संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

फुकुशिमा अब और नहीं : भारत-जापान परमाणु समझौते का विरोध करें !

जापान के प्रधानमंत्री श्री शिंज़ो आबे की आगामी भारत-यात्रा के दौरान परमाणु डील होने की खबर है जिसका भारत और जापान दोनों देशों में आम लोग विरोध में उतर चुके हैं. जापान के फुकुशिमा में परमाणु दुर्घटना थमने के आसार नज़र नहीं आ रहे फिर भी जापानी कंपनियों के फायदे के  लिए वहाँ की सरकार दूसरे देशों को परमाणु तकनीक निर्यात करने पर आमादा है, जिसका जापानी नागरिक विरोध कर रहे हैं. इस डील के पास होने के बाद भारत में जैतापुर, मीठीविर्दी और कोवाडा जैसी जगहों में किसान और मछुआरों की ज़िंदगियाँ तबाह होंगी, जिनके इलाके में ये आयातित परमाणु प्लांट लगने  हैं. इसीलिए इन इलाकों में लोगों ने शिंजो आबे की यात्रा के विरोध में प्रदर्शन और जेल भरो आंदोलन की घोषणा कर दी है. पिछले साल जनवरी में भी जापानी प्रधानमंत्री की यात्रा के समय भारत में इस डील को लेकर भारी विरोध हुआ था और डील साइन नहीं हो पाई थी.


अंगरेजी में इस मुद्दे पर एक अंतर्राष्ट्रीय अपील जारी की जा रही है जिस पर पांच सौ से अधिक लोग हस्ताक्षर कर चुके हैं. आपसे अनुरोध है कि आप भी यहां पर अपना विरोध दर्ज़ करें।

प्रति,

श्री शिंजो आबे,
प्रधानमंत्री, जापान

हम प्रस्तावित भारत-जापान परमाणु समझौते का पुरज़ोर विरोध करते हैं, जिसके आपकी ११-१३ दिसंबर को होने वाली भारत यात्रा के दौरान पारित होने की सूचना है. यह समझौता, फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना की त्रासदी लगातार गहराते जाने के बावजूद, जापानी प्रधानमंत्री की परमाणु लॉबी का अंध-समर्थन करने का परिचायक है और इस करार से फुकुशिमा के बाद उस परमाणु उद्योग को भारत में जीवनदान मिलेगा जिसका मुनाफ़ा अंतर्राष्ट्रीय जगत में न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया है.

साल दर साल ऊर्जा के हरित एवं नवीकरणीय स्रोतों के लगातार सस्ते और सुलभ होते जाने के बीच, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु लॉबी भारत जैसे देशों को नए के रूप देख रही है, जहां वे अपने नुकसान की भरपाई कर सकते हैं. प्रस्तावित परमाणु प्लांटों के नजदीक रहने वाले स्थानीय समुदायों द्वारा अपनी आजीविका और जीवन बचाने के लिए लंबे अहिंसक विरोध के बावजूद भारत को अरेवा, जीई, वेस्टिंगहाउस, एटम्सरॉयएक्सपोर्ट, हिताची, तोशिबा और मित्सुबिशी जैसी विदेशी कंपनियों के खेल का मैदान बना दिया गया है. भारत को परमाणु तकनीक बेचकर जापान दरअसल भारतीय आमजन के उन लोकतांत्रिक अधिकारों को कमज़ोर करेगा जिनके तहत वे अपने भविष्य और अपने आस-पास के पर्यावरण को अपने मुताबिक़ संभालने का हक़ रखते हैं.

इस परमाणु समझौते के निहितार्थ वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए भी खतरनाक हैं. इस करार से भारत के परमाणु हथियारों को वैधता हासिल होती है और उन अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन होता है जिनके तहत बम बनाने वाले और परमाणु अप्रसार को गंभीरता से न लेने वाले देशों को तकनीक की आपूर्ति पर रोक लगाई जाती है. ऐसा होना हिरोशिमा और नागासाकी पर बमबारी और विध्वंस के इस सत्तरवें साल में और ज़्यादा दुर्भाग्यपूर्ण है. भारत द्वारा परमाणु बाज़ार खोलने और अपनी विदेशनीति को उनके अनुकूल बनाने के बदले के परमाणु-बम वाले राष्ट्रों के क्लब का विस्तार करने वाले इस तरह के करारों की बजाय परमाणु बम-संपन्न देशों को यथाशीघ्र दुनिया भर से परमाणु हथियारों को ख़त्म करने की मुहिम चलानी चाहिए। पहले से ही लचर परमाणु अप्रसार संधि(एनपीटी) की व्यवस्था को और कमज़ोर करने की इस कवायद का हिरोशिमा और नागासाकी के बुज़ुर्गों ने विरोध किया है. यह निराशाजनक है कि  जापानी सरकार लम्बे समय से चली आ रही परमाणु निरस्त्रीकरण को लेकर लम्बे समय से चली आ रही अपनी प्रतिबद्धता को पीछे छोड़ रही है.

हम यह मांग करते कि जापान की सरकार को भारत को परमाणु तकनीक की आपूर्ति करने वाली इस संधि को आगे बढ़ाना चाहिए और फुकुशिमा के बाद अन्य देशों को भी परमाणु निर्यात बंद कर देना चाहिए। अपने भयावह अंतर्राष्ट्रीय प्रभावों और भारत की जनता पर खतरनाक और पर्यावरण-विरोधी अणुऊर्जा प्रसार को थोपने वाले इस परमाणु समझौते की बातचीत को रद्द किया जाए.

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