संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

असम : विस्थापन, फर्जी एनकाउंटर और जन आंदोलनों पर दमन

असम के काजीरंगा क्षेत्र में अभयारण्यो के विस्तार के नाम पर आदिवासी एवं अन्य समुदायों से उन्हकी जमीन छिनी जा रही है. जंगल पर और वन संसाधनों पर स्थानिको के नैसर्गिक अधिकारों को समाप्त किया जा रहा है. अपनी आजीविका और संस्कृती की रक्षा में वनों पर आश्रित आदिवासी समुदायों को उन्ही जंगलो से खदेड़ा जा रहा है, उन्हें जबरन विस्थापित किया गया जा रहा है. पिछले कुछ सालों में शेकड़ो व्यक्तियों को जंगल में घुसपैठ करने के झूठें आरोपों में फर्जी एनकाउंटर में मारा गया है.

जिपल कृषक श्रमिक संगठन इस क्षेत्र में आदिवासी समुदाय के अधिकार और उन्हपर हो रहे दमन का प्रतिरोध कर रहे है. फर्जी एनकाउंटर और हत्यायों के खिलाप लोगों को संगठित कर आवाज उठा रहे है. उन्हों ने हाल ही में जबरन विस्थापन और हत्यायों के खिलाफ धरने का आयोजन किया था. सरकार ने लोगो के इस संगठित प्रतिरोध को दबाने के लिए आंदोलन में सहभागी कार्यकर्तायों पर फर्जी आरोप लगाकर उन्हें जेल में डाल रखा है. जिपल कृषक श्रमिक संगठन के साथी प्रणब डोले और सोनेस्वर नरह 24 अप्रिल 2017 से हिरासत में है. जमानत की अर्जी दो बार ख़ारिज की गयी गई. जान बुझकर पुलिस स्टेशन डायरी और अन्य दस्तावेज कोर्ट के सामने रखने में देरी कर रही थी जिससे जमानत मिलाने में देरी हो. उन्हपर धारा 147, 447, ५५3 और 506 के तहद आरोप लगाये थे. 04.05.2017 को प्रणब और सोनेस्वर को जमानत मिलने के बाद में फिरसे गिरफ्तार किया गया. इस गिरफ़्तारी का हम विरोध करते है.

(इस घटनासे सम्बंधित जानकारी के लिय पढ़े – http://www.kractivist.org/assam-arest-of-activists-soneswar-narah-and-pranab-doley-and-brutal-lathicarge-on-the-protesters-mediablacksout/ )

सिर्फ कुछ घटनाए नहीं, ये दमन की एक व्यापक रणनीति है..
इसके खिलाफ संगठित प्रतिरोध जरुरी है..

यह सरकार की एक सोची समझी रणनीति है जिससे सत्ता, अपने प्राकृतिक आवास और संविधानिक अधिकारों की रक्षा में संघर्ष कर रहे आदिवासियों और शोषित समुदायों के प्रतिरोध के स्वरों को दबाने का काम करती है. यह समय है कि, वास्तविकता में लोकतंत्र और संविधानिक अधिकारों का समर्थन कर रहे जन आंदोलनो को दबाने के लिए दमनकारी तरीकों की खोज करने की बजाये सरकार ने राजनीतिक समाधानों की तलाश करनी चाहिए और अपनी नीतियों में खामियों की जांच करनी चाहिए.

हम देशभर के तमाम संघर्षरत संगठनो, शिक्षाविदों, विद्यार्थियों, कार्यकर्तायों और जनता से अपील करते है, की वे सरकार द्वारा किये जा रहे इन्ह दमनकारी, लोकतंत्रविरोधी नीतियों का विरोध करे. जनसंगठनों के कार्यकर्ता और उससे जुड़े व्यक्तियों पर दायर फर्जी मुकदमो, आरोपों और जबरन करवाए जा रहे फर्जी आत्मसमर्पण, हत्यायों की निंदा करे. उसका खंडन करे. और आदिवासी एवं अन्य समुदायों के किये जा रहे जबरन विस्थापन और शोषणकारी विकास के एजेंडे के विरोध में जनतांत्रित संघर्ष को मजबूत बनाये.

हम फिर से, किसी भी तरह के असंतोष को दबाने के लिए लोगों के जन आंदोलनों को लेबल करने की राज्य के इस दमनकारी कृत्य की निंदा करते हैं। और हम लोगों के साथ संघर्ष में खड़े रहने की विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन की प्रतिबद्धता को फिर से दोहराते है. जन विरोधी विकास योजनाओं के चलते हुए अन्याय के खिलाफ, हम सभी प्रकार के विस्थापन के खिलाफ हमारे एकजुट संघर्ष को आगे बढ़ाएंगे, ताकि भूमि और संसाधनों पर दलितों, आदिवासियों, किसानों, मजदूरों के अधिकार को प्रस्तापित कर सुरक्षित रखने के संघर्ष को आगे बढ़ा पाए.

जारीकर्ता:

विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन
( विस्थापन नही, विनाश नही, विपन्नता नही, मौत नही, पुनर्वास नही, बदलाव हो – समानता और न्याय आधारित)
केंद्रीय संयोजक समिति:
त्रिदिप घोष, प्रशांत पैकराय,माधुरी जी, दामोधर तुरी, जे. रमेश, महेश राउत
एवम् स्टीयरिंग कमेटी और संलग्नित राज्य इकाईया.
केंद्रीय कार्यालय: सरई टांड, मोरहाबादी, पोस्ट रांची विश्वविद्यालय, रांची, झारखंड 834008
संपर्क: janandolan@gmail.com ०८७५७५७९८९८, ०९४३७५७१५४७, ०९१७९७५३६४०, ०९९४८४१०७९८, ०८३९००४५४८२

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