संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

जेल से दयामनी बारला की चिठ्ठी

आप सबों को जोहार,

मैंने झारखंड की धरती को कभी धोखा नहीं दिया. झारखंड की जनता के सवालों से कभी समझौता नहीं किया. कोयल नदी, कारो नदी और छाता नदी का बहता पानी इसका साक्षी है. इस धरती के मिट्टी-बालू में अंगुलियों से लिखना सीखा. कारो नदी के तट में बकरी चराते-नदी के पानी में डुबकी लगा कर नहाते तैरना सीखा. आकाश के ओस के बूंदों से नहाये घास-फूस और पेड़-पौधों की छाया ने मुझे प्यार दिया – इसका कैसे सौदा कर सकती हूं?

जिस समाज ने मुझे जीना सिखाया, उस समाज के दु:ख दर्द का साथी अपने को कैसे नहीं बनाती? इनके हक-हुकूक-जज्बातों की रक्षा करना भी हमारी (सबों की) जिम्मेवारी है. और जिम्मेवारी निभानेवालों के लिए शायद यही रास्ता है. इनके हिस्से सिर्फ संकट और परेशानी ही लिखी हुई है, यही जिंदगी का सच है. 


मैंने तो सरकार को बताने की कोशिश की थी कि आपका सिस्टम अपने नागरिकों के प्रति-अपनी जिम्मेवारी का निर्वहन नहीं कर रहा है. रोजगार गारंटी योजना के तहत ग्रामीणों का पलायन रोकने के लिए ग्रामीण इलाकों में ही 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराना है, जिसके लिए अनगड़ा के ग्रामीणों ने जॉब कार्ड मांगने के लिए रैली की. उन पर केस हुआ. उस आंदोलन में मेरे साथ कई साथी उपस्थित थे. सर्वविदित है मनरेगा योजना के घोटाला के बारे में. सच्चाई यही है कि ग्रामीणों को कुछ भी नहीं मिला. लेकिन, हक मांगनेवाले अपराधी करार दिये गये हैं. मैं जेल पहुंच गयी.

नगड़ी में सरकार गलत तरीके से नियम-कानून को ताक पर रख कर 227 एकड़ कृषि भूमि पर कब्जा कर रही है. सरकार को बताने की कोशिश की कि आप गलत कर रहे हैं. कानून और मानवता के आधार पर. खेती की जमीन छोड़ दीजिए और बंजर भूमि पर लॉ कॉलेज और आइआइएम बनाइए, आप का स्वागत है. हमार गुनाह बस इतना ही है. इसी अपराध में हमारे चार साथी पहले ही जेल काट चुके, कई के हाथ टूटे. आज मैं जेल में हूं.

राज्य के लुटेरे आज सरकार और संवैधानिक संस्थाओं की नजर में देश के शुभचिंतक हैं. राज्य के संसाधनों को लूटनेवाले, मानवाधिकारों का दमन करनेवालों को सरकार और संवैधानिक संस्थाएं संरक्षण दे रही हैं और इस धरती के भूमिपुत्र/पुत्री- शुभचिंतकों को अपराधी करार दिया जा रहा है. सिदो-कान्हू-बिरसा मुंडा सहित तमाम स्वतंत्रता सेनानियों को भी यही ताज पहनाया गया था.

क्या सच है, क्या गलत है, मैं नहीं समझ पा रही हूं, लेकिन यही जिंदगी की हकीकत है कि मैं आज पत्थर हो गयी हूं. पूरी दुनिया सो रही है. रात का एक बजा है अभी. बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा के महिला वार्ड में बंदी भी सो रहे हैं. मैं अकेली बैठी हूं. जिंदगी में किसी के दु:ख से अपने को अलग नहीं किया. दिन हो या रात, हमेशा लोगों का आंसू पोंछने के लिए रात का अंधकार भी मेरा रास्ता कभी नहीं रोक सका. लेकिन आज मेरे पैर बंधे हुए हैं. हर आंख का आंसू पोछनेवाले हाथ जकड़ दिये गये हैं. मेरे घर में भाभी की लाश पड़ी हुई है, मेरा परिवार भय से डूबा हुआ है और मैं जेल में निसहाय मूक-बधिर बन कर रह गयी हूं. आंख में आंसू हैं लेकिन बह नहीं पा रहे हैं. आज 6/11/12 को कोर्ट में जाना है. मुझे समझ में आ गया है कि कोई नया केस मेरे ऊपर चढे.गा, जिसके लिए मुझे कस्टडी में लिया जायेगा या रिमांड में या प्रोडक्शन वारंट जारी किया जायेगा. मैंने आज भाभी के अंतिम संस्कार माटी में शामिल होने के लिए कोर्ट को आवेदन दिया है. मुझे नहीं पता अनुमति मिलेगी या नहीं. मेरा भरोसा अब ‘भरोसा’ से भी उठ रहा है.

हां, फैसल दा, बासवी जी, नेलसन, अलोका, प्रवीण, सुशांतो, मीडिया के साथी सहित सभी साथियों (सबका नाम नहीं ले पा रही हूं जो नजदीक में हैं और दूर में हैं) ने मेरा हौसला बुलंद किया है. मेरी आंख के आंसू पोछे हैं.

जेल में बंद कई लोग दुआएं दे रहे हैं कि तुमको यहां नहीं, बाहर रह कर काम करना है. मैं कोशिश करूंगी अपने को उसी तरह खड़ा रखने की, जिस तरह नदी, नाला, पहाड़, जंगल, गांव-गांव में खड़ा होकर नारा बुलंद करते रहे हैं. हम अपने पूर्वजों की एक इंच जमीन नहीं देंगे. आशा है आज का, अभी का यह क्षण ही जिंदगी का अंतिम पड़ाव नहीं है. जब तक कोयल, कारो और छाता नदी की धराएं बहती रहेगी, जिंदगी की जंग जारी रहेगी.

आप लोगों की बहन
दयामनी बरला
6 नवम्बर 2012, बिरसा मुंडा, केन्द्रिय काराग्रह, रांची (झारखंड)

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