संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

राज्य-दमन के खिलाफ मानवाधिकार संगठनों का साझा संघर्ष

को-ऑर्डिनेशन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स ऑर्गेनाइजेशन (सीडीआरओ) के द्वारा
7 सितम्बर 2012 को प्रातः 11 बजे, मंडी हाउस से जंतर मंतर तक
अखिल भारतीय रैली एवं धरना
का आहवान 

नागरिक अधिकार एवं लोकतांत्रिक अधिकार संगठनों के एसोसिएशन के नाते सीडी़आरओ, देश के अंदर विभिन्न तबकों के लोगों के साथ व्यापक स्तर पर हो रही हिंसा एवं दमन के खिलाफ 7 सितम्बर 2012 को दिल्ली में अखिल भारतीय रैली एवं धरना में शामिल होने का आह्वान करता है. भारत में लोकतांत्रिक अधिकारों एवं प्रक्रियाओं का लगातार मखौल उड़ाया जा रहा है। यहाँ न केवल जनता के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है बल्कि उन लोगों के स्तित्व पर एक खतरा उत्पन्न हो गया है जो इस खतरनाक प्रवृत्ति के खिलाफ खड़े होने और बोलने की हिम्मत कर रहे हैं। इस साल कई ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जो व्यापक स्तर पर लोगों के लोकतांत्रिक  एवं नागरिक अधिकारों के उल्लंघन को बयाँ करते हैं। कॉरपोरेट कंपनियों द्वारा लोगों के जल, जंगल एवं जमीन के अधिकारों को छीना जा रहा है और इसका विरोध करने वाले लोगों के खिलाफ राज्य के द्वारा माओवाद के नाम पर ‘‘गिरफ्तारी और हत्या’’ की नीति का प्रयोग किया जा रहा है, जो इसके क्रूर एवं पक्षपातपूर्ण रवैया को जगजाहिर करता है। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के बीजापुर में 17 आदिवासियों की हत्या इसका एक ज्वलंत प्रमाण है। इसी प्रकार औद्योगिक विकास के नाम पर जनसंसाधनों के दोहन में राज्य एवं कॉरपोरेट सेक्टर के बीच साँठ-गाँठ भी किसी से छिपा नहीं है। राज्य द्वारा कमजोर तबकों के लोगों को जानबुझकर निशाना बनाया जा रहा है और उसे ‘‘अपराधी’’ बताने की कोषिष हो रही है। पिछले दिनों कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें राज्य सरकारों द्वारा गठित आतंकवाद निरोधी दस्तों द्वारा मुस्लिम युवकों पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें आतंकवाद से संबंधित मामलों में फँसाया गया। अर्धसैनिक बलों द्वारा महिलाओं के साथ यौन-दुर्व्यवहार की घटनाएँ भी बढ़ती जा रही हैं। दलितों के स्वीकृत वैध अधिकारों का दमन कर दलितों के खिलाफ हिंसा और सामाजिक बहिष्कार की घटनाएँ आम होती जा रहीं हैं। राज्य के ‘‘विकास’’ की नीति के दुष्परिणामों के प्रति वाजिब चिंता व्यक्त करने वाले सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के ऊपर शर्मनाक रूप से व्यापक स्तर पर देषद्रोह एवं यूएपीए जैसे क्रूर कानूनों का प्रयोग किया जा रहा है ताकि उनकी आलोचनात्मक आवाजों को दबाया जा सके। भारत के 640 जिलों में से 101 जिलों में जहाँ आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट (अफस्पा) लगा हुआ है वहीं 37 जिलों में भी इसी के समान स्थिति है। अपने ही लोगों के खिलाफ छेड़े गए इस युद्ध के कारण सामाजिक एवं नृजातीय (इथनिक) विभाजन पैदा हुआ है। इसका घातक परिणाम हम हाल में असम में हो रही हिंसा तथा बंगलौर, चेन्नई, पूने एवं हैदराबाद आदि राज्यों से उत्तर-पूर्व के राज्यों के लोगों के पलायन के रूप में देख सकते हैं। हम कश्मीर में उजागर हुए सामूहिक कब्र की घटना के प्रति राज्य की उदासीनता को देखकर भी चिंतित हैं, जबकि ये यहाँ रहस्मय तरीके से गायब 8-10,000 लोगों के मामले को सुलझाने की कुंजी हो सकता था।

राज्य और सामाजिक शक्ति संरचना के द्वारा जारी इस व्यापक हिंसा के खिलाफ संगठित आवाज उठाते हुए हम माँग करते हैं कि-

  • मओवादियों के खिलाफ युद्ध के नाम पर आदिवासियों के ऊपर सैन्य कार्यवाही बंद की जाय।
  • ‘‘कॉरपोरेट लूट की मनाही हो’’ और ‘‘जनता को जन-संसाधन मिले’’।
  • अफस्पा, यूएपीए, आईपीसी के अंतर्गत देशद्रोह की धारा सीएसपीएसए और इसी प्रकार के दूसरे अन्य क्रूर कानूनों का वापस लिया जाय।
  • आतंकवाद के नाम पर मुस्लिमों पर हमले बंद हों।
  • मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं पर हमलों की भर्त्सना हो।
  • सामूहिक कब्रों, जिसकी कोई पहचान नहीं है, की जाँच के लिए स्वतंत्र आयोग गठित किया जाय।
  • कन्वेंशन अगेंस्ट इनफोर्स्ड डिसएपियरेंस और कन्वेंशन अगेंस्ट टॉर्चर पर हस्ताक्षर किया जाय।

सदस्य संगठनः एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (एएफडीआर, पंजाब), आंध्र प्रदेश सिविल लिबर्टीज कमिटी (एपीसीएलसी), एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (एपीडीआर, पश्चिम बंगाल), आसनसोल सिविल राइट्स एसोसिएश्न (पश्चिम बंगाल), बंदी मुक्ति कमिटी (पश्चिम बंगाल), कमिटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (सीपीडीआर, मुंबई), कॉर्डिनेशन फॉर ह्युमैन राइट्स (सीओएचआर, मणिपुर), ह्युमैन राइट्स फॉरम (एचआरएफ, आन्ध्र प्रदेश), लोकशाही हक संगठन (एलएचएस, महाराष्ट्र), मानव अधिकार संग्राम समिति (मास, असम), नागा पीपॅल्स युनियन फॉर ह्युमैन राइट्स (एनपीएमएचआर), ऑर्गेनाइजेशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (ओपीडीआर, आन्ध्र), पीपॅल्स कमिटी फॉर ह्युमैन राइट्स (पीसीएचआर, जम्मु एवं कश्मीर) पीपॅल्स डेमोक्रेटिक फॉरम (पीडीएफ, कर्नाटक), पीपॅल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल), छत्तीसगढ़, पीयूसीएल झारखंड, पीयूसीएल नागपुर, पीयूसीएल राजस्थान, पीयूसीएल तमिलनाडू, पीपॅल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) दिल्ली, पीपॅल्स यूनियन फॉर सिविल राइट्स (पीयूसीआर) हरियाणा

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