संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

भीम यात्रा : रोम के गुलामों की तरह निचोड़ा जा रहा है सफाई कर्मचारियों का खून

125 दिनों में देश के 5 राज्यों के 30 जिलों से होते हुए भीम यात्रा 12 अप्रैल को दिल्ली पहुंची। सफाई कर्मचारी आंदोलन द्वारा शुरु की गई यह यात्रा देश भर में सीवर की सफाई के दौरान होने वाली मौतों के विरोध में निकाली गई। यात्रा की सरकार से मांग है कि सूखे शौचालयों, सीवर और सेप्टिक टैंकों की मनुष्यों द्वारा सफाई बंद करवाई जाए। सर पर मैला ढोने वाली आबादी दलित है। 27 मार्च 2014 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए एक फैसले में सर पर मैला ढोने की प्रथा को अवैध करार दिया गया था किंतु सफाई कर्मचारी आंदोलन के अनुसार इस निर्णय के बाद से अब तक सीवर और सेप्टिक टैंकों में करीब 1327 मौतें हो चुकी हैं। इस यात्रा की शुरुआत 10 दिसंबर 2015, अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के दिन दिल्ली से हुई थी और इसका समापन 13 अप्रैल 2016 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुआ।
सफाई कर्मचारियों की  पीड़ा को उजागर करता  15 अप्रैल 2014 (स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर) को  प्रकाशित कानपुर शहर के सफाई कर्मचारियों का पर्चा;

हेल्थ मैनुअल के अनुसार दस हजार की आबादी में 28 सफाई कर्मचारी नियमित सेवा में होने चाहिये। मौजूदा समय में कानपुर की आबादी 50 लाख से भी ऊपर है। आबादी के अनुसार कानपुर शहर में वर्तमान में 14,000 सफाई कर्मचारी होने चाहिये पर हैं माच 2800 नियमित कर्मचारी, 1800 संविदा (चयनित) 815 (अचयनित) तथा 315 सीवर सफाई कर्मी कार्यरत हैं। शहर कानपुर में लगभग 9000 नियमित सफाई कर्मचारियों की आवश्यकता है। इसलिये शहर की गंदगी के लिये दोषी विभाग तथ शासन प्रशासन है ना कि सफाई कर्मचारी। यदि शहर को सा!-सुथरा, प्रदूषण मुक्त, कूड़े के ढेर, बजबजाती नालियों से मुक्त रखना है तो सफाई कर्मियों की भर्ती की मांग शहर वासियों को जोर-शोर से उठानी चाहिये। मात्र 5730 सफाई कर्मियों से 14000 कर्मचारियों का काम लिया जाना भयंकर शोषण का प्रतीक है।
जबकि यह कानून है कि नियमित सेवा का कार्य संविदा अथवा ठेका कर्मियों से नहीं लिया जा सकता। नगर निगम के आय के समस्त स्रोत सफाई व्यवस्था पर आधारित हैं। सफाई व्यवस्था के बल पर ही नगर निगम भवन, भूमि, बाजार, पार्क, विज्ञापन, स्टैण्ड आदि तरह के कर जनता से नियमित वसूलती है। इसलिये जनता का अधिकार है कि उसे सफाई व्यवस्था नियमित मिलनी चािहये। पर ऐसा कैसे हो सकता है जबकि कर्मचारियों की संख्या घटाई जा रही है। अधिकारी, ठेकेदार बढ़ते जा रहे हैं, कूड़े अड्डे खत्म होते जा रहे हैं, नालियां तथा जालियां अवैध कब्जा कर पाटी जा रही हैं। रोम के गुलामों की तरह सफाई कर्मचारियों का खून निचोड़ा जा रहा है।
जबरिया उनके अद्धे नागे लगा उनका वेतन काटा जा रहा है । उस कटौती का कोई हिसाब-किताब नहीं है। उनके फण्ड में भी धांधली हो रही है। उन्हें C.L..
E.L तथा M.L.  छुट्टियों के साथ ही साप्ताहिक रेस्ट भी नहीं मिल रहे हैं। वो कभी अपने हक अन्याय की आवाज न उठा सकें। इसलिये उन्हें जानवर की तरह रौंधा जारहा है। गुलामी का जुआ बैलें की तरह जबरिया उनके गंधों पर लादा जा रहा है। भूसे से तेल निचोड़ा जारहा है। पूरा शहर साफ कैसे रह सकता, जब पूरे कर्मचारी ही नहीं हैं। दो-तिहाई शहर तो गंदा ही बना रहेगा। आओ उनके बारे में सोचें जो आजादी के बाद भी आज तलक गुलाम हैं।

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