संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

झारखण्ड में सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधनों के विरोध में जन संगठनों का जंतर मंतर पर प्रदर्शन

नई दिल्ली, 10 दिसम्बर 2016; झारखंड में सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधनों के विरोध में सीएनटी/एसपीटी एक्ट बचाओ आंदोलन, दिल्ली चेप्टर के बैनर तले आज जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया।

मोदी सरकार ने केंद्र में आने के तुरंत बाद से ही अपना कॉर्पोरेट समर्थक चरित्र साफ करना शुरु कर दिया था। देश में देशी-विदेशी कॉर्पोरेट के मुनाफे को बढ़ाने की राह में अब तक सबसे बड़ी अड़चन इस देश का संविधान बन रहा था जिसमें इस देश की आम मेहनतकश किसानों, आदिवासियों, मजदूरों इत्यादि के हक में तमाम तरह के कानून थे। पहले की भी सरकारों ने इन कानूनों का उल्लंघन कर कॉर्पोरेट ताकतों का ही साथ दिया था किंतु इन कानूनों की वजह से कॉर्पोरेट्स का काफी समय और ताकत बर्बाद हो रही थी जिसका सीधा अर्थ होता है मुनाफे का प्रभावित होना। अतः जब 2014 में मोदी सरकार आई तो उसने अपनी कॉर्पोरेट पक्षधरता को और दृढ़ दिखाने के लिए सीधे-सीधे इन कानूनों में ही परिवर्तन करना शुरु कर दिया। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। फिर वह चाहे पर्यावर्णीय कानून हो या फिर केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण अध्यादेश। हर संशोधन ने प्राकृतिक संसाधनों की लूट को और उत्तरोत्तर सुगम ही बनाया।

इसी क्रम में अब नम्बर आया झारखंड में आदिवासियों की भूमि सुरक्षा के लिए बना कानून छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी), 1908 तथा संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी),1908। यह दोनों ही कानून एक सदी से भी ज्यादा समय से झारखंड के स्थानीय निवासियों तथा आदिवासियों की जमीनों को बाहरी लोगों से सुरक्षित रखा था। हालांकि इस नियम के तहत भी कॉर्पोरेट्स को जमीन को सौंपी जा रही थी लेकिन इसके लिए प्रशासन समेत इन कॉर्पोरेट्स को खासी मशक्कत करनी पड़ती थी।

23 नवंबर 2016 को झारखंड राज्य सरकार ने इन दोनों ही कानूनों में संशोधनों को मंजूरी दे दी। सीएनटी की धारा-21, धारा-49 (1), धाया 49 (2) व धारा-71 (ए) में संशोधन किया गया है। धारा 21 में संशोधन के पश्चात गैर-कृषि भूमि को बेचा सकता है। इन विनियमों के लिए नियम बनाने का तथा भूमि अधिसूचित करने का अधिकार राज्य सरकार के पास है। अब सरकार के पास करने के लिए सिर्फ यह रह गया है कि वह किसी भी भूमि को गैर-कृषि भूमि घोषित कर दे। जो पहले भी बड़े आराम से होता आया है। राजस्थान में खड़ी फसल की भूमि को कागजों में बंजर घोषित कर दिया गया था।

धारा 49 (1) धाया 49 (1) में कहा गया है कि कोई भी जोत या जमीन मालिक सरकारी प्रयोजन हेतु सामाजिक, विकासोन्मुखी एवं जनकल्याणकारी आधारभूत संरचनाओं के लिए अधिसूचित की जानेवाली परियोजनाओं के लिए जमीन हस्तांतरित कर सकेंगे। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में टाटा द्वारा अधिग्रहित जमीन की वापसी का आदेश देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने खुद “सरकारी प्रायोजन” शब्द के संदर्भों पर सवाल उठाए थे।

एसपीटी की धारा 13 में हुए संशोधन भी राज्य सरकार को यह अधिकार देते हैं कि वह गैर-कृषि भूमि को अधिसूचित करे तथा उसके विनिमय के लिए नियम बनाए।

हम सभी इस बात को भली-भांति जानते हैं कि यह तमाम संशोधन कॉर्पोरेट के मुनाफे को सुगम बनाने के लिए ही किया जाता है। आज जरूरत है कि इन संशोधनों के खिलाफ लड़ रही झारखंड की जनता के संघर्ष को और मजबूत किया जाए।

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