी चाहिये |

कुनकुनी का ये घोटाला तो मात्र एक उदहारण है | पूरे रायगढ़ जिले में खासकर ओद्योगिक ब्लाकों खरसिया, रायगढ़, घरघोड़ा और तमनार में ऐसे मामले भरे पड़े हैं जिनके पीछे जिंदल, शारडा, मोनेट, टीआरएन जैसे बड़े औद्योगिक घरानों का हाथ है | मामलेमें जब तार प्रदेश के रसूखदार मंत्री केपरिवार से जुड़े हो तोजरुरी है कि पूरे मामले की जाँच सीबीआई को सौंप दीजाये|
रमेश अग्रवाल
जन चेतना, रायगढ़ (छ.ग.)
मो. ९३०१०११०२२

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