संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की जान ही नहीं जमीन भी असुरक्षित है

हम लंबे समय से छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के सुरक्षा बलों द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न की चर्चा करते आए हैं। फर्जी मुठभेड़ों, बलात्कार और दमन के शिकार इन आदिवासियों के साथ एक और अन्याय हाल ही में प्रकाश में आया है जहां रायगढ़ जिले के घरघोड़ा विकासखंड की तीन ग्राम पंचायतों के 200 आदिवासियों की करीब 800 एकड़ जमीन षड़यंत्रपूर्वक हड़प ली गई है। और अन्य सभी मामलों की तरह इसमें भी प्रशासन किसी भी तरह की कोई सुनवाई करने को राजी नहीं है। हम यहां पर इस अत्याचार पर  विनय पाण्डेय  की रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहे हैं किंतु इस रिपोर्ट के साथ ही हमारे सामने यह भी प्रश्न है कि आखिर इन आदिवासियों के हक अधिकारों का हनन कब तक चलता रहेगा ?

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के घरघोड़ा विकासखंड की तीन ग्राम पंचायतों के करीब 800 एकड़ आदिवासियों की जमीनों को षड़यंत्रपूर्वक हड़प ली गई है। मामले में अधिकारियों को कार्रवाई के लिए पीड़ित किसानों ने आवेदन भी दिया, लेकिन अधिकारी कार्रवाई करने तैयार नहीं हैं।

घरघोड़ा विकासखंड के टेंडानवापारा, खोखराआमा और भेंगारी के करीब 200 आदिवासी किसानों की जमीनों को षड़यंत्रपूर्वक बेनामी रजिस्ट्री कराकर उसका नामांतरण करवा लिया गया। नवापारा और खोखरो आमा के 45 आदिवासी किसानों ने संयुक्त रूप से घरघोड़ा एसडीएम को आवेदन देकर उनकी रजिस्ट्री निरस्त करने की मांग कर चुके हैं, पर अधिकारियों से अब तक कार्रवाई की कोई पहल नहीं हुई है। कहा जा रहा है कि एक कंपनी के लिए उनके दलालों ने यह कारनामा किया है और अब अधिकारी उनके दबाव में कार्रवाई करने को तैयार नहीं हैं।


रजिस्ट्री में जाति प्रमाण पत्र नहीं

किसानों ने आवेदन में जो शिकायत की है उनके अनुसार रजिस्ट्री के कागजात में उन लोगों के जाति प्रमाण पत्र संलग्न नहीं किए गए हैं, जिनके नाम जमीन खरीदी की गई है। कई ऐसे लोग भी हैं जिनका पता पंजीयक कार्यालय में दर्ज हैं, वहां वह पर उपलब्ध नहीं हैं। इससे पहले कलेक्टर मुकेश बंसल ने जिले के सभी आदिवासी जमीनों के अंतरण पर रोक लगाकर उसकी जांच के निर्देश दिए थे, लेकिन यह मामला उस समय सूचीबद्घ नहीं हो सका। कहा जा रहा है कि चूंकि मामला एक कंपनी से जुड़ा है, इसलिए स्थानीय अधिकारियों ने चालाकीपूर्वक इनको कलेक्टर के संज्ञान में आने ही नहीं दिया।

खरीददार गेवरा के

स्थानीय आदिवासी के नाम पर कई रजिस्ट्री कराई गई, लेकिन ज्यादातर आदिवासी जमीन के खरीददार कोरबा स्थित गेवरा के रहने वाले हैं। कोरबा के कई खरीददारों के नाम के आगे जाति का उल्लेख नहीं है। कहा यह भी जाता है कि गेवरा के जिन लोगों के नाम से जमीन खरीदी गई, उनमें से अधिकतर मध्यप्रदेश के रहने वाले हैं। यदि गेवरा के किसी आदिवासी किसान ने जमीन की खरीददारी की है तो उसकी जमीन पर गैर आदिवासी कैसे काबिज है। यही नहीं इन जमीनों में ज्यादातर का उपयोग नहीं हो रहा, ऐसे में सवाल उठता है कि यहां के आदिवासियों की जमीन की बेनामी खरीदी किसके इशारे पर की गई।

तीसरे शनिवार और रविवार को भी हुई रजिस्ट्री

जिन 45 लोगों के नाम पर रजिस्ट्री की गई है उनमें दो रजिस्ट्री तीसरे शनिवार व एक की रजिस्ट्री रविवार को सरकारी छुट्टी के दिन की गई है। पीड़ित आदिवासी किसानों से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि उन्होंने रजिस्ट्री किसी के घर में जाकर की है वहां कोई रजिस्ट्रार नहीं था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या किसी के घर में जाकर एक दिन में 20 से 25 रजिस्ट्री की जा सकती है?


अनुसूची पांच अंतर्गत आता है विकासखंड घरघोड़ा

घरघोड़ा विकासखंड चूंकि अनुसूचित जनजातिय विकासखंड है, इसलिए पेसा एक्ट तहत यहां बिना ग्राम सभा इतनी भारी मात्रा में आदिवासी जमीनों की खरीद बिक्री नहीं हो सकती और ना ही बिना ग्राम सभा के प्रस्ताव के निर्माण किया जा सकता है। लेकिन इन पंचायतों में सरपंचों की भी जमीन की रजिस्ट्री कर दी गई और उसका नामांतरण भी हो गया।


कई मामलों पर चला प्रकरण

घरघोड़ा क्षेत्र चूंकि अनुसूची पांच अंतर्गत है इसलिए यहां पर 170 ख के कई मामलों पर प्रकरण बनाया गया है और कई आदिवासियों की जमीन वापस की गई है। लेकिन इन मामलों में प्रशासन क्यों भटक जाता है, इसका कारण समझ से परे है। हालांकि अधिकारी मानते हैं कि यहां गड़बड़ी हुई है और कार्रवाई का आश्वासन दिया जाता है परंतु आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।

मामला जाएगा हाईकोर्ट

मामले में स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता डिग्री चौहान ने बताया कि वह मामले को लेकर हाईकोर्ट जाएंगे और अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम की धारा 3 तहत मामले में अपराधिक प्रकरण दर्ज किए जाने के लिए कोर्ट से निवेदन करेंगे। उन्होंने कहा कि यदि किसी अधिकारी को यह ज्ञात हो जाए कि आदिवासियों पर अत्याचार हुआ है तो उन्हें 3 माह में कार्रवाई का प्रावधान है परंतु कई माह बीतने के बाद भी चूंकि अधिकारी कार्रवाई को तैयार नहीं हैं, इसलिए उन्हें भी हमें आरोपी बनाना होगा।

यह मामला हमारे संज्ञान में आया है, इस पर हमने पटवारियों को परिशिष्ट ई देने कहा है। पटवारियों के प्रतिवेदन के बाद प्रथम दृष्टया यह पाया जाता है कि किसी कंपनी या गैर आदिवासी की जमीन पर कब्जा है तो हम 170 ख का मामला दर्ज करेंगे।

विनीत नंदनवार
एसडीएम, घरघोड़ा
मामले में दीवानी की बजाए अपराधिक मामला चलाया जाना चाहिए। आदिवासियों पर यह अत्याचार किए जाने की श्रेणी में आता है। यदि यहां कार्रवाई नहीं हुई तो हम इसे हाईकोर्ट जाएंगे।

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