संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

’मांगोगे पानी खाओगे गोली’- महाराष्ट्र सरकार

महाराष्ट्र पुलिस द्वारा 18 अप्रैल 2011 को जैतापुर परमाणु प्लांट का विरोध कर रहे लोगों पर फायरिंग का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि मावल में चार माह बाद ही एक बार फिर महाराष्ट्र पुलिस ने अपनी जमीन बचा रहे 4 किसानों की गोली मार कर हत्या कर दी। यह किसान पवना बांध से सिंचाई के लिए पानी की मांग कर रहे थे।

सरकारें किसानों को अन्नदाता-भूमिपुत्र कहकर उनका मान बढ़ाती हैं, लेकिन जब वे अपने खेतों में अन्न पैदा करने के लिए पानी मांगते हैं तो उन्हें गोली मारने में जरा भी देर नहीं लगाती है। ऐसा ही मामला एक बार फिर सामने आया। किसान पिछले कई दिनों से पवना पाइप लाइन का विरोध कर रहे थे पंरतु सरकार ने किसानों की मागों पर कोई ध्यान नहीं दिया। जब अगस्त क्रांति दिवस (9 अगस्त 2011) को मावल के किसान पाइप लाइन के कार्य के  विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे तो पुलिस ने किसानों पर फायरिंग की जिसमें 4 किसानों की मौत हो गई। पुलिस फायरिंग का शिकार 29 साल का एक किसान श्याम राव तुपे भी हुए हैं, जो अपनी एक बीधा जमीन बचाने में जुटे थे। श्याम राव पर अपने परिवार के 11 लोगों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी थी और अब उनकी मौत के बाद उनके परिवार के भूखों मरने की हालात पैदा हो गई है।

ज्ञातव्य है कि मावल व आस-पास के गांवों के किसानों ने 35 वर्ष पहले यही सोचकर अपने खेतों की जमीन पवना बांध के लिए दी थी कि सरकार उनके खेतांे को भी सिंचाई का पानी देगी। सरकार ने भी किसानों से बड़े-बड़े वादे किये परंतु वे वादे आज तक पूरे नहीं किये गये। इसके बावजूद उन्होंने कभी किसी तरह का उग्र आंदोलन नहीं किया। अचानक सरकार को तीन साल पहले लगने लगा कि नहर से जाने वाला पानी दूषित हो रहा है। किसान नहर से सिंचाई कर रहे थे इसलिए अंडरग्राउंड ’पवना पाइप लाइन परियोजना’ तैयार की गयी। इस योजना से किसानों को अपने पानी पर सरकार द्वारा डाका डालने का अहसास हुआ। तभी से किसानों ने सरकार के सामने अपनी जमीन इस पाइप परियोजना के लिए नहीं देने की बात रखनी चाही, परंतु सरकार तो सरकार ठहरी उसके पास किसानों की समस्याएं सुनने का समय कहां है? वह तो राज्य के औद्योगीकरण की चिंता में डूबी है।
अब जरा पवना बांध में उपलब्ध पानी की स्थिति पर गौर करें, पवना बांध की जल संग्रहण की क्षमता 305 लाख घनमीटर है। इसमें से 31 लाख घनमीटर पानी अनुपयोगी है। बचे 274 लाख घनमीटर पानी में वाष्पीभवन के लिए 24 घनमीटर, पिंपरी-चिचवड के लिए 158.67 लाख घनमीटर निर्धारित किया गया। एमआईडीसी के लिए 59 लाख घनमीटर पानी वर्तमान में दिया जा रहा है। बचा हुआ 32 घनमीटर पानी किसानों के हिस्से में आता है। यदि इन आंकड़ों का विष्लेशण किया जाय तो साफ जाहिर होता है कि पवना बांध निर्माण के लिए सबसे अधिक त्याग किसानों ने किया उन्होंने अपनी खेती की जमीन पवना बांध बनाने के लिए दी परंतु उन्हे सबसे कम पानी मिला। अब सरकार द्वारा पवना पाइप लाइन के जरिये उनके खेतों को मिल रहे पानी पर भी डाका डालने का प्रयास किया जा रहा है। 
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